पिछले चार दशकों में, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
भारत के समिश्रित सांस्कृतिक समाज के लाभ सांस्कृतिक समृद्धि: विविधता में एकता के सिद्धांत पर आधारित भारत की समिश्रित संस्कृति ने एक समृद्ध और रंगीन सांस्कृतिक धरोहर को जन्म दिया, जिसमें विभिन्न परंपराएँ, त्योहार और भाषाएँ शामिल हैं। सामाजिक सामंजस्य: विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बीच सह-अस्तित्व औRead more
भारत के समिश्रित सांस्कृतिक समाज के लाभ
- सांस्कृतिक समृद्धि: विविधता में एकता के सिद्धांत पर आधारित भारत की समिश्रित संस्कृति ने एक समृद्ध और रंगीन सांस्कृतिक धरोहर को जन्म दिया, जिसमें विभिन्न परंपराएँ, त्योहार और भाषाएँ शामिल हैं।
- सामाजिक सामंजस्य: विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बीच सह-अस्तित्व और परस्पर सम्मान सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देता है, जो भारत की सामाजिक स्थिरता को बनाए रखता है।
- आर्थिक अवसर: सांस्कृतिक विविधता पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए अवसर प्रदान करती है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।
- वैश्विक पहचान: भारत की विविध संस्कृति उसकी वैश्विक पहचान को मजबूत करती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ता है।
- शैक्षणिक समृद्धि: विविध सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों से शिक्षा और सोच में गहराई आती है, जो छात्रों को वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
निष्कर्ष: भारत का समिश्रित सांस्कृतिक समाज उसकी सामाजिक, आर्थिक और वैश्विक ताकत को बढ़ाता है, और एकता तथा विविधता के बीच सामंजस्य बनाए रखता है।
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भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन **1. आंतरिक श्रमिक प्रवसन पिछले चार दशकों में आंतरिक श्रमिक प्रवसन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। ग्रामीण-से-शहरी प्रवसन में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग बेहतर रोजगार के अवसरों की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहेRead more
भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन
**1. आंतरिक श्रमिक प्रवसन
पिछले चार दशकों में आंतरिक श्रमिक प्रवसन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। ग्रामीण-से-शहरी प्रवसन में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग बेहतर रोजगार के अवसरों की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों में काम की तलाश में जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) और अधोसंरचना परियोजनाओं ने नए प्रवसन केंद्रों को जन्म दिया है।
**2. अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक प्रवसन
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक प्रवसन में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। मध्य पूर्व के देशों, जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, में भारतीय श्रमिकों की बड़ी संख्या रही है, विशेष रूप से निर्माण और घरेलू कामकाजी क्षेत्रों में। हाल के वर्षों में, उच्च-कौशल वाले श्रमिकों के लिए प्रवसन का रुझान संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की ओर बढ़ा है। उदाहरण के लिए, H-1B वीजा कार्यक्रम ने अमेरिकी आईटी उद्योग में भारतीय पेशेवरों को आकर्षित किया है।
**3. हाल के उदाहरण और बदलाव
COVID-19 महामारी के दौरान, प्रवसन पैटर्न में उलटा प्रवसन देखा गया जब लाखों श्रमिक नौकरी छूटने और लॉकडाउन के कारण अपने गांवों की ओर लौटे। भारतीय सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसी नीतियों के माध्यम से प्रवासियों की मदद की है।
**4. नीति और आर्थिक कारक
राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी नीतियों ने रोजगार के अवसरों को सुधारने और प्रवसन की आवश्यकता को कम करने का प्रयास किया है। वैश्वीकरण और डिजिटल परिवर्तन जैसे आर्थिक कारक भी श्रमिक प्रवसन को प्रभावित कर रहे हैं, जिसमें रिमोट वर्क और डिजिटल नोमैडिज़्म का बढ़ता महत्व शामिल है।
इस प्रकार, भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में आर्थिक, सामाजिक और नीति संबंधी बदलावों के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
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