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यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत अब तक अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए दोनों देशों के साथ अपने अनुकूल द्विपक्षीय संबंधों को सफलतापूर्वक बनाए रखने में सक्षम रहा है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ मजबूत और संतुलित द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत की यह कूटनीतिक सफलताएँ उसके बहुपरकारी विदेश नीति और रणनीतिक संतुलन की क्षमताओं को दर्शाती हैं।Read more
यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ मजबूत और संतुलित द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत की यह कूटनीतिक सफलताएँ उसके बहुपरकारी विदेश नीति और रणनीतिक संतुलन की क्षमताओं को दर्शाती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध: भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले दो दशकों में काफी मजबूत हुए हैं, विशेषकर व्यापार, रक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग में। भारत और अमेरिका ने कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे कि नागरिक परमाणु समझौता और रक्षा साझेदारी। इन समझौतों ने व्यापार और निवेश के क्षेत्र में वृद्धि की है और भारत को अमेरिका के रक्षा प्रौद्योगिकी और सुरक्षा सहयोग का लाभ मिला है। अमेरिका की “प्रो-इंडिया” नीति भी भारत के वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ करती है, खासकर Indo-Pacific क्षेत्र में।
रूस के साथ संबंध: भारत और रूस के बीच भी ऐतिहासिक और मजबूत रिश्ते हैं, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में। रूस ने भारत को सैन्य उपकरण और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति की है, जो भारतीय सुरक्षा नीति के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने कई प्रमुख रक्षा सौदे किए हैं, और रूस भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। इसके अलावा, भारत और रूस की साझेदारी संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी महत्वपूर्ण रही है, जहां दोनों देशों ने अक्सर एक दूसरे का समर्थन किया है।
भारत की कूटनीति: भारत ने इन दोनों शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की है। भारत की विदेश नीति की बहुपरकारी दृष्टि ने उसे अमेरिका और रूस दोनों के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में सक्षम बनाया है, जिससे भारत ने वैश्विक कूटनीतिक खेल में अपनी भूमिका को मजबूती प्रदान की है।
इस तरह, भारत ने यू.एस.ए. और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद अपने कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए दोनों देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती से बनाए रखा है।
See lessचीन-रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंधों को कुछ लोगों ने 'विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन' के रूप में वर्णित किया है। यह गठबंधन भारत के राष्ट्रीय हित को कैसे प्रभावित कर सकता है? भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए क्या रणनीति अपनानी चाहिए? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
चीन और रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंध, जिन्हें 'विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन' कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय हितों पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं। भारत पर प्रभाव: सुरक्षा और सैन्य दबाव: चीन और रूस के रणनीतिक साझेदारी के कारण, भारत को द्वीपक्षीय या बहुपक्षीय सैन्य दबाव का सामना कRead more
चीन और रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंध, जिन्हें ‘विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन’ कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय हितों पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं।
भारत पर प्रभाव:
सुरक्षा और सैन्य दबाव: चीन और रूस के रणनीतिक साझेदारी के कारण, भारत को द्वीपक्षीय या बहुपक्षीय सैन्य दबाव का सामना करना पड़ सकता है। विशेष रूप से, चीन के साथ भारत की सीमा पर तनाव और रूस की सैन्य सहायता से चीनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है।
भूराजनीतिक परिदृश्य: रूस का समर्थन प्राप्त करने के कारण, चीन को भूराजनीतिक मोर्चे पर अधिक प्रभावी बनने का अवसर मिल सकता है। इससे भारत की वैश्विक स्थिति और क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है, विशेषकर दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में।
आर्थिक और रणनीतिक सहयोग: चीन और रूस के बीच गहरे आर्थिक और रणनीतिक सहयोग से भारत की व्यापारिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विशेषकर ऊर्जा, रक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
भारत की रणनीति:
मजबूत रणनीतिक साझेदारी: भारत को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी विकसित करनी चाहिए। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों को संतुलित किया जा सकेगा और चीन के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
