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हिन्दू विवाह की प्रकृति और धारणा में क्या परिवर्तन हुए हैं? समझाइए।
हिन्दू विवाह की प्रकृति और धारणा में परिवर्तन 1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पारंपरिक हिन्दू विवाह को एक सांस्कारिक (संसकार) संस्कार के रूप में देखा जाता था, जो धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ा होता था। यह एक स्थायी प्रतिबद्धता मानी जाती थी, जिसमें सामाजिक जिम्मेदारियों और पारिवारिक सम्मान पर जोरRead more
हिन्दू विवाह की प्रकृति और धारणा में परिवर्तन
1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
पारंपरिक हिन्दू विवाह को एक सांस्कारिक (संसकार) संस्कार के रूप में देखा जाता था, जो धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ा होता था। यह एक स्थायी प्रतिबद्धता मानी जाती थी, जिसमें सामाजिक जिम्मेदारियों और पारिवारिक सम्मान पर जोर दिया जाता था।
पारंपरिक हिन्दू विवाह के प्रमुख पहलू:
2. आधुनिकता और बदलते परिदृश्य
समय के साथ, सामाजिक, आर्थिक और कानूनी बदलावों ने हिन्दू विवाह की प्रकृति और धारणा को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है। निम्नलिखित परिवर्तन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
A. विवाह के प्रकार में बदलाव
B. कानूनी सुधार और लिंग समानता
C. सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव
D. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
हालिया उदाहरण
निष्कर्ष
हिन्दू विवाह की प्रकृति और धारणा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जो आधुनिकता, कानूनी सुधार, बदलते सामाजिक दृष्टिकोण और आर्थिक कारकों के कारण हैं। पारंपरिक व्यवस्थित विवाह से लेकर प्रेम विवाह, अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह की स्वीकृति, और विविध पारिवारिक संरचनाओं तक, ये परिवर्तन समकालीन भारतीय समाज और विवाह संबंधों के दृष्टिकोण को आकार दे रहे हैं।
See lessइस मुद्दे पर चर्चा कीजिये कि क्या और किस प्रकार दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन जाति विनाश की दिशा में कार्य करते हैं। (200 words) [UPSC 2015]
दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन और जाति विनाश दलित प्राख्यान का सशक्तिकरण समकालीन दलित आंदोलन दलित प्राख्यान (identity assertion) पर जोर देते हैं, जिसमें दलित समुदायों के इतिहास, संस्कृति और उनकी सामाजिक स्थिति की पहचान और सम्मान शामिल है। ये आंदोलन दलितों की सम्मानजनक पहचान और सामाजिक न्यRead more
दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन और जाति विनाश
दलित प्राख्यान का सशक्तिकरण
समकालीन दलित आंदोलन दलित प्राख्यान (identity assertion) पर जोर देते हैं, जिसमें दलित समुदायों के इतिहास, संस्कृति और उनकी सामाजिक स्थिति की पहचान और सम्मान शामिल है। ये आंदोलन दलितों की सम्मानजनक पहचान और सामाजिक न्याय के लिए काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने दलित समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जाति प्रणाली के खिलाफ संघर्ष
हालांकि ये आंदोलन दलितों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन जाति प्रणाली का पूर्ण विनाश इन आंदोलनों का केंद्रीय लक्ष्य नहीं होता। अधिकांश आंदोलन सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। रोहित वेमुला का मामला 2016 में जातिगत भेदभाव की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला था, जिसने सुधार की मांग को गति दी लेकिन जाति प्रणाली के मूल कारणों को खत्म नहीं किया।
हालिया उदाहरण
अम्बेडकराइट आंदोलन डॉ. भीमराव अंबेडकर के दृष्टिकोण पर आधारित है और जाति प्रणाली के खिलाफ बौद्ध धर्म को अपनाने का समर्थन करता है। दूसरी ओर, SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम दलितों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है लेकिन जाति भेदभाव के मूल कारणों का समाधान नहीं करता।
निष्कर्ष
See lessसमकालीन दलित आंदोलन दलित पहचान और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं। हालांकि, जाति का पूर्ण विनाश एक जटिल चुनौती है, जिसे पहचान assertion के अलावा सामाजिक, कानूनी और सांस्कृतिक परिवर्तनों की आवश्यकता है।
भारत में आन्तरिक मानव प्रवास के कारणों एवं परिणामों की व्याख्या कीजिए । (200 Words) [UPPSC 2023]
भारत में आन्तरिक मानव प्रवास के कारण: आर्थिक अवसर: ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी केंद्रों की ओर प्रवास का प्रमुख कारण बेहतर रोजगार के अवसर और उच्च वेतन की खोज है। औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्रों का विकास लोगों को शहरों की ओर आकर्षित करता है। शैक्षिक अवसर: उच्च शिक्षा और विशेष प्रशिक्षण के लिए छात्रों औरRead more
भारत में आन्तरिक मानव प्रवास के कारण:
आन्तरिक मानव प्रवास के परिणाम:
इस प्रकार, आन्तरिक मानव प्रवास भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, जिससे शहरीकरण, आर्थिक विकास, और क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
See lessबहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज को समझने में क्या जाति की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है ? उदाहरणों सहित विस्तृत उत्तर दीजिए। (150 words)[UPSC 2020]
परिचय भारत एक बहु-सांस्कृतिक समाज है, जिसमें जाति प्राचीन काल से सामाजिक संरचना का एक प्रमुख हिस्सा रही है। हालांकि आधुनिक युग में लोकतंत्र और संवैधानिक सुधारों के बाद जातिगत भेदभाव पर कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अब भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बनी हुई है। जाति कRead more
परिचय
भारत एक बहु-सांस्कृतिक समाज है, जिसमें जाति प्राचीन काल से सामाजिक संरचना का एक प्रमुख हिस्सा रही है। हालांकि आधुनिक युग में लोकतंत्र और संवैधानिक सुधारों के बाद जातिगत भेदभाव पर कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अब भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बनी हुई है।
जाति की प्रासंगिकता
आज के समय में जाति आधारित असमानताएं और भेदभाव कम होने के बावजूद पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा और रोजगार में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की नीति जाति की प्रासंगिकता को दर्शाती है। इसके अलावा, राजनीति में जाति आधारित वोट बैंक का भी प्रभाव बना हुआ है, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जातिगत समीकरणों का चुनावी परिणामों पर सीधा प्रभाव देखा जा सकता है।
समाप्ति की ओर कदम
हालांकि शहरीकरण और शिक्षा के विस्तार के साथ जातिगत पहचान कम होती दिख रही है, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में जाति अभी भी सामाजिक संबंधों और विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, दलित अत्याचार के मामले अब भी सामने आते हैं, जो जाति की प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
See lessइस प्रकार, भले ही भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव समाप्त करने की दिशा में प्रयास जारी हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अभी भी बहु-सांस्कृतिक समाज के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में निहित है।
पिछले चार दशकों में, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन **1. आंतरिक श्रमिक प्रवसन पिछले चार दशकों में आंतरिक श्रमिक प्रवसन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। ग्रामीण-से-शहरी प्रवसन में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग बेहतर रोजगार के अवसरों की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहेRead more
भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन
**1. आंतरिक श्रमिक प्रवसन
पिछले चार दशकों में आंतरिक श्रमिक प्रवसन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। ग्रामीण-से-शहरी प्रवसन में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग बेहतर रोजगार के अवसरों की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों में काम की तलाश में जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) और अधोसंरचना परियोजनाओं ने नए प्रवसन केंद्रों को जन्म दिया है।
