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भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में वैश्वीकरण ने महिलाओं पर कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डाले हैं। वैश्वीकरण का आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहरा असर पड़ा है, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियाँ भी आई हैं। सकारात्मक प्रभाव: आर्थिक अवसर: रोजगार के अवसर: वैश्वीकरण ने महिलाओंRead more
भारत में वैश्वीकरण ने महिलाओं पर कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डाले हैं। वैश्वीकरण का आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहरा असर पड़ा है, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियाँ भी आई हैं।
सकारात्मक प्रभाव:
आर्थिक अवसर:
रोजगार के अवसर: वैश्वीकरण ने महिलाओं के लिए नए रोजगार के अवसर उत्पन्न किए हैं, विशेषकर सेवाक्षेत्र और आईटी उद्योग में। इससे महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई है।
उद्यमिता: वैश्वीकरण ने महिलाओं को उद्यमिता के अवसर प्रदान किए हैं। वे छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप्स चला रही हैं, जो उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं।
शिक्षा और जागरूकता:
शिक्षा में सुधार: वैश्वीकरण के कारण शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है, जिससे महिलाओं की शिक्षा और पेशेवर कौशल में वृद्धि हुई है। ऑनलाइन शिक्षा और संसाधनों की उपलब्धता ने इस सुधार को बढ़ावा दिया है।
समानता की जागरूकता: वैश्वीकरण ने महिलाओं के अधिकारों और समानता के प्रति जागरूकता बढ़ाई है, जिससे समाज में बदलाव आ रहे हैं।
सामाजिक सशक्तिकरण:
सांस्कृतिक आदान-प्रदान: वैश्वीकरण ने विभिन्न संस्कृतियों के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया, जिससे महिलाओं को विभिन्न सामाजिक सुधारों और आंदोलनों का हिस्सा बनने का अवसर मिला है।
नकारात्मक प्रभाव:
सामाजिक असमानता:
असमानता में वृद्धि: वैश्वीकरण ने कुछ क्षेत्रों में असमानता को बढ़ावा दिया है। उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं और गरीब क्षेत्रों की महिलाओं के बीच अंतर गहरा हो गया है।
तनाव और प्रतिस्पर्धा: वैश्वीकरण के कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने महिलाओं पर मानसिक और शारीरिक तनाव को बढ़ाया है।
संस्कृतिक मान्यताओं का प्रभाव:
संस्कृतिक विसंगतियाँ: वैश्वीकरण के चलते कुछ पारंपरिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ सकती हैं, जिससे महिलाओं को पारंपरिक भूमिकाओं और मान्यताओं से जूझना पड़ सकता है।
कामकाजी परिस्थितियाँ:
कम वेतन और असुरक्षित कार्यस्थल: वैश्वीकरण के कारण कुछ उद्योगों में महिलाओं को कम वेतन और असुरक्षित कार्यस्थलों का सामना करना पड़ सकता है। यह विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र में देखा जाता है।
See lessइस प्रकार, भारत में वैश्वीकरण ने महिलाओं के जीवन पर दोनों सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डाले हैं। एक संतुलित दृष्टिकोण और नीति निर्माण के माध्यम से, इन प्रभावों को प्रबंधित किया जा सकता है ताकि महिलाओं के लिए सकारात्मक बदलाव सुनिश्चित किए जा सकें।
समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या बढ़ती हुई जनसंख्या निर्धनता का मुख्य कारण है या कि निर्धनता जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (200 words) [UPSC 2015]
बढ़ती हुई जनसंख्या और निर्धनता के बीच जटिल संबंध हैं, और यह विवादित प्रश्न है कि क्या बढ़ती जनसंख्या निर्धनता का मुख्य कारण है, या निर्धनता जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। इन दोनों तत्वों के बीच अंतरक्रिया के कई पहलू हैं। जनसंख्या वृद्धि और निर्धनता का संबंध: जनसंख्या वृद्धि का निर्धनता पर प्रभाव:Read more
बढ़ती हुई जनसंख्या और निर्धनता के बीच जटिल संबंध हैं, और यह विवादित प्रश्न है कि क्या बढ़ती जनसंख्या निर्धनता का मुख्य कारण है, या निर्धनता जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। इन दोनों तत्वों के बीच अंतरक्रिया के कई पहलू हैं।
जनसंख्या वृद्धि और निर्धनता का संबंध:
जनसंख्या वृद्धि का निर्धनता पर प्रभाव:
