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भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग परिचय भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और विविधता भारत के औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग में महत्वपूRead more
भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग
परिचय भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और विविधता भारत के औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पश्चिम एशिया की रणनीतिक महत्वता पश्चिम एशिया, विशेषकर सऊदी अरब, यूएई, और ईरान, ऊर्जा संसाधनों से भरपूर क्षेत्र है। भारत की तेल की 80% से अधिक आवश्यकता इन देशों से पूरी होती है। इस पर निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा की रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
द्विपक्षीय समझौते और निवेश भारत ने ऊर्जा सुरक्षा के लिए कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं:
हालिया विकास 2023 में भारत और ईरान ने चाबहार पोर्ट परियोजना पर चर्चा फिर से शुरू की, जो ऊर्जा व्यापार के लिए बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, भारत-यूएई स्ट्रैटेजिक ऑइल रिजर्व्स एग्रीमेंट भारत को आपातकालीन परिस्थितियों में तेल भंडार बनाए रखने में मदद करता है।
चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ हालांकि सहयोग मजबूत है, ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध जैसी भौगोलिक तनावों से चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। भविष्य में, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अवसरों की खोज की जाएगी।
निष्कर्ष पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत का ऊर्जा नीति सहयोग ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करता है। रणनीतिक समझौते और निवेश इस सहयोग को और अधिक प्रभावी बनाते हैं, जबकि क्षेत्रीय चुनौतियों को भी ध्यान में रखते हैं।
See lessOBOR के आलोक में भारत-चीन संबंधों की प्रकृति की विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
OBOR के आलोक में भारत-चीन संबंधों की प्रकृति 1. OBOR का अवलोकन वन बेल्ट वन रोड (OBOR), जिसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के नाम से भी जाना जाता है, चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह परियोजना 2013 में शुरू की गई थी और इसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बीच व्यापार मार्गों को सुदृढ़ करनाRead more
OBOR के आलोक में भारत-चीन संबंधों की प्रकृति
1. OBOR का अवलोकन
वन बेल्ट वन रोड (OBOR), जिसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के नाम से भी जाना जाता है, चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह परियोजना 2013 में शुरू की गई थी और इसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बीच व्यापार मार्गों को सुदृढ़ करना और बुनियादी ढांचा निर्माण के माध्यम से कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
2. भारत की चिंताएँ
3. आर्थिक और व्यापारिक संबंध
4. कूटनीतिक और क्षेत्रीय सहभागिता
निष्कर्ष
OBOR के संदर्भ में भारत-चीन संबंधों में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और आर्थिक अवसर दोनों ही प्रमुख तत्व हैं। भारत चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रति सतर्क है, लेकिन वह कूटनीतिक और आर्थिक अवसरों को भी संतुलित करने की कोशिश कर रहा है।
See lessभारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्यतनाव के बिंदु कौन-कौन से हैं? (125 Words) [UPPSC 2019]
भारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्य तनाव बिंदु **1. सीमा विवाद सीमा विवाद मुख्य तनाव बिंदु है। सुगौली संधि (1815-16) के तहत निर्धारित सीमा पर विवाद मौजूद है, विशेष रूप से लिम्पियाधुरा, कालापानी, और लिंचुंग क्षेत्रों को लेकर। नेपाल ने भारत द्वारा नक्शे में किए गए बदलावों का विरोध किया है। **2. नदRead more
भारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्य तनाव बिंदु
**1. सीमा विवाद
सीमा विवाद मुख्य तनाव बिंदु है। सुगौली संधि (1815-16) के तहत निर्धारित सीमा पर विवाद मौजूद है, विशेष रूप से लिम्पियाधुरा, कालापानी, और लिंचुंग क्षेत्रों को लेकर। नेपाल ने भारत द्वारा नक्शे में किए गए बदलावों का विरोध किया है।
**2. नदी विवाद
नदी विवाद भी तनाव का कारण है। गंडक और कुसहा नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर समस्याएँ बनी रहती हैं, जो बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के कारण और जटिल हो गई हैं।
**3. सामाजिक और राजनीतिक विवाद
सामाजिक और राजनीतिक विवाद जैसे सामाजिक सहायता और आर्थिक सहायता के मुद्दे भी तनाव उत्पन्न करते हैं। हाल ही में, नेपाल के संविधान में भारतीय नागरिकों की भूमिका और अधिकारों पर उठे सवालों ने तनाव को बढ़ाया है।
**4. चिंताएँ और नकारात्मक बयान
भारत-नेपाल के बीच नकारात्मक बयान और चिंताएँ जैसे आतंकवाद और सुरक्षा मुद्दे भी रिश्तों में तनाव उत्पन्न करते हैं।
सारांश में, सीमा विवाद, नदी विवाद, सामाजिक-पॉलिटिकल मुद्दे और नकारात्मक बयान भारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्य तनाव बिंदु हैं।
See lessअफगानिस्तान में भारत के 'साफ्ट पावर' राजनय के कारणों का मूल्यांकन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
अफगानिस्तान में भारत के 'सॉफ्ट पावर' राजनय के कारणों का मूल्यांकन 1. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध (Historical and Cultural Ties): सांस्कृतिक प्रभाव: भारत ने अफगानिस्तान के साथ साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों का लाभ उठाया है। भारतीय फिल्में और टेलीविजन कार्यक्रम अफगानिस्तान में लोकप्रिय रहे हैं,Read more
