भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुआ है न कि ‘समान दूरी’। टिप्पणी कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है। 2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्म और नृजातीय हिंसा कीRead more
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है।
2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति
धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति आमतौर पर धार्मिक और जातीय आधार पर समाज में विभाजन और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। यह राजनीति धर्म और जाति के नाम पर संघर्ष और अशांति को उत्तेजित करती है, जिससे एकता और सामूहिक शांति प्रभावित होती है।
3. हाल के उदाहरण
धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षीकरण के सिद्धांत के विपरीत, हिंसा और धार्मिक तनाव के उदाहरण हाल ही में देखने को मिले हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विवादों ने धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। दिल्ली हिंसा (2020) भी इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे धार्मिक और जातीय आधार पर राजनीति हिंसा को जन्म देती है।
4. धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियाँ
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति को धार्मिक पहचान और जातीय राजनीति द्वारा चुनौती दी जाती है। जब राजनीतिक दल धार्मिक वोटबैंक को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाते हैं, तो इससे धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना प्रभावित होती है। पोलराइजेशन और साम्प्रदायिक बयानबाज़ी भी इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
5. समाधान और भविष्य
धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के लिए, समाज में समरसता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षा और संवाद के माध्यम से धार्मिक और जातीय सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के अधिकारों की रक्षा करना धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार, धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के विपरीत जाती है और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
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भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुए है, न कि 'समान दूरी'। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्यRead more
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुए है, न कि ‘समान दूरी’। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्य धार्मिक मामलों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, लेकिन कुछ धार्मिक समूहों के प्रति विशेष ध्यान या समर्थन भी हो सकता है।
इस प्रकार, ‘सैद्धांतिक दूरी’ का मतलब है कि सरकार और अन्य संस्थान धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी धार्मिक समूहों के साथ समान दूरी बनाए रखी जाए। इससे पंथनिरपेक्षता के आदर्शों और व्यावहारिक कार्यान्वयन में असमानता का अनुभव हो सकता है, जो समाज में धार्मिक तटस्थता की परिभाषा और उसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
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