संसाधनों का दबाव: बढ़ती जनसंख्या संसाधनों पर दबाव डालती है, जिससे भोजन, पानी, और आवास की कमी हो सकती है। इससे निर्धनता की स्थिति बढ़ सकती है क्योंकि सीमित संसाधनों का वितरण अधिक जनसंख्या में हो जाता है।
आर्थिक विकास में बाधा: बड़ी जनसंख्या आर्थिक विकास की गति को धीमा कर सकती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे में निवेश की कमी के कारण निर्धनता बढ़ सकती है।
स्वास्थ्य समस्याएँ: अधिक जनसंख्या के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक दबाव पड़ता है, जिससे गरीब तबके की स्वास्थ्य समस्याएँ और निर्धनता बढ़ सकती है।
निर्धनता का जनसंख्या वृद्धि पर प्रभाव:
सामाजिक और आर्थिक दबाव: निर्धनता में जीवनयापन की कठिनाइयाँ और सीमित संसाधन परिवारों को अधिक संतान पैदा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, ताकि वे अपने बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए अधिक संतान चाहते हैं।
शिक्षा और जागरूकता की कमी: निर्धनता अक्सर शिक्षा और परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता की कमी के साथ जुड़ी होती है। यह अधिक जनसंख्या वृद्धि की ओर ले जाती है, क्योंकि परिवार नियोजन और जन्म दर नियंत्रण की सुविधाओं की उपलब्धता कम होती है।
सामाजिक सुरक्षा: गरीब परिवार अक्सर भविष्य की सुरक्षा के लिए अधिक संतान पैदा करते हैं, जो उनके आर्थिक स्थिति को और खराब कर सकती है।
समालोचनात्मक मूल्यांकन:
यह कहना कि केवल एक कारक निर्धनता का मुख्य कारण या जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है, एकतरफा दृष्टिकोण हो सकता है। वास्तविकता में, ये दोनों कारक आपस में जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
समझना आवश्यक है कि:
संपर्क और परस्पर प्रभाव: जनसंख्या वृद्धि और निर्धनता एक-दूसरे पर प्रभाव डालती हैं, और इन दोनों के बीच एक परस्पर प्रभावकारी संबंध होता है।
See lessसमाधान: निर्धनता और जनसंख्या वृद्धि दोनों को संबोधित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक अवसरों में सुधार शामिल हो।
इस प्रकार, दोनों समस्याओं को एक साथ देखने और समाधान की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, बजाय केवल एक को दूसरे का मुख्य कारण मानने के।
भारत के प्रमुख नगर बाढ़ दशाओं से अधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं। विवेचना कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
भारत के प्रमुख नगरों में बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ये नगर बाढ़ दशाओं के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। यह समस्या कई कारकों के संयोजन का परिणाम है: 1. अनियंत्रित शहरीकरण: तेजी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण बाढ़ की समस्या का प्रमुख कारण है। नगरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे प्रRead more
भारत के प्रमुख नगरों में बाढ़ का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ये नगर बाढ़ दशाओं के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। यह समस्या कई कारकों के संयोजन का परिणाम है:
1. अनियंत्रित शहरीकरण:
तेजी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण बाढ़ की समस्या का प्रमुख कारण है। नगरों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ बाधित हो रही हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई और चेन्नई जैसे नगरों में पारंपरिक जल निकासी नालों और जलमार्गों पर अतिक्रमण हो गया है, जिससे भारी वर्षा के समय जल जमाव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. अपर्याप्त और पुराना बुनियादी ढांचा:
भारत के अधिकांश नगरों में जल निकासी और सीवेज प्रणालियाँ पुरानी और अपर्याप्त हैं। अत्यधिक बारिश के दौरान ये प्रणालियाँ पर्याप्त रूप से काम नहीं कर पातीं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। कोलकाता और दिल्ली जैसे नगरों में यह समस्या आम है।
3. जलवायु परिवर्तन:
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अस्थिरता बढ़ रही है, जिससे भारी वर्षा और चक्रवात जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। हाल के वर्षों में बेंगलुरु, गुरुग्राम और पटना जैसे नगरों में असामान्य रूप से भारी बारिश और अचानक बाढ़ की घटनाएँ देखी गई हैं।
4. भूमि उपयोग में बदलाव:
वनों की कटाई, जलाशयों का अतिक्रमण, और भूमि का अनियंत्रित उपयोग बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता है। मुंबई के मीठी नदी और चेन्नई के जलाशयों पर हुए अतिक्रमण इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जहाँ भारी बारिश के दौरान जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है।
5. आपातकालीन प्रतिक्रिया की कमी:
अधिकांश नगरों में बाढ़ से निपटने के लिए पर्याप्त आपातकालीन योजना और तैयारी की कमी है। इसका परिणाम यह होता है कि बाढ़ की स्थिति में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती, जिससे जन-धन की हानि बढ़ जाती है।
इन कारणों से भारत के प्रमुख नगर बाढ़ के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हो गए हैं। बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता से निपटने के लिए शहरी योजना, बुनियादी ढांचे के उन्नयन, और जलवायु अनुकूलन उपायों की तत्काल आवश्यकता है।
See less"गरीबी उन्मूलन की एक अनिवार्य शर्त गरीबों को वंचितता के प्रक्रम से विमुक्त कर देना है।" उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस कथन को पुष्ट कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक अनिवार्य शर्त यह है कि गरीबों को वंचितता के प्रक्रम से विमुक्त किया जाए। वंचितता का अर्थ है संसाधनों, अवसरों, और सेवाओं की कमी, जो गरीबों को गरीबी के चक्र में फँसा कर रखती है। इस चक्र को तोड़ना और गरीबों को सशक्त बनाना गरीबी उन्मूलन के लिए आवश्यक है। उदाहरण 1: शिक्षा औरRead more
गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक अनिवार्य शर्त यह है कि गरीबों को वंचितता के प्रक्रम से विमुक्त किया जाए। वंचितता का अर्थ है संसाधनों, अवसरों, और सेवाओं की कमी, जो गरीबों को गरीबी के चक्र में फँसा कर रखती है। इस चक्र को तोड़ना और गरीबों को सशक्त बनाना गरीबी उन्मूलन के लिए आवश्यक है।
उदाहरण 1: शिक्षा और कौशल विकास
भारत में कई क्षेत्रों में शिक्षा और कौशल विकास की कमी के कारण लोग बेहतर रोजगार के अवसरों से वंचित रहते हैं। सरकार द्वारा चलाए गए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को आवश्यक कौशल प्रदान करके उन्हें रोजगार के लिए तैयार किया जाता है। इस प्रकार, वंचित लोगों को उनकी शिक्षा और कौशल की कमी से मुक्त करके, उन्हें गरीबी से बाहर निकलने का मौका मिलता है।
उदाहरण 2: वित्तीय समावेशन
गरीबों को आर्थिक वंचितता से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) जैसी पहलें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस योजना के माध्यम से लाखों लोगों के बैंक खाते खोले गए, जिससे उन्हें वित्तीय सेवाओं तक पहुंच मिली। इससे गरीब लोग औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में शामिल हो सके, जिससे उन्हें बचत, ऋण, और बीमा जैसी सेवाओं का लाभ मिल सका।
उदाहरण 3: सामाजिक सुरक्षा
गरीबों को सामाजिक वंचितता से मुक्त करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) जैसी योजनाएं लागू की गई हैं। इस योजना के तहत गरीबों को रोजगार का अधिकार दिया गया, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई और उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिली।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि गरीबी उन्मूलन के लिए वंचितता के प्रक्रम से मुक्त करना अनिवार्य है। जब गरीबों को शिक्षा, कौशल, वित्तीय सेवाओं, और सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच मिलती है, तो वे गरीबी के चक्र से बाहर निकल सकते हैं, जिससे गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
See lessभारत में नगरीय जीवन की गुणता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ, 'स्मार्ट नगर कार्यक्रम' के उद्देश्य और रणनीति बताइए। (200 words) [UPSC 2016]
भारत में नगरीय जीवन की गुणवत्ता समय के साथ विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। तीव्र शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, यातायात जाम, प्रदूषण, और अनियंत्रित शहरी विस्तार ने नगरीय जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। शहरी क्षेत्रों में सेवाओं की असमानता, स्वच्छता की कमी, और सुरक्षाRead more
भारत में नगरीय जीवन की गुणवत्ता समय के साथ विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। तीव्र शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, यातायात जाम, प्रदूषण, और अनियंत्रित शहरी विस्तार ने नगरीय जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। शहरी क्षेत्रों में सेवाओं की असमानता, स्वच्छता की कमी, और सुरक्षा संबंधी चिंताओं ने भी जीवन को कठिन बना दिया है। इन समस्याओं को दूर करने और शहरी जीवन को बेहतर बनाने के लिए, भारत सरकार ने 2015 में ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ (Smart City Mission) की शुरुआत की।
स्मार्ट सिटी कार्यक्रम के उद्देश्य:
See lessजीवन की गुणवत्ता में सुधार: नागरिकों के लिए बेहतर आधारभूत सुविधाएँ, जैसे कि स्वच्छ जल, कुशल परिवहन, और स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करना।
सतत् और समावेशी विकास: संसाधनों का कुशल उपयोग करते हुए सतत् विकास को सुनिश्चित करना, जिसमें हरित ऊर्जा, कचरा प्रबंधन, और जल संरक्षण शामिल है।
डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग: सेवाओं की कुशल डिलीवरी के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग, जिससे ई-गवर्नेंस, स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट, और निगरानी प्रणाली स्थापित की जा सके।
रणनीति:
क्षेत्र आधारित विकास: पुराने क्षेत्रों का पुनर्विकास (रेडेवेलपमेंट), नए क्षेत्रों का विकास, और उपयुक्त क्षेत्रों में समग्र विकास की योजना।
पैन-सिटी पहल: पूरे शहर में स्मार्ट समाधान लागू करना, जैसे कि स्मार्ट मीटर, स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम, और ऑनलाइन सेवाएं।
नागरिक भागीदारी: नागरिकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना, जिससे उनके सुझावों और आवश्यकताओं के आधार पर योजनाएं बनाई जा सकें।
सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP): परियोजनाओं को कुशलतापूर्वक लागू करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
‘स्मार्ट सिटी मिशन’ का उद्देश्य भारत के शहरी क्षेत्रों को अधिक रहने योग्य, कुशल, और समृद्ध बनाना है, ताकि नागरिकों को उच्च जीवन स्तर और बेहतर आर्थिक अवसर प्राप्त हो सकें।
प्रादेशिकता का क्या आधार है? क्या ऐसा प्रादेशिक स्तर पर विकास के लाभों के असमान वितरण से हुआ, जिसने कि अंततः प्रादेशिकता को बढ़ावा दिया? अपने उत्तर को पुष्ट कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
प्रादेशिकता (regionalism) का आधार विभिन्न कारकों से जुड़ा होता है, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक भिन्नताएँ शामिल हैं। यह उस भावना या विचारधारा को दर्शाता है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र की पहचान, स्वायत्तता, और विकास के लिए संघर्ष करते हैं। प्रादेशिकता का उभरनाRead more
प्रादेशिकता (regionalism) का आधार विभिन्न कारकों से जुड़ा होता है, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक भिन्नताएँ शामिल हैं। यह उस भावना या विचारधारा को दर्शाता है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र की पहचान, स्वायत्तता, और विकास के लिए संघर्ष करते हैं। प्रादेशिकता का उभरना अक्सर तब होता है जब किसी क्षेत्र के लोग यह महसूस करते हैं कि उनके क्षेत्र को राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया में उचित प्रतिनिधित्व या लाभ नहीं मिला है।
प्रादेशिक स्तर पर विकास के लाभों के असमान वितरण ने प्रादेशिकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब किसी क्षेत्र के लोग देखते हैं कि उनके क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम हुआ है, तो असंतोष उत्पन्न होता है। यह असमानता आर्थिक अवसरों, बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और संसाधनों के वितरण में हो सकती है। उदाहरण के लिए, भारत में पूर्वोत्तर राज्यों, विदर्भ, तेलंगाना, और झारखंड जैसे क्षेत्रों में प्रादेशिकता के आंदोलन इस असमान विकास का परिणाम रहे हैं।
