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समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये कि क्या 'भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है या जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण गरीबी है'। (125 Words) [UPPSC 2020]
भारत में गरीबी और जनसंख्या वृद्धि: समालोचनात्मक परीक्षण जनसंख्या वृद्धि का कारण गरीबी: कुलीनता: गरीबी के कारण परिवार नियोजन और शिक्षा की कमी होती है, जिससे जन्म दर उच्च रहती है। उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण लोग बड़े परिवार को आर्थिक सुरक्षा का साधन मानते हैRead more
भारत में गरीबी और जनसंख्या वृद्धि: समालोचनात्मक परीक्षण
जनसंख्या वृद्धि का कारण गरीबी:
गरीबी का कारण जनसंख्या वृद्धि:
निष्कर्ष: भारत में गरीबी और जनसंख्या वृद्धि परस्पर संबंधित हैं। गरीबी जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा देती है, और तेजी से बढ़ती जनसंख्या गरीबी की समस्या को गहरा करती है। दोनों कारकों के बीच की जटिल कड़ी को समझना और सुधारात्मक नीतियाँ लागू करना आवश्यक है।
See lessसमकालीन भारत में प्रमुख महिला संगठनों के योगदानों का अलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
समकालीन भारत में प्रमुख महिला संगठनों के योगदान अधिकार और न्याय: राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) और ब्रेकथ्रू जैसे संगठनों ने महिला अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, कानूनी सुधारों और न्याय की दिशा में प्रयास किए हैं। शिक्षा और कौशल विकास: सेवा (SEWA) और प्रथम जैसे संगठनोंRead more
समकालीन भारत में प्रमुख महिला संगठनों के योगदान
अलोचनात्मक परीक्षण: जबकि ये संगठनों ने महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, उनकी पहुंच और प्रभाव सीमित हो सकते हैं। क्षेत्रीय भिन्नताओं और संसाधनों की कमी उनके काम में बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
निष्कर्ष: प्रमुख महिला संगठनों ने महिलाओं के अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इनकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास और सुधार की आवश्यकता है।
See lessभारत को एक समिश्रित सांस्कृतिक समाज होने के लाभों का वर्णन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
भारत के समिश्रित सांस्कृतिक समाज के लाभ सांस्कृतिक समृद्धि: विविधता में एकता के सिद्धांत पर आधारित भारत की समिश्रित संस्कृति ने एक समृद्ध और रंगीन सांस्कृतिक धरोहर को जन्म दिया, जिसमें विभिन्न परंपराएँ, त्योहार और भाषाएँ शामिल हैं। सामाजिक सामंजस्य: विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बीच सह-अस्तित्व औRead more
भारत के समिश्रित सांस्कृतिक समाज के लाभ
निष्कर्ष: भारत का समिश्रित सांस्कृतिक समाज उसकी सामाजिक, आर्थिक और वैश्विक ताकत को बढ़ाता है, और एकता तथा विविधता के बीच सामंजस्य बनाए रखता है।
See lessपरीक्षण कीजिये कि क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता को कैसे प्रभावित करता है? (125 Words) [UPPSC 2021]
क्षेत्रवाद और राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव क्षेत्रवाद अक्सर राष्ट्रीय एकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब क्षेत्रीय समूह अपने विशेष अधिकार और संसाधनों के लिए संघर्ष करते हैं, तो यह आंतरिक मतभेद और विभाजन को जन्म देता है। उदाहरण के लिए, असम में अलग राज्य की मांग और तेलंगाना आंदोलन ने राज्य और कRead more
क्षेत्रवाद और राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव
क्षेत्रवाद अक्सर राष्ट्रीय एकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब क्षेत्रीय समूह अपने विशेष अधिकार और संसाधनों के लिए संघर्ष करते हैं, तो यह आंतरिक मतभेद और विभाजन को जन्म देता है।
उदाहरण के लिए, असम में अलग राज्य की मांग और तेलंगाना आंदोलन ने राज्य और केंद्र सरकार के बीच तनाव को बढ़ाया, जिससे राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव पड़ा।
आर्थिक असमानता और उचित संसाधन वितरण की कमी भी क्षेत्रवाद को प्रोत्साहित करती है।
हालांकि, संविधानिक प्रावधान और समान विकास योजनाएं जैसे राज्य पुनर्गठन आयोग और नैतिकता के प्रसार ने क्षेत्रीय असंतोष को कम करने में मदद की है, फिर भी क्षेत्रवाद की चुनौती बनी रहती है।
See lessक्या आप सहमत हैं कि शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ अपृथक्करणीय है? व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ: एक अपरिहार्य संबंध शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ अक्सर अपृथक्करणीय होती हैं। जब शहर तेजी से विकसित होते हैं, तो आर्थिक अवसर और सुविधाओं की तलाश में ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। इस तेजी से बढ़ती जनसंख्या की वजह से अवसंरचना और आवास की कमी होती है, जिससे मलिन बसRead more
शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ: एक अपरिहार्य संबंध
शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ अक्सर अपृथक्करणीय होती हैं। जब शहर तेजी से विकसित होते हैं, तो आर्थिक अवसर और सुविधाओं की तलाश में ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
इस तेजी से बढ़ती जनसंख्या की वजह से अवसंरचना और आवास की कमी होती है, जिससे मलिन बस्तियों का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, मुंबई की धारावी और दिल्ली की यमुना पुश्ता जैसे क्षेत्र तेजी से बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप बने हैं।
असमान विकास और विफल योजनाएं इन बस्तियों के अस्तित्व को बनाए रखती हैं। हाल के वर्षों में, स्मार्ट सिटी परियोजनाएँ और आवास योजनाएँ इस समस्या को संबोधित करने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन मलिन बस्तियों की समस्या पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है।
See lessभारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाजी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) किस प्रकार प्रभावित करता है ? (150 words) [UPSC 2014]
भारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाजी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) कई तरीकों से प्रभावित करता है: सामाजिक संरचना: पारंपरिक भूमिकाएँ: पितृतंत्र में महिलाओं की भूमिकाएँ पारंपरिक होती हैं, जैसे घरेलू जिम्मेदारियाँ और परिवार की देखभाल। कामकाजी महिलाओं को अक्सर नौकरी और घर के काम के बीच संतुलनRead more
भारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाजी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) कई तरीकों से प्रभावित करता है:
सामाजिक संरचना:
पारंपरिक भूमिकाएँ: पितृतंत्र में महिलाओं की भूमिकाएँ पारंपरिक होती हैं, जैसे घरेलू जिम्मेदारियाँ और परिवार की देखभाल। कामकाजी महिलाओं को अक्सर नौकरी और घर के काम के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है, जिससे उनकी पेशेवर उन्नति प्रभावित होती है।
सामाजिक मानदंड: पितृतंत्र समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और करियर विकास पर सामाजिक मानदंडों का दबाव रहता है। कार्यस्थल पर भेदभाव और घरेलू दबाव उनकी आत्म-संप्रभुता को सीमित कर सकते हैं।
आर्थिक प्रभाव:
वेतन अंतर: पितृतंत्र के कारण कामकाजी महिलाओं को समान कार्य के लिए पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिल सकता है।
उन्नति के अवसर: करियर में उन्नति के अवसरों पर पितृतंत्र के प्रभाव के कारण कामकाजी महिलाओं को अक्सर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि पदोन्नति और नेतृत्व की भूमिकाओं में कमी।
इन पहलुओं के कारण, मध्यम-वर्गीय कामकाजी महिलाओं की अवस्थिति पितृतंत्र के प्रभाव में होती है, जिससे उनके पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में असंतुलन और चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
See lessक्या कारण है कि भारत के कुछ अत्यधिक समृद्ध प्रदेशों में महिलाओं के लिए प्रतिकूल स्त्री-पुरुष अनुपात है ? अपने तर्क पेश कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
भारत के कुछ अत्यधिक समृद्ध प्रदेशों में महिलाओं के लिए प्रतिकूल स्त्री-पुरुष अनुपात के पीछे कई कारण हैं: आर्थिक और सामाजिक कारक: लिंग चयनात्मक प्रसव: समृद्ध राज्यों में, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में उन्नति के कारण, लिंग चयनात्मक गर्भपात अधिक आम हो गया है। बेटों की वरीयता और सामाजिक दबाव के कारण लड़कRead more
भारत के कुछ अत्यधिक समृद्ध प्रदेशों में महिलाओं के लिए प्रतिकूल स्त्री-पुरुष अनुपात के पीछे कई कारण हैं:
आर्थिक और सामाजिक कारक:
लिंग चयनात्मक प्रसव: समृद्ध राज्यों में, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में उन्नति के कारण, लिंग चयनात्मक गर्भपात अधिक आम हो गया है। बेटों की वरीयता और सामाजिक दबाव के कारण लड़कियों का जन्म दर कम हो गया है।
शिक्षा और जागरूकता: उच्च शिक्षा और जागरूकता वाले क्षेत्रों में, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के बावजूद, यह अक्सर देखा जाता है कि परिवार बेटे की अपेक्षा में लिंग चयनात्मक पद्धतियों को अपनाते हैं।
सामाजिक प्रथाएँ:
पारंपरिक धारणाएँ: समृद्धि के बावजूद, कुछ क्षेत्रों में पारंपरिक धारणाएँ और सांस्कृतिक मान्यताएँ अभी भी बेटों की प्राथमिकता को बढ़ावा देती हैं।
आर्थिक प्रतिस्पर्धा: आर्थिक दबाव और संपत्ति के बंटवारे के डर के कारण, कुछ परिवार लड़कों की अधिक प्राथमिकता देते हैं, जिससे महिलाओं की संख्या में कमी आती है।
इन कारकों के संयोजन ने समृद्ध प्रदेशों में महिलाओं के लिए प्रतिकूल स्त्री-पुरुष अनुपात का कारण बना है।
See lessसंयुक्त परिवार का जीवन चक्र सामाजिक मूल्यों के बजाय आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। चर्चा कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। आर्थिक कारक: वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता हैRead more
