भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए किस विशिष्ट सन्दर्भ के अन्तर्गत उन्हें किसी एकल श्रेणी में माना जाना चाहिए ? (150 words)[UPSC 2022]
भारतीय समाज पारंपरिक सामाजिक मूल्यों में निरंतरता बनाए रखना और उनके परिवर्तनों का विवरण पारंपरिक सामाजिक मूल्यों में निरंतरता: संस्कार और परंपराएँ: भारतीय समाज में पारंपरिक संस्कार और परंपराएँ जैसे कि अतिथि देवो भवः, परिवार की केंद्रीय भूमिका, और आध्यात्मिकता को विशेष महत्व दिया जाता है। ये मूल्य पीRead more
भारतीय समाज पारंपरिक सामाजिक मूल्यों में निरंतरता बनाए रखना और उनके परिवर्तनों का विवरण
पारंपरिक सामाजिक मूल्यों में निरंतरता:
- संस्कार और परंपराएँ: भारतीय समाज में पारंपरिक संस्कार और परंपराएँ जैसे कि अतिथि देवो भवः, परिवार की केंद्रीय भूमिका, और आध्यात्मिकता को विशेष महत्व दिया जाता है। ये मूल्य पीढ़ियों से संचालित होते आए हैं और समाज में गहराई से जड़े हुए हैं।
- धार्मिक आयोजनों का पालन: भारतीय समाज में विभिन्न धार्मिक उत्सव और आयोजन जैसे कि दिवाली, होली, और ईद को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। ये उत्सव पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने का एक तरीका हैं और समुदाय की एकता को बढ़ावा देते हैं।
- संस्थागत परंपराएँ: पारंपरिक सामाजिक संस्थाएँ जैसे कि पंचायतें और सामाजिक क्लब भी पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से सामुदायिक निर्णय और परंपराओं को संरक्षित किया जाता है।
पारंपरिक मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों का विवरण:
- आर्थिक और सामाजिक बदलाव: भारत में आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के साथ पारंपरिक मूल्यों में बदलाव आ रहा है। शहरीकरण और उद्योगीकरण ने पारंपरिक परिवार संरचनाओं और रोजगार के अवसरों में बदलाव किया है। पारंपरिक संयुक्त परिवार की जगह न्यूक्लियर परिवार की संरचना ने ले ली है।
- शिक्षा और महिलाओं का सशक्तिकरण: महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण ने पारंपरिक लिंग भूमिकाओं में बदलाव किया है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों ने महिलाओं की शिक्षा और कार्यस्थल पर अधिकार को बढ़ावा दिया है। इसके परिणामस्वरूप पारंपरिक सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है।
- सामाजिक मीडिया और तकनीकी परिवर्तन: सामाजिक मीडिया और तकनीकी प्रगति ने पारंपरिक संवाद विधियों और सांस्कृतिक आदतों को बदल दिया है। आज के युवा वैश्विक संस्कृति और आधुनिकता से प्रभावित हो रहे हैं, जिससे पारंपरिक मूल्यों पर प्रभाव पड़ रहा है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता: भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता ने पारंपरिक मूल्यों में बदलाव को बढ़ावा दिया है। नए धार्मिक आंदोलनों और सांस्कृतिक फ्यूजन ने पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती दी है और उन्हें नए संदर्भ में पुनः व्याख्यायित किया है।
निष्कर्ष:
भारतीय समाज पारंपरिक सामाजिक मूल्यों को निरंतर बनाए रखता है, जो संस्कार, धार्मिक आयोजनों, और संस्थागत परंपराओं के माध्यम से संभव होता है। हालांकि, आर्थिक और सामाजिक बदलाव, महिलाओं का सशक्तिकरण, तकनीकी प्रगति, और धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता के चलते इन मूल्यों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे जा रहे हैं। इन परिवर्तनों के साथ संतुलन बनाए रखना और समकालीन संदर्भ में पारंपरिक मूल्यों को पुनर्निर्मित करना भारतीय समाज के लिए एक चुनौती है।
See less
भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए, उन्हें किसी एकल श्रेणी में वर्गीकृत करना कठिन है क्योंकि ये समुदाय सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत विविध हैं। हालांकि, एक विशिष्ट संदर्भ के तहत इनका वर्गीकरण किया जा सकता है: सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: भारत के जनजातीय समुदायोंRead more
भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए, उन्हें किसी एकल श्रेणी में वर्गीकृत करना कठिन है क्योंकि ये समुदाय सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत विविध हैं। हालांकि, एक विशिष्ट संदर्भ के तहत इनका वर्गीकरण किया जा सकता है:
सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: भारत के जनजातीय समुदायों को सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ में एकल श्रेणी में माना जा सकता है, जहां इनकी साझा विशेषताएँ जैसे कि पारंपरिक जीवनशैली, आत्मनिर्भरता, और सामूहिकता पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
ये समुदाय सामान्यतः अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक प्रथाओं और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के साथ जीवनयापन करते हैं। इस दृष्टिकोण से, जनजातीय समुदायों को एकल श्रेणी में “संविधानिक रूप से आदिवासी” के रूप में समझा जा सकता है, जो उनकी विशिष्ट पहचान को सम्मानित करता है और उनके अद्वितीय सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखता है।
See less