ऐसे क्षेत्र जिनके पास प्राकृतिक संसाधन अधिक होते हैं, लेकिन वे केंद्र या अन्य क्षेत्रों से अपेक्षित लाभ नहीं प्राप्त करते, वे अक्सर प्रादेशिकता की ओर उन्मुख होते हैं। यह भावना तब और मजबूत होती है जब क्षेत्रीय भाषाओं, सांस्कृतिक पहचान, और परंपराओं को भी खतरा महसूस होता है।
इस प्रकार, प्रादेशिकता का आधार मुख्यतः आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक पहचान, और राजनीतिक उपेक्षा में निहित होता है, और यह तब और प्रबल होती है जब क्षेत्रीय विकास के लाभ असमान रूप से वितरित होते हैं।
See lessवैश्वीकरण ने भारत में सांस्कृतिक विविधता के आंतरक (कोर) को किस सीमा तक प्रभावित किया है? स्पष्ट कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
वैश्वीकरण ने भारत में सांस्कृतिक विविधता के आंतरक (कोर) को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, लेकिन इसके प्रभाव द्विमुखी रहे हैं। एक ओर, वैश्वीकरण ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय समाज में नई विचारधाराएं, जीवनशैली, और सांस्कृतिक प्रथाएं प्रवेश कर गईं। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाRead more
वैश्वीकरण ने भारत में सांस्कृतिक विविधता के आंतरक (कोर) को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, लेकिन इसके प्रभाव द्विमुखी रहे हैं। एक ओर, वैश्वीकरण ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय समाज में नई विचारधाराएं, जीवनशैली, और सांस्कृतिक प्रथाएं प्रवेश कर गईं। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव, विशेषकर युवाओं के बीच, स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है—जैसे कि भोजन की आदतों, फैशन, मनोरंजन, और भाषा में।
दूसरी ओर, वैश्वीकरण ने भारत की पारंपरिक सांस्कृतिक विविधता को भी संरक्षित और पुनर्जीवित करने में मदद की है। भारतीय सिनेमा, संगीत, योग, और खानपान जैसी सांस्कृतिक धरोहरें वैश्विक मंच पर प्रसिद्ध हो गई हैं, जिससे भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान मजबूत हुई है। इसके अलावा, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने क्षेत्रीय भाषाओं, लोक कलाओं, और पारंपरिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करने और व्यापक दर्शकों तक पहुँचाने का अवसर प्रदान किया है।
हालांकि, वैश्वीकरण के कारण कुछ हद तक सांस्कृतिक समरूपता (homogenization) का खतरा उत्पन्न हुआ है, लेकिन भारतीय समाज ने अपनी बहुलता और विविधता को कायम रखा है। समग्र रूप से, वैश्वीकरण ने भारत की सांस्कृतिक विविधता के आंतरक को प्रभावित किया है, लेकिन यह प्रभाव संतुलित रहा है, जिसमें भारतीय समाज ने अपनी सांस्कृतिक जड़ों को बनाए रखते हुए नई सांस्कृतिक धाराओं को भी आत्मसात किया है।
See lessआधुनिक भारतीय समाज में परिवार के आकार, संरचना और संबंधों की गतिशीलता को आकार देने में वैश्वीकरण के प्रभाव को उजागर कीजिए।(250 शब्दों में उत्तर दें)
वैश्वीकरण ने आधुनिक भारतीय समाज में परिवार के आकार, संरचना और संबंधों की गतिशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। यह प्रभाव विभिन्न स्तरों पर देखा जा सकता है, जिसमें परिवार की संरचना, पारिवारिक संबंध, और सामाजिक आदतें शामिल हैं। परिवार के आकार और संरचना: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय परिवारों में पRead more
वैश्वीकरण ने आधुनिक भारतीय समाज में परिवार के आकार, संरचना और संबंधों की गतिशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। यह प्रभाव विभिन्न स्तरों पर देखा जा सकता है, जिसमें परिवार की संरचना, पारिवारिक संबंध, और सामाजिक आदतें शामिल हैं।
परिवार के आकार और संरचना: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय परिवारों में पारंपरिक संयुक्त परिवार की बजाय न्यूक्लियर (परमाणु) परिवारों की प्रवृत्ति बढ़ी है। आर्थिक अवसरों और रोजगार के लिए लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिससे परिवार छोटे और अधिक स्वतंत्र बन रहे हैं। यह बदलाव परिवार की परंपरागत संरचना को चुनौती देता है और परिवारों को अधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करता है।
