“धर्मनिरपेक्षतावाद अभिमुखन व व्यवहार के एक समुच्चय के रूप में उदारवादी लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिये अपरिहार्य है” विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है। 2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्म और नृजातीय हिंसा कीRead more
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है।
2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति
धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति आमतौर पर धार्मिक और जातीय आधार पर समाज में विभाजन और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। यह राजनीति धर्म और जाति के नाम पर संघर्ष और अशांति को उत्तेजित करती है, जिससे एकता और सामूहिक शांति प्रभावित होती है।
3. हाल के उदाहरण
धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षीकरण के सिद्धांत के विपरीत, हिंसा और धार्मिक तनाव के उदाहरण हाल ही में देखने को मिले हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विवादों ने धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। दिल्ली हिंसा (2020) भी इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे धार्मिक और जातीय आधार पर राजनीति हिंसा को जन्म देती है।
4. धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियाँ
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति को धार्मिक पहचान और जातीय राजनीति द्वारा चुनौती दी जाती है। जब राजनीतिक दल धार्मिक वोटबैंक को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाते हैं, तो इससे धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना प्रभावित होती है। पोलराइजेशन और साम्प्रदायिक बयानबाज़ी भी इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
5. समाधान और भविष्य
धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के लिए, समाज में समरसता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षा और संवाद के माध्यम से धार्मिक और जातीय सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के अधिकारों की रक्षा करना धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार, धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के विपरीत जाती है और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
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धर्मनिरपेक्षतावाद अभिमुखन व व्यवहार के एक समुच्चय के रूप में उदारवादी लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिये अपरिहार्य है परिचय: धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। एक उदारवादी लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिरता औRead more
धर्मनिरपेक्षतावाद अभिमुखन व व्यवहार के एक समुच्चय के रूप में उदारवादी लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिये अपरिहार्य है
परिचय: धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। एक उदारवादी लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिरता और प्रगति के लिए धर्मनिरपेक्षता अत्यंत आवश्यक है।
1. धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता: धर्मनिरपेक्षता का अभ्यास समाज में धार्मिक विविधता को संरक्षित करने और विभिन्न समुदायों के बीच समरसता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए, 2019 में हुए CAA विरोध प्रदर्शन में यह स्पष्ट हुआ कि किसी एक धर्म के प्रति पक्षपाती नीतियां सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती हैं। एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि सभी धार्मिक समूहों को समान अवसर और सुरक्षा मिलती है।
2. लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा: धर्मनिरपेक्षतावाद लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और न्याय शामिल हैं। यदि राज्य धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, तो यह संविधान की भावना के खिलाफ होता है। उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2021 में ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम था जो धर्मनिरपेक्षता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
3. धार्मिक कट्टरता के खिलाफ सुरक्षा: धर्मनिरपेक्षता धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी धर्म या संप्रदाय के प्रभाव से कानून और नीतियां प्रभावित न हों। 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान देखा गया कि धार्मिक भावनाओं को भड़काने से लोकतांत्रिक ताने-बाने को नुकसान पहुँच सकता है। धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने से ऐसी घटनाओं को रोकने में मदद मिलती है।
4. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में धर्मनिरपेक्षता: धर्मनिरपेक्षता भारत को एक वैश्विक मंच पर एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में स्थापित करती है। यह भारत की सॉफ्ट पावर को भी बढ़ावा देता है, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सहिष्णुता और विविधता के आदर्शों को दर्शाता है। G20 शिखर सम्मेलन 2023 के दौरान भारत ने विविधता और समावेशिता के अपने दृष्टिकोण को प्रमुखता से प्रस्तुत किया।
निष्कर्ष: धर्मनिरपेक्षता न केवल भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की बुनियाद है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, न्याय और वैश्विक पहचान के लिए भी अपरिहार्य है। एक मजबूत और प्रगतिशील लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिए धर्मनिरपेक्षतावाद का संरक्षण और पालन आवश्यक है।
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