**2. अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक प्रवसन
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक प्रवसन में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। मध्य पूर्व के देशों, जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, में भारतीय श्रमिकों की बड़ी संख्या रही है, विशेष रूप से निर्माण और घरेलू कामकाजी क्षेत्रों में। हाल के वर्षों में, उच्च-कौशल वाले श्रमिकों के लिए प्रवसन का रुझान संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की ओर बढ़ा है। उदाहरण के लिए, H-1B वीजा कार्यक्रम ने अमेरिकी आईटी उद्योग में भारतीय पेशेवरों को आकर्षित किया है।
**3. हाल के उदाहरण और बदलाव
COVID-19 महामारी के दौरान, प्रवसन पैटर्न में उलटा प्रवसन देखा गया जब लाखों श्रमिक नौकरी छूटने और लॉकडाउन के कारण अपने गांवों की ओर लौटे। भारतीय सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसी नीतियों के माध्यम से प्रवासियों की मदद की है।
**4. नीति और आर्थिक कारक
राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी नीतियों ने रोजगार के अवसरों को सुधारने और प्रवसन की आवश्यकता को कम करने का प्रयास किया है। वैश्वीकरण और डिजिटल परिवर्तन जैसे आर्थिक कारक भी श्रमिक प्रवसन को प्रभावित कर रहे हैं, जिसमें रिमोट वर्क और डिजिटल नोमैडिज़्म का बढ़ता महत्व शामिल है।
इस प्रकार, भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में आर्थिक, सामाजिक और नीति संबंधी बदलावों के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
See less'हिन्दू संस्कारों' पर विश्लेषणात्मक दृष्टि डालिए।
हिन्दू संस्कारों पर विश्लेषणात्मक दृष्टि हिन्दू संस्कार वे धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान हैं जो जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्ति के विकास और सामाजिक स्वीकृति को सुनिश्चित करते हैं। ये संस्कार न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करते हैं। इस विश्लेषण में हमRead more
हिन्दू संस्कारों पर विश्लेषणात्मक दृष्टि
हिन्दू संस्कार वे धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान हैं जो जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्ति के विकास और सामाजिक स्वीकृति को सुनिश्चित करते हैं। ये संस्कार न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करते हैं। इस विश्लेषण में हम संस्कारों के ऐतिहासिक संदर्भ, प्रमुख संस्कारों, क्षेत्रीय भिन्नताओं, और समकालीन प्रासंगिकता पर ध्यान देंगे।
1. ऐतिहासिक संदर्भ और विकास:
2. प्रमुख संस्कार और उनका महत्व:
3. क्षेत्रीय भिन्नताएँ और विविधताएँ:
4. समकालीन प्रासंगिकता और चुनौतियाँ:
5. हाल के उदाहरण और सुधार:
निष्कर्ष
हिन्दू संस्कारों की विविधता और गहराई उनके धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक महत्व को दर्शाती है। ये संस्कार व्यक्ति के जीवन के विभिन्न चरणों में मार्गदर्शन और सामाजिक स्वीकृति प्रदान करते हैं। जबकि कुछ संस्कार पारंपरिक और धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हैं, आधुनिक समय में उन्हें समकालीन जीवनशैली और सामाजिक मानकों के अनुरूप बदलने और सुधारने की आवश्यकता भी है। इस प्रकार, हिन्दू संस्कार न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं, बल्कि समाज में परिवर्तन और समावेशिता की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessभारत को एक समिश्रित सांस्कृतिक समाज होने के लाभों का वर्णन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
भारत के समिश्रित सांस्कृतिक समाज के लाभ सांस्कृतिक समृद्धि: विविधता में एकता के सिद्धांत पर आधारित भारत की समिश्रित संस्कृति ने एक समृद्ध और रंगीन सांस्कृतिक धरोहर को जन्म दिया, जिसमें विभिन्न परंपराएँ, त्योहार और भाषाएँ शामिल हैं। सामाजिक सामंजस्य: विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बीच सह-अस्तित्व औRead more
भारत के समिश्रित सांस्कृतिक समाज के लाभ
निष्कर्ष: भारत का समिश्रित सांस्कृतिक समाज उसकी सामाजिक, आर्थिक और वैश्विक ताकत को बढ़ाता है, और एकता तथा विविधता के बीच सामंजस्य बनाए रखता है।