पारिवारिक संबंध: वैश्वीकरण ने पारिवारिक संबंधों में भी परिवर्तन लाया है। पश्चिमी जीवनशैली, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को महत्व दिया जाता है, ने पारंपरिक भारतीय परिवारों में बदलाव किया है। पारिवारिक संरचनाओं में अधिक लचीलापन और आधुनिक दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। इससे संयुक्त परिवारों की परंपरा में कमी आई है और परिवार के सदस्यों के बीच रिश्ते अधिक व्यक्तिगत और स्वतंत्र हो गए हैं।
सामाजिक आदतें: वैश्वीकरण ने भी पारिवारिक सामाजिक आदतों में परिवर्तन किया है। पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से परिवारों में आधुनिक शिक्षा, जीवनशैली, और उपभोक्तावाद का प्रचलन बढ़ा है। शादी के प्रथाओं, परिवार के भूमिकाओं और कर्तव्यों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जो वैश्वीकरण के प्रभाव को दर्शाते हैं।
समग्र रूप से, वैश्वीकरण ने भारतीय परिवारों में संरचनात्मक और सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित किया है, जिससे परिवार के आकार, रिश्ते, और आदतों में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। इन बदलावों ने भारतीय समाज की पारंपरिक धारा को नई दिशा दी है, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आधुनिक जीवनशैली के तत्व प्रमुख हैं।
See lessभारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुआ है न कि 'समान दूरी'। टिप्पणी कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए हुए है, न कि 'समान दूरी'। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में 'सैद्धांतिक दूरी' बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्यRead more
भारत का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए हुए है, न कि ‘समान दूरी’। इसका मतलब है कि भारत का पंथनिरपेक्षता किसी भी धार्मिक समूह के प्रति एक निष्पक्ष और समान रवैया अपनाने के बजाय, धार्मिक मामलों में ‘सैद्धांतिक दूरी’ बनाए रखता है। यह दृष्टिकोण धार्मिक तटस्थता का संकेत देता है, जिसमें राज्य धार्मिक मामलों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, लेकिन कुछ धार्मिक समूहों के प्रति विशेष ध्यान या समर्थन भी हो सकता है।
इस प्रकार, ‘सैद्धांतिक दूरी’ का मतलब है कि सरकार और अन्य संस्थान धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी धार्मिक समूहों के साथ समान दूरी बनाए रखी जाए। इससे पंथनिरपेक्षता के आदर्शों और व्यावहारिक कार्यान्वयन में असमानता का अनुभव हो सकता है, जो समाज में धार्मिक तटस्थता की परिभाषा और उसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
See lessजातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं न कि आदिम पहचान से। चर्चा कीजिये । (200 Words) [UPPSC 2022]
जातीय गठजोड़: धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न प्रारंभ भारतीय राजनीति में जातीय गठजोड़ का सिद्धान्त है। कुछ लोगों का मानना है कि जातीय पहचान आदिम तथा अपरिवर्तनशील है, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं। इस चर्चा में हम देखेंगे कि जRead more
जातीय गठजोड़: धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न
प्रारंभ
भारतीय राजनीति में जातीय गठजोड़ का सिद्धान्त है। कुछ लोगों का मानना है कि जातीय पहचान आदिम तथा अपरिवर्तनशील है, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं। इस चर्चा में हम देखेंगे कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं, न कि आदिम पहचान से।
धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारक
आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व: ब्रिटिश साम्राज्य की अवधि में जातियों के लिए आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व की नीति ने जातिय आधारित राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई। यह नीति ने जातिय आधारित दलों और गठजोड़ों की स्थापना में सहायता की, जिनकी política पावर और लाभ प्राप्त करने में अधिक रुचि थी न कि आदिम पहचान से।
recent example
2019 लोक सभा चुनावों में कई राज्यों में जातीय गठजोड़ों की स्थापना देखी गई। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी तथा राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठजोड़ा बनाया। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस तथा अन्य दलों के साथ गठजोड़ा बनाया।
समाप्ति
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