सैन्य और सुरक्षा वृद्धि: भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को सुधारना और आधुनिक उपकरणों के साथ अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाना चाहिए, ताकि वह संभावित सुरक्षा खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सके।
आर्थिक विविधता: भारत को अपनी आर्थिक नीतियों में विविधता लानी चाहिए और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उपायों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे भारत को वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा में मजबूत स्थिति मिल सकेगी।
राजनयिक प्रयास: भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय रहकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए। रणनीतिक संवाद और कूटनीति के माध्यम से वैश्विक समर्थन जुटाना भी महत्वपूर्ण है।
इन रणनीतियों को अपनाकर भारत चीन-रूस के रणनीतिक गठबंधन के संभावित प्रभावों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है।
See lessभारत और उसके पड़ोसियों के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित होने से पहले, भारत को अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित करने से पहले, भारत को इस क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। यह क्षेत्र, जो भारत के सात राज्यों को शामिल करता है, रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न समस्याओं काRead more
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित करने से पहले, भारत को इस क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। यह क्षेत्र, जो भारत के सात राज्यों को शामिल करता है, रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहा है।
आंतरिक चुनौतियाँ:
बाहरी चुनौतियाँ:
उपसंहार:
पूर्वोत्तर क्षेत्र की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों को सुलझाना भारत के लिए महत्वपूर्ण है ताकि इसे एक प्रभावशाली संपर्क स्थल के रूप में स्थापित किया जा सके। यह न केवल क्षेत्रीय विकास और सुरक्षा में सुधार लाएगा, बल्कि भारत की रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगा। सही नीतियों और रणनीतियों के साथ, भारत पूर्वोत्तर क्षेत्र की पूर्ण संभावनाओं को साकार कर सकता है।
See lessऋण-जाल कूटनीति क्या है? चीन की ऋण-जाल कूटनीति भारत के पड़ोस में भारतीय हितों को कैसे प्रभावित करती है? (150 शब्दों में उत्तर दें)
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) एक रणनीति है जिसका उपयोग देश ऋण देने वाले देश करते हैं ताकि उधार लेने वाले देश को आर्थिक रूप से निर्भर और कमजोर किया जा सके। इसमें, देश बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपनी संसाधन या सम्पत्ति के बदले ऋणRead more
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) एक रणनीति है जिसका उपयोग देश ऋण देने वाले देश करते हैं ताकि उधार लेने वाले देश को आर्थिक रूप से निर्भर और कमजोर किया जा सके। इसमें, देश बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपनी संसाधन या सम्पत्ति के बदले ऋण देने वाले देश के नियंत्रण में चला जाता है।
चीन की ऋण-जाल कूटनीति भारत के पड़ोसी देशों में भारतीय हितों को प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों में चीन द्वारा बड़े पैमाने पर ऋण दिए गए हैं। जब ये देश ऋण चुकाने में विफल रहते हैं, तो चीन को प्रमुख सामरिक और आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण मिल जाता है। इससे भारत के पड़ोसी देशों में चीन का प्रभाव बढ़ता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन पर असर पड़ता है।
See lessभारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया है। परीक्षण कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध: एक परीक्षण भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं, जो भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं: आर्थिक और व्यापारिक सहयोग: भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच व्यापारिक संबंध बढ़ रहे हैं।Read more
भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध: एक परीक्षण
भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं, जो भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं:
इन पहलुओं से स्पष्ट है कि भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच बढ़ते संबंध भारत की विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण और लाभकारी रणनीति बन गए हैं।
See less"भारत के इज़राइल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
भारत-इज़राइल संबंधों की गहराई और विविधता संबंधों की गहराई: भारत और इज़राइल के संबंध हाल के वर्षों में एक नई गहराई और विविधता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों ने 1992 में आधिकारिक राजनैतिक संबंध स्थापित किए, और तब से उनके सहयोग का दायरा व्यापक हुआ है। रक्षा सहयोग: भारत और इज़राइल के बीच रक्षा और सुरकRead more
