Home/भारतीय समाज/Page 3
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
धर्म तथा नृजातीय हिंसा की राजनीति मूलतः धर्मनिरपेक्षवाद तथा धर्मनिरपेक्षीकरण की राजनीति हैं। कथन कस समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है। 2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्म और नृजातीय हिंसा कीRead more
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है।
2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति
धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति आमतौर पर धार्मिक और जातीय आधार पर समाज में विभाजन और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। यह राजनीति धर्म और जाति के नाम पर संघर्ष और अशांति को उत्तेजित करती है, जिससे एकता और सामूहिक शांति प्रभावित होती है।
3. हाल के उदाहरण
धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षीकरण के सिद्धांत के विपरीत, हिंसा और धार्मिक तनाव के उदाहरण हाल ही में देखने को मिले हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विवादों ने धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। दिल्ली हिंसा (2020) भी इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे धार्मिक और जातीय आधार पर राजनीति हिंसा को जन्म देती है।
4. धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियाँ
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति को धार्मिक पहचान और जातीय राजनीति द्वारा चुनौती दी जाती है। जब राजनीतिक दल धार्मिक वोटबैंक को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाते हैं, तो इससे धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना प्रभावित होती है। पोलराइजेशन और साम्प्रदायिक बयानबाज़ी भी इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
5. समाधान और भविष्य
धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के लिए, समाज में समरसता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षा और संवाद के माध्यम से धार्मिक और जातीय सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के अधिकारों की रक्षा करना धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार, धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के विपरीत जाती है और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
See lessभारतीय संस्कृति विविधता में एकता का प्रतीक है।' उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन का तार्किक विश्लेषण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
भारतीय संस्कृति: विविधता में एकता का प्रतीक 1. सांस्कृतिक विविधता भारतीय संस्कृति में विविधता एक प्रमुख विशेषता है। भारत में भाषाएँ, धर्म, संप्रदाय, खानपान, और पहनावा के विविध रूप देखने को मिलते हैं। हिंदी, तमिल, तेलुगु, और बंगाली जैसी भाषाएँ, हinduism, इस्लाम, ईसाई धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों कीRead more
भारतीय संस्कृति: विविधता में एकता का प्रतीक
1. सांस्कृतिक विविधता
भारतीय संस्कृति में विविधता एक प्रमुख विशेषता है। भारत में भाषाएँ, धर्म, संप्रