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"धर्मनिरपेक्षतावाद अभिमुखन व व्यवहार के एक समुच्चय के रूप में उदारवादी लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिये अपरिहार्य है" विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
धर्मनिरपेक्षतावाद अभिमुखन व व्यवहार के एक समुच्चय के रूप में उदारवादी लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिये अपरिहार्य है परिचय: धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। एक उदारवादी लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिरता औRead more
धर्मनिरपेक्षतावाद अभिमुखन व व्यवहार के एक समुच्चय के रूप में उदारवादी लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिये अपरिहार्य है
परिचय: धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। एक उदारवादी लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिरता और प्रगति के लिए धर्मनिरपेक्षता अत्यंत आवश्यक है।
1. धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता: धर्मनिरपेक्षता का अभ्यास समाज में धार्मिक विविधता को संरक्षित करने और विभिन्न समुदायों के बीच समरसता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए, 2019 में हुए CAA विरोध प्रदर्शन में यह स्पष्ट हुआ कि किसी एक धर्म के प्रति पक्षपाती नीतियां सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती हैं। एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि सभी धार्मिक समूहों को समान अवसर और सुरक्षा मिलती है।
2. लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा: धर्मनिरपेक्षतावाद लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और न्याय शामिल हैं। यदि राज्य धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, तो यह संविधान की भावना के खिलाफ होता है। उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2021 में ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम था जो धर्मनिरपेक्षता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
3. धार्मिक कट्टरता के खिलाफ सुरक्षा: धर्मनिरपेक्षता धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी धर्म या संप्रदाय के प्रभाव से कानून और नीतियां प्रभावित न हों। 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान देखा गया कि धार्मिक भावनाओं को भड़काने से लोकतांत्रिक ताने-बाने को नुकसान पहुँच सकता है। धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने से ऐसी घटनाओं को रोकने में मदद मिलती है।
4. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में धर्मनिरपेक्षता: धर्मनिरपेक्षता भारत को एक वैश्विक मंच पर एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में स्थापित करती है। यह भारत की सॉफ्ट पावर को भी बढ़ावा देता है, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सहिष्णुता और विविधता के आदर्शों को दर्शाता है। G20 शिखर सम्मेलन 2023 के दौरान भारत ने विविधता और समावेशिता के अपने दृष्टिकोण को प्रमुखता से प्रस्तुत किया।
निष्कर्ष: धर्मनिरपेक्षता न केवल भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की बुनियाद है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, न्याय और वैश्विक पहचान के लिए भी अपरिहार्य है। एक मजबूत और प्रगतिशील लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिए धर्मनिरपेक्षतावाद का संरक्षण और पालन आवश्यक है।
See lessधर्म तथा नृजातीय हिंसा की राजनीति मूलतः धर्मनिरपेक्षवाद तथा धर्मनिरपेक्षीकरण की राजनीति हैं। कथन कस समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है। 2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्म और नृजातीय हिंसा कीRead more
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है।
2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति
धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति आमतौर पर धार्मिक और जातीय आधार पर समाज में विभाजन और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। यह राजनीति धर्म और जाति के नाम पर संघर्ष और अशांति को उत्तेजित करती है, जिससे एकता और सामूहिक शांति प्रभावित होती है।
3. हाल के उदाहरण
धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षीकरण के सिद्धांत के विपरीत, हिंसा और धार्मिक तनाव के उदाहरण हाल ही में देखने को मिले हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विवादों ने धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। दिल्ली हिंसा (2020) भी इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे धार्मिक और जातीय आधार पर राजनीति हिंसा को जन्म देती है।
4. धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियाँ
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति को धार्मिक पहचान और जातीय राजनीति द्वारा चुनौती दी जाती है। जब राजनीतिक दल धार्मिक वोटबैंक को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाते हैं, तो इससे धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना प्रभावित होती है। पोलराइजेशन और साम्प्रदायिक बयानबाज़ी भी इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
5. समाधान और भविष्य
धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के लिए, समाज में समरसता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षा और संवाद के माध्यम से धार्मिक और जातीय सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के अधिकारों की रक्षा करना धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार, धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के विपरीत जाती है और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
See lessधर्मनिरपेक्षता पर भारतीय वाद-विवाद, पश्चिम में वाद-विवादों से किस प्रकार भिन्न हैं ? (150 words) [UPSC 2014]
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं: भारतीय वाद-विवाद: सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधितRead more
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं:
भारतीय वाद-विवाद:
सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधित है।
संविधानिक दृष्टिकोण: भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को एक सक्रिय सिद्धांत मानता है, जिसमें राज्य का धर्मों से निष्पक्षता सुनिश्चित करने का उद्देश्य है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय राज्य को किसी भी धार्मिक समूह के पक्षपाती बनाने से रोकती है।
पश्चिमी वाद-विवाद:
धर्म और राज्य का अलगाव: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव से होता है। यहाँ धार्मिक संस्थाओं और सरकारी कार्यों के बीच कोई भी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
लैटिट्यूड की अवधारणा: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता को एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के रूप में देखा जाता है, जिसमें धार्मिक विश्वासों को सार्वजनिक नीतियों पर प्रभाव डालने की अनुमति नहीं होती।
इस प्रकार, भारतीय धर्मनिरपेक्षता सांस्कृतिक समावेशन और विविधता को प्रोत्साहित करती है, जबकि पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव पर जोर देती है।
See lessभारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुआ है न कि 'समान दूरी'। टिप्पणी कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुए है, न कि 'समान दूरी'। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्यRead more
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुए है, न कि ‘समान दूरी’। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्य धार्मिक मामलों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, लेकिन कुछ धार्मिक समूहों के प्रति विशेष ध्यान या समर्थन भी हो सकता है।
इस प्रकार, ‘सैद्धांतिक दूरी’ का मतलब है कि सरकार और अन्य संस्थान धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी धार्मिक समूहों के साथ समान दूरी बनाए रखी जाए। इससे पंथनिरपेक्षता के आदर्शों और व्यावहारिक कार्यान्वयन में असमानता का अनुभव हो सकता है, जो समाज में धार्मिक तटस्थता की परिभाषा और उसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
See lessजातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं न कि आदिम पहचान से। चर्चा कीजिये । (200 Words) [UPPSC 2022]
जातीय गठजोड़: धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न प्रारंभ भारतीय राजनीति में जातीय गठजोड़ का सिद्धान्त है। कुछ लोगों का मानना है कि जातीय पहचान आदिम तथा अपरिवर्तनशील है, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं। इस चर्चा में हम देखेंगे कि जRead more
जातीय गठजोड़: धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न
प्रारंभ
भारतीय राजनीति में जातीय गठजोड़ का सिद्धान्त है। कुछ लोगों का मानना है कि जातीय पहचान आदिम तथा अपरिवर्तनशील है, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं। इस चर्चा में हम देखेंगे कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं, न कि आदिम पहचान से।
धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारक
आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व: ब्रिटिश साम्राज्य की अवधि में जातियों के लिए आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व की नीति ने जातिय आधारित राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई। यह नीति ने जातिय आधारित दलों और गठजोड़ों की स्थापना में सहायता की, जिनकी política पावर और लाभ प्राप्त करने में अधिक रुचि थी न कि आदिम पहचान से।
recent example
2019 लोक सभा चुनावों में कई राज्यों में जातीय गठजोड़ों की स्थापना देखी गई। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी तथा राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठजोड़ा बनाया। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस तथा अन्य दलों के साथ गठजोड़ा बनाया।
समाप्ति
See lessधर्मनिरपेक्षतावाद की भारतीय संकल्पना, धर्मनिरपेक्षतावाद के पाश्चात्य माडल से किन-किन बातों में भिन्न है ? चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
भारतीय संकल्पना और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षतावाद के भिन्नताएँ परिचय: धर्मनिरपेक्षता, या secularism, विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भिन्न-भिन्न होती है। भारतीय और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षता के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं। भारतीय संकल्पना: सहिष्णुता और समानता: भRead more
भारतीय संकल्पना और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षतावाद के भिन्नताएँ
परिचय: धर्मनिरपेक्षता, या secularism, विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भिन्न-भिन्न होती है। भारतीय और पाश्चात्य मॉडल में धर्मनिरपेक्षता के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं।
भारतीय संकल्पना:
पाश्चात्य मॉडल:
निष्कर्ष: भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता में मूल अंतर उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ से उत्पन्न होता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता धार्मिक विविधता को स्वीकार करती है और सरकारी समर्थन प्रदान करती है, जबकि पाश्चात्य मॉडल धर्म और राज्य के बीच सख्त अलगाव पर जोर देता है।
See lessधर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं ? (250 words) [UPSC 2019]
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सांस्कृतिक प्रथाओं की चुनौतियाँ परिचय: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हालांकि, इस धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न होतीRead more
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सांस्कृतिक प्रथाओं की चुनौतियाँ
परिचय: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हालांकि, इस धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। ये चुनौतियाँ विभिन्न सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोणों से उभरती हैं, जो सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने की जटिलताओं को दर्शाती हैं।
सांस्कृतिक प्रथाओं पर चुनौतियाँ:
हाल की घटनाएँ: हाल ही में, “गैर-मुस्लिम परंपराओं की कानूनी मान्यता” जैसे मुद्दे भी उभरे हैं, जहां धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं को संविधान के अनुसार सुरक्षित रखने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इससे विवाद और टकराव की स्थिति भी पैदा होती है।
निष्कर्ष: धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक प्रथाओं के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल चुनौती है। यह आवश्यक है कि हम धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करें, जबकि संविधान और कानूनी दृष्टिकोण की सीमाओं का भी सम्मान करें। सांस्कृतिक संवाद और धार्मिक सहिष्णुता के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान खोजा जा सकता है।
See lessक्या सहिष्णुता, सम्मिलन एवं बहुलता मुख्य तत्त्व हैं जो धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप का निर्माण करते हैं ? तर्कसंगत उत्तर दें। (250 words) [UPSC 2022]
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप में सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के तत्त्व धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप: धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के मूल तत्वों पर आधारित है, जो भारत की विविधता को स्वीकार करने और सभी धार्मिक मान्यताओं को समान मान्यता देने के सिद्धांतों पर जोर देRead more
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय रूप में सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के तत्त्व
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के मूल तत्वों पर आधारित है, जो भारत की विविधता को स्वीकार करने और सभी धार्मिक मान्यताओं को समान मान्यता देने के सिद्धांतों पर जोर देते हैं।
सहिष्णुता:
सम्मिलन:
बहुलता:
निष्कर्ष:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय रूप सहिष्णुता, सम्मिलन, और बहुलता के सिद्धांतों पर आधारित है। ये तत्त्व भारतीय समाज की विविधता और एकता को बनाए रखने में सहायक हैं और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को गहराई प्रदान करते हैं।
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