भारत-इज़राइल संबंधों की गहराई और विविधता
संबंधों की गहराई: भारत और इज़राइल के संबंध हाल के वर्षों में एक नई गहराई और विविधता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों ने 1992 में आधिकारिक राजनैतिक संबंध स्थापित किए, और तब से उनके सहयोग का दायरा व्यापक हुआ है।
उपसंहार: भारत और इज़राइल के बीच बढ़ते संबंधों ने दोनों देशों के लिए रणनीतिक, आर्थिक, और तकनीकी सहयोग को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। इन संबंधों की गहराई और विविधता ने इसे एक मजबूत और स्थायी साझेदारी बना दिया है, जिसकी पुनर्वापसी मुश्किल है।
See less'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिए किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत और यूनाइटेड स्टेट्स (अमेरिका) के बीच संबंधों में खटास का एक मुख्य कारण यह है कि वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में भारत को ऐसा स्थान प्रदान करने में विफल रहा है जो भारत के आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके। इस विषय पर विचार करते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं और उदाहरणों के माRead more
भारत और यूनाइटेड स्टेट्स (अमेरिका) के बीच संबंधों में खटास का एक मुख्य कारण यह है कि वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में भारत को ऐसा स्थान प्रदान करने में विफल रहा है जो भारत के आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके। इस विषय पर विचार करते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं और उदाहरणों के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा सकता है:
1. अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताएँ:
अमेरिका ने अपनी वैश्विक रणनीति में कई बार चीन को एक प्रमुख प्रतिस्पर्धी के रूप में देखा है। इसके परिणामस्वरूप, भारत को अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में अपेक्षित स्थान नहीं मिल सका। डिफेंस और सुरक्षा सहयोग के बावजूद, अमेरिका ने भारत के साथ एक व्यापक स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप स्थापित करने में धीमी गति दिखाई है, जिससे भारत की महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से साकार नहीं किया जा सका।
2. व्यापारिक विवाद:
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक विवादों ने भी संबंधों में खटास का योगदान किया है। उदाहरण के लिए, ट्रेड पॉलिसी और शुल्क के मुद्दों पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद रहे हैं। अमेरिका ने भारत के व्यापारिक नीतियों और संरक्षणवादी दृष्टिकोण पर आलोचना की है, जिससे व्यापारिक रिश्तों में तनाव उत्पन्न हुआ है।
3. आंतरराष्ट्रीय मंच पर भिन्न दृष्टिकोण:
भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय मंच पर भिन्न दृष्टिकोण भी खटास का कारण बने हैं। परमाणु संधि, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विभिन्न दृष्टिकोणों के कारण भारत को अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत की सदस्यता के लिए अमेरिका का समर्थन ठोस नहीं रहा है, जिससे भारत की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में बाधा आई है।
4. अमेरिकी रणनीति की सीमाएँ:
अमेरिका की वैश्विक रणनीति में भारत के लिए विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान की कमी ने भारत को नाराज किया है। अमेरिका ने साल 2021 में अफगानिस्तान से अपनी वापसी के दौरान भारत की चिंताओं और प्राथमिकताओं को पूरी तरह से नहीं समझा, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी हुई।
5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में असंतोष:
क्लाइमेट चेंज और इंटेलिजेंस शेरिंग जैसे महत्वपूर्ण मामलों में भी भारत को पर्याप्त सहयोग नहीं मिला। इसने भारत को असंतुष्ट किया है और अमेरिका के साथ उसके संबंधों में खटास को बढ़ाया है।
इस प्रकार, अमेरिका की वैश्विक रणनीति में भारत को उचित स्थान प्रदान करने में विफलता के कारण भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में खटास आई है। भारत की आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, अमेरिका को अपनी नीति और सहयोग में बदलाव करना होगा।
See less'भारत और जापान के लिए लिए समय आ गया है कि एक ऐसे मजबूत समसामयिक संबंध का निर्माण करें, जिसका वैश्विक एवं रणनीतिक साझेदारी को आवेष्टित करते हुए एशिया एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए बड़ा महत्व होगा।' टिप्पणी कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
भारत और जापान के लिए एक मजबूत समसामयिक संबंध निर्माण का समय आ गया है, जो वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करेगा। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं: 1. भूराजनीतिक सामंजस्य: भारत और जापान की भूराजनीतिक स्थिति और साझा रणनीतिक हितों के कारण, दोनों देशों के बीच सहयोग एशिया के स्थायित्व और सुरक्षा को बढ़ावाRead more