See lessसंयुक्त परिवार का जीवन चक्र सामाजिक मूल्यों के बजाय आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। चर्चा कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। आर्थिक कारक: वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता हैRead more
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।
आर्थिक कारक:
वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता है। घर के विभिन्न सदस्यों की आय और खर्च मिलाकर परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।
भरण-पोषण की लागत: बढ़ती लागत और महंगाई के कारण परिवार आर्थिक रूप से एकजुट रहना पसंद करते हैं। यह विशेष रूप से वृद्ध माता-पिता की देखभाल और बच्चों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण होता है।
सामाजिक मूल्य:
परंपरा और संस्कृति: पारंपरिक भारतीय समाज में संयुक्त परिवार सामाजिक मूल्यों जैसे परिवार की एकता, देखभाल और सम्मान को बढ़ावा देता है।
समाज में स्वीकार्यता: कुछ मामलों में, संयुक्त परिवार का अस्तित्व सामाजिक मान्यताओं और पारंपरिक धारणाओं पर निर्भर करता है।
हालांकि सामाजिक मूल्यों का महत्व रहता है, आर्थिक कारक आज के समय में संयुक्त परिवार की स्थिरता और अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessभारत में विवाहों की हालिया प्रवृतियों पर प्रकाश डालते हुए, व्याख्या कीजिए कि समलैंगिक विवाह के कानूनी समर्थन को मौलिक महत्व का मुद्दा क्यों कहा जा रहा है। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में विवाह की हालिया प्रवृतियों में प्रेम विवाहों का बढ़ता प्रचलन, अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों की स्वीकृति, और विवाह की आयु में वृद्धि देखी गई है। साथ ही, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ने से विवाह में उनकी भूमिका भी बदल रही है। समलैंगिक विवाह के कानूनी समर्थन को मौलिक महत्व का मुद्दा इसRead more
भारत में विवाह की हालिया प्रवृतियों में प्रेम विवाहों का बढ़ता प्रचलन, अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों की स्वीकृति, और विवाह की आयु में वृद्धि देखी गई है। साथ ही, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ने से विवाह में उनकी भूमिका भी बदल रही है।
समलैंगिक विवाह के कानूनी समर्थन को मौलिक महत्व का मुद्दा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह समाज में समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों से जुड़ा है। विवाह का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, और इसका विस्तार समलैंगिक समुदाय तक करना उनके संवैधानिक अधिकारों की मान्यता और सामाजिक स्वीकार्यता का प्रतीक है। यह LGBTQ+ समुदाय के खिलाफ भेदभाव को कम करने, उन्हें सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जिससे समाज में समावेशिता बढ़ेगी।
See lessक्या हमारे राष्ट्र में सर्वत्र लघु भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र हैं ? उदाहरणों के साथ सविस्तार स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
हाँ, हमारे राष्ट्र में सर्वत्र लघु भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र हैं। भारत की विविधता और एकता की विशेषता यह है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक छोटे-छोटे भारत के सांस्कृतिक केन्द्र मौजूद हैं। उदाहरण के लिए: कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र: यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, बौद्ध संस्कृति और जीवन-शैलीRead more
हाँ, हमारे राष्ट्र में सर्वत्र लघु भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र हैं। भारत की विविधता और एकता की विशेषता यह है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक छोटे-छोटे भारत के सांस्कृतिक केन्द्र मौजूद हैं। उदाहरण के लिए:
इस प्रकार, भारत में सांस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है और प्रत्येक क्षेत्र में लघु भारत के केन्द्र मौजूद हैं, जो देश की एकता को प्रदर्शित करते हैं।
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