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।
आर्थिक कारक:
वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता है। घर के विभिन्न सदस्यों की आय और खर्च मिलाकर परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।
भरण-पोषण की लागत: बढ़ती लागत और महंगाई के कारण परिवार आर्थिक रूप से एकजुट रहना पसंद करते हैं। यह विशेष रूप से वृद्ध माता-पिता की देखभाल और बच्चों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण होता है।
सामाजिक मूल्य:
परंपरा और संस्कृति: पारंपरिक भारतीय समाज में संयुक्त परिवार सामाजिक मूल्यों जैसे परिवार की एकता, देखभाल और सम्मान को बढ़ावा देता है।
समाज में स्वीकार्यता: कुछ मामलों में, संयुक्त परिवार का अस्तित्व सामाजिक मान्यताओं और पारंपरिक धारणाओं पर निर्भर करता है।
हालांकि सामाजिक मूल्यों का महत्व रहता है, आर्थिक कारक आज के समय में संयुक्त परिवार की स्थिरता और अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessऐसे विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिए, जो भारत में कृषि के बढ़ते हुए महिलाकरण को प्रेरित कर रहे हैं। (150 words) [UPSC 2014]
भारत में कृषि के बढ़ते हुए महिलाकरण को प्रेरित करने वाले प्रमुख आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बल निम्नलिखित हैं: आर्थिक बल: परिवारिक श्रम में परिवर्तन: कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है क्योंकि परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए वे भी कृषि में शामिल हो रही हैं। कुपोषण और आर्थिRead more
भारत में कृषि के बढ़ते हुए महिलाकरण को प्रेरित करने वाले प्रमुख आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बल निम्नलिखित हैं:
आर्थिक बल:
परिवारिक श्रम में परिवर्तन: कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है क्योंकि परिवारों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए वे भी कृषि में शामिल हो रही हैं। कुपोषण और आर्थिक दबाव के कारण महिलाओं की भूमिका बढ़ी है।
संरचनात्मक बदलाव: सरकारी योजनाओं और कृषि सब्सिडी ने छोटे और मध्यम किसानों को प्रोत्साहित किया है, जिनमें अक्सर महिलाएँ शामिल होती हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक बल:
शिक्षा और जागरूकता: महिलाओं की शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि ने उन्हें कृषि में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर में वृद्धि महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा दे रही है।
सामाजिक मान्यता: बदलते सामाजिक दृष्टिकोण ने महिलाओं के कृषि कार्यों को मान्यता दी है और पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दी है, जिससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।
इन बलों ने मिलकर भारत में कृषि में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण और प्रभावी बना दिया है।
See lessधर्मनिरपेक्षता पर भारतीय वाद-विवाद, पश्चिम में वाद-विवादों से किस प्रकार भिन्न हैं ? (150 words) [UPSC 2014]
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं: भारतीय वाद-विवाद: सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधितRead more
धर्मनिरपेक्षता पर भारतीय और पश्चिमी वाद-विवादों में प्रमुख भिन्नताएँ हैं:
भारतीय वाद-विवाद:
सांस्कृतिक विविधता: भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब विभिन्न धर्मों की सह-अस्तित्व और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यहाँ धर्मनिरपेक्षता का संदर्भ भारतीय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक विविधता से संबंधित है।
संविधानिक दृष्टिकोण: भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को एक सक्रिय सिद्धांत मानता है, जिसमें राज्य का धर्मों से निष्पक्षता सुनिश्चित करने का उद्देश्य है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय राज्य को किसी भी धार्मिक समूह के पक्षपाती बनाने से रोकती है।
पश्चिमी वाद-विवाद:
धर्म और राज्य का अलगाव: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव से होता है। यहाँ धार्मिक संस्थाओं और सरकारी कार्यों के बीच कोई भी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
लैटिट्यूड की अवधारणा: पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता को एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के रूप में देखा जाता है, जिसमें धार्मिक विश्वासों को सार्वजनिक नीतियों पर प्रभाव डालने की अनुमति नहीं होती।
इस प्रकार, भारतीय धर्मनिरपेक्षता सांस्कृतिक समावेशन और विविधता को प्रोत्साहित करती है, जबकि पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता धर्म और राज्य के पूर्ण अलगाव पर जोर देती है।
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