भारत और जापान के लिए एक मजबूत समसामयिक संबंध निर्माण का समय आ गया है, जो वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करेगा। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. भूराजनीतिक सामंजस्य:
भारत और जापान की भूराजनीतिक स्थिति और साझा रणनीतिक हितों के कारण, दोनों देशों के बीच सहयोग एशिया के स्थायित्व और सुरक्षा को बढ़ावा देगा। चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में, दोनों देशों की साझेदारी क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीतिक संतुलन में सहायक हो सकती है।
2. आर्थिक और तकनीकी सहयोग:
भारत और जापान के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग, जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और डिजिटल प्रौद्योगिकी में साझेदारी, दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि और समृद्धि में योगदान देगी। जापान के तकनीकी कौशल और भारत के बाजार की आवश्यकता को पूरा करना द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करेगा।
3. वैश्विक चुनौतियाँ:
जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, और वैश्विक स्वास्थ्य संकट जैसी समस्याओं पर संयुक्त प्रयास से दोनों देश मिलकर प्रभावी समाधान प्रदान कर सकते हैं।
इस प्रकार, भारत और जापान के लिए एक मजबूत और समसामयिक साझेदारी का निर्माण न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त करेगा बल्कि एशिया और वैश्विक स्थायित्व के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
See lessभारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता हRead more
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
दीर्घकालिक सहयोग: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध लंबे समय से मजबूत हैं। दोनों देशों के बीच कई ऐतिहासिक रक्षा समझौते और सहयोग कार्यक्रम रहे हैं, जैसे कि सस्ते सैन्य उपकरण, तकनीकी हस्तांतरण, और सैन्य प्रशिक्षण।
तकनीकी और सामरिक समर्थन: रूस ने भारत को कई प्रमुख सैन्य उपकरण प्रदान किए हैं, जैसे कि सुखोई-30 विमान और ब्रह्मोस मिसाइल। रूस के साथ रक्षा संबंध भारतीय सेना के लिए प्रौद्योगिकी और सामरिक उपकरणों का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
2. भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: भारत और अमेरिका के रक्षा समझौतों में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। “लौजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)”, “Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA)”, और “Basic Exchange and Cooperation Agreement (BECA)” जैसे समझौते भारतीय सेना को अमेरिकी सैन्य प्रौद्योगिकी और खुफिया जानकारियों तक पहुँच प्रदान करते हैं।
हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में स्थायित्व: अमेरिका के साथ भारत का रक्षा सहयोग हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में रणनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायक है। अमेरिका और भारत दोनों ही क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। अमेरिका की सशस्त्र बलों की आधुनिक तकनीक और सामरिक सहयोग भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करता है।
3. तुलना और निष्कर्ष:
रक्षा और सामरिक सहयोग: जबकि भारत-रूस समझौते ऐतिहासिक और तकनीकी सहयोग पर आधारित हैं, भारत-अमेरिका समझौतों ने हाल ही में आधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, खुफिया सहयोग, और सामरिक गहरी साझेदारी को मजबूत किया है। अमेरिका के साथ समझौतों की रणनीतिक महत्वता इस बात में है कि ये भारत को हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में अपनी स्थिति को सशक्त करने में मदद करते हैं, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में।
विस्तारित साझेदारी: भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी ने क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जबकि भारत-रूस समझौतों ने दीर्घकालिक सैन्य सहयोग और उपकरणों की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संक्षेप में, भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ हैं, लेकिन हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में भारत-अमेरिका की साझेदारी का अधिक सामरिक महत्व है।
See lessभारत और अमेरीका के बीच विवाद और सहयोग के क्षेत्र क्या हैं? चर्चा करें। (200 Words) [UPPSC 2022]
विवाद के क्षेत्र: व्यापारिक विवाद: व्यापारिक संबंधों में तनाव विशेष रूप से टैरिफ और बाजार पहुँच के मुद्दों पर रहा है। 2019 में, अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाने का आरोप लगाया, जिसके कारण भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाए। वीजा और आव्रजन नीतियाँ: अमेरिका की H-1B वीजा नीतियाँ भारRead more
विवाद के क्षेत्र:
सहयोग के क्षेत्र:
निष्कर्ष: भारत और अमेरिका के बीच विवाद और सहयोग के क्षेत्र विविध हैं, लेकिन रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक सहयोग की बढ़ती दिशा उनके रिश्तों को मजबूत कर रही है।
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