अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत-नेपाल के मध्य विवादास्पद मामले 1. सिमा विवाद: कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिंपियाधुरा क्षेत्र भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद का मुख्य कारण है। नेपाल ने 2020 में अपनी नई राजनीतिक मानचित्र में इन क्षेत्रों को शामिल किया, जिससे भारत ने असहमति व्यक्त की। यह विवाद सतलज नदी के स्रोत और लगभग 3700 वर्गRead more
भारत-नेपाल के मध्य विवादास्पद मामले
1. सिमा विवाद:
- कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिंपियाधुरा क्षेत्र भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद का मुख्य कारण है। नेपाल ने 2020 में अपनी नई राजनीतिक मानचित्र में इन क्षेत्रों को शामिल किया, जिससे भारत ने असहमति व्यक्त की। यह विवाद सतलज नदी के स्रोत और लगभग 3700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेकर है।
2. जल वितरण विवाद:
- कोसी और गंडक नदियाँ पर जल वितरण को लेकर विवाद जारी है। नेपाल ने बाढ़ प्रबंधन और जल वितरण के लिए भारत पर आरोप लगाया है, जबकि भारत ने नेपाल के जल प्रबंधन को दोषी ठहराया है।
3. राजनीतिक और कूटनीतिक तनाव:
- नेपाल ने भारत पर अंतर्राष्ट्रीय मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया है, विशेषकर नेपाल की आंतरिक राजनीति में। भारत ने नेपाल के साथ चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंताओं का इज़हार किया है।
हालिया उदाहरण:
- 2022 में, नेपाल ने भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर सामरिक दृष्टिकोण अपनाया, और यह क्षेत्रीय और द्विपक्षीय संबंधों में तनाव का कारण बना।
निष्कर्ष
भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद, जल वितरण समस्याएँ, और राजनीतिक तनाव प्रमुख विवादास्पद मुद्दे हैं। इन विवादों का समाधान दोनों देशों के लिए सकारात्मक द्विपक्षीय संबंध और स्थिरता के लिए आवश्यक है।
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अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सकारात्मक पक्ष: आर्थिक अवसर: भारत की अफ्रीका में बढ़ती रुचि ने कई आर्थिक अवसर प्रदान किए हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने 2023 में नाइजीरिया और केन्या के ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश किए हैं। भारत-अफ्रीका व्यापार मंच और द्विपक्षीय व्यापार मेRead more
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष
सकारात्मक पक्ष:
नकारात्मक पक्ष:
निष्कर्ष: अफ्रीका में भारत की बढ़ती रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। आर्थिक, रणनीतिक और शैक्षिक लाभ के साथ-साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, संसाधन निर्भरता और स्थानीय विरोध के जोखिम भी जुड़े हैं। इन पहलुओं को संतुलित करना भारत की अफ्रीका के साथ बढ़ती हुई साझेदारी की सफलता के लिए आवश्यक है।
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