अफगानिस्तान में भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ राजनय के कारणों का मूल्यांकन
1. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध (Historical and Cultural Ties):
2. विकासात्मक सहायता (Development Assistance):
3. शैक्षिक और क्षमता निर्माण (Educational and Capacity Building):
4. मानवitarian सहायता (Humanitarian Assistance):
5. सामरिक हित और प्रतिकूलताओं का मुकाबला (Strategic Interests and Countering Adversaries):
निष्कर्ष: अफगानिस्तान में भारत की सॉफ्ट पावर राजनय ऐतिहासिक संबंधों, विकासात्मक सहायता, शैक्षिक समर्थन, मानवitarian सहायता, और सामरिक हितों का संयोजन है। इन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करके, भारत ने अफगानिस्तान में अपनी सकारात्मक छवि बनाई है और क्षेत्रीय राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत किया है।
See lessप्रधानमंत्री मोदी एवं चीनी राष्ट्रपति के बीच सौहार्दपूर्ण मामल्लपुरम शिखर बैठक के बावजूद, कई वर्षों के अंतराल के बाद फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवाद गहरा गया है। आपके अनुसार इसके पीछे क्या कारण हैं? (200 Words) [UPPSC 2020]
चीन-भारत संबंध और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर विवाद मामल्लपुरम शिखर बैठक के बावजूद विवाद: 1. सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास: चीन ने LAC पर सड़क निर्माण और मौजूदगी को बढ़ाया है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। चांग चेन्ह जैसे क्षेत्रों में चीन का बुनियादी ढांचा विकास, विवादों को बढ़ाता है। 2. कRead more
चीन-भारत संबंध और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर विवाद
मामल्लपुरम शिखर बैठक के बावजूद विवाद:
1. सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास: चीन ने LAC पर सड़क निर्माण और मौजूदगी को बढ़ाया है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। चांग चेन्ह जैसे क्षेत्रों में चीन का बुनियादी ढांचा विकास, विवादों को बढ़ाता है।
2. कूटनीतिक संघर्ष: उलझी हुई सीमाओं और विवादित क्षेत्रों पर पारस्परिक समझौतों की कमी है। मामल्लपुरम बैठक के बावजूद, दोनों देशों के बीच विश्वसनीयता और सहयोग की कमी बनी रहती है।
3. रणनीतिक हितों का टकराव: चीन की विस्तारवादी नीतियां और भारत की सुरक्षा चिंताएं के कारण, संसाधनों और रणनीतिक लाभ को लेकर टकराव बढ़ गया है। भारत की उत्तरी सीमाओं पर चीनी गतिविधियों का बढ़ना, इसे प्रमाणित करता है।
4. असहमति और संवाद की कमी: सीमा प्रबंधन और संवाद में कमियों के कारण विवाद गहराया है। डोकलाम और गलवान में हुए संघर्ष, संचार और सहयोग की कमी को उजागर करते हैं।
निष्कर्ष: इस विवाद के पीछे संप्रभुता और सुरक्षा के मुद्दे, विकासात्मक प्रयास, और असंतुलित संवाद प्रमुख कारण हैं, जो सीमा पर तनाव को बढ़ाते हैं।
See lessदक्षिण चीन सागर के मामले में, समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करतें हैं। इस सन्दर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण चीन सागर के विवाद दक्षिण चीन सागरRead more
परिचय
दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं।
दक्षिण चीन सागर के विवाद
दक्षिण चीन सागर में चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स, मलेशिया और ब्रुनेई के बीच भूभागीय दावे हैं। चीन की नाइन-डैश लाइन के आधार पर सम्पूर्ण सागर पर दावा, क्षेत्र में मिलिटरीकरण और संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। यह स्थिति समुद्री सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है।
भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दे
हालांकि भारत सीधे दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल नहीं है, लेकिन द्विपक्षीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं:
सहयोग और संवाद
दोनों देशों ने तनाव प्रबंधन के लिए BRICS शिखर सम्मेलन और अनौपचारिक शिखर बैठकों जैसी पहल की हैं। भारत और चीन ने समुद्री सुरक्षा और नौपरिवहन की स्वतंत्रता की पुष्टि की है, जो उनके अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है।
निष्कर्ष
दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं। भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दों के बावजूद, सहयोग और संवाद इन विवादों को प्रबंधित करने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।
See lessआतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवादी गतिविधियाँ और परस्पर अविश्वास ने संबंधों को जटिल बना दिया है। हालांकि, खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति इस तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। खेलों के माध्यम से आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देने की कई उदाहरण हैं। 1986 के विश्व कप क्रिकेटRead more
भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवादी गतिविधियाँ और परस्पर अविश्वास ने संबंधों को जटिल बना दिया है। हालांकि, खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति इस तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
खेलों के माध्यम से आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देने की कई उदाहरण हैं। 1986 के विश्व कप क्रिकेट के दौरान, भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया मैच केवल खेल नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी माध्यम था। दोनों देशों के प्रशंसक मैच देखने के लिए उत्साहित थे, और यह घटना दो देशों के बीच सकारात्मक संवाद का एक संकेत बनी।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी महत्वपूर्ण है। 2006 में, भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर और दिल्ली में आयोजित कला और संगीत महोत्सवों ने दोनों देशों के कलाकारों को एक मंच पर लाकर सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया।
इन गतिविधियों से लोगों के बीच सामाजिक और भावनात्मक संबंधों को प्रोत्साहन मिलता है, जो कि सरकारी नीतियों से परे एक सामान्य जनसमर्थन उत्पन्न कर सकते हैं। इस प्रकार, मृदु शक्ति के माध्यम से दोनों देशों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना संभव है।
See lessपरियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
परियोजना 'मौसम': एक रणनीतिक आयाम परिचय: परियोजना 'मौसम' 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य समुद्री सहयोग को बढ़ाना और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। यह परियोजना भारत की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो ऐतिहासिक समुद्री संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय कूRead more
परियोजना ‘मौसम’: एक रणनीतिक आयाम
परिचय: परियोजना ‘मौसम’ 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य समुद्री सहयोग को बढ़ाना और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। यह परियोजना भारत की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो ऐतिहासिक समुद्री संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय कूटनीति और सुरक्षा को मजबूत करना चाहती है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कूटनीति: परियोजना ‘मौसम’ का ध्यान प्राचीन समुद्री मार्गों को पुनर्जीवित करने और भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) के देशों के साथ सांस्कृतिक संबंधों को प्रोत्साहित करने पर है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ हालिया सांस्कृतिक आदान-प्रदान इस परियोजना की ऐतिहासिक बंधनों को मजबूत करने की भूमिका को दर्शाते हैं।
रणनीतिक और आर्थिक आयाम: रणनीतिक आयाम: इस परियोजना में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक आयाम है, क्योंकि इसका उद्देश्य भारत की समुद्री हितों को सुरक्षित करना और चीन की बढ़ती प्रभाव को संतुलित करना है। सेशेल्स और मॉरीशस के साथ भारत की भागीदारी इसका एक उदाहरण है, जो समुद्री सुरक्षा साझेदारी और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की पहुंच को मजबूत करने की दिशा में है।
आर्थिक सहयोग: परियोजना आर्थिक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देती है, जैसे म्यांमार और थाईलैंड के साथ पोर्ट विकास और व्यापार को बढ़ावा देने के प्रयास। यह क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: परियोजना ‘मौसम’ ऐतिहासिक और रणनीतिक आयामों को प्रभावी ढंग से जोड़ती है, जिससे भारत को क्षेत्रीय समुद्री मामलों में एक सक्रिय खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह पहल न केवल कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि समकालीन रणनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का समाधान भी प्रस्तुत करती है।
See lessअफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सकारात्मक पक्ष: आर्थिक अवसर: भारत की अफ्रीका में बढ़ती रुचि ने कई आर्थिक अवसर प्रदान किए हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने 2023 में नाइजीरिया और केन्या के ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश किए हैं। भारत-अफ्रीका व्यापार मंच और द्विपक्षीय व्यापार मेRead more
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष
सकारात्मक पक्ष:
नकारात्मक पक्ष:
निष्कर्ष: अफ्रीका में भारत की बढ़ती रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। आर्थिक, रणनीतिक और शैक्षिक लाभ के साथ-साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, संसाधन निर्भरता और स्थानीय विरोध के जोखिम भी जुड़े हैं। इन पहलुओं को संतुलित करना भारत की अफ्रीका के साथ बढ़ती हुई साझेदारी की सफलता के लिए आवश्यक है।
See lessपाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए, विशेष रूप से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, महत्वपूर्ण प्रश्न प्रस्तुत करता है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रश्न प्रस्तुत करता है: आतंकवाद की नीति: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में आतंकवाद के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आश्वासन नहीं दिया, तो भारतRead more
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रश्न प्रस्तुत करता है:
आतंकवाद की नीति: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में आतंकवाद के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आश्वासन नहीं दिया, तो भारत के लिए सीमा पर और आतंकवादी गतिविधियों की बढ़ती चुनौतियाँ हो सकती हैं।
क्षेत्रीय असंतुलन: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में भारतीय सीमा के साथ संघर्ष प्रबंधन या कश्मीर पर दृष्टिकोण भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है। नीति में भारत के प्रति संभावित आक्रामक या सामरिक रणनीतियाँ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
सैन्य क्षमता और सहयोग: पाकिस्तान की नई नीति में सैन्य क्षमता में वृद्धि या अंतरराष्ट्रीय सहयोग की संभावनाएँ भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, विशेषकर यदि इससे पाकिस्तान की सेना की आक्रामक क्षमता में वृद्धि होती है।
इन पहलुओं के कारण, भारत को पाकिस्तान की सुरक्षा नीति पर करीबी निगरानी रखनी होगी और अपनी रणनीतियों को सुसंगत रूप से अनुकूलित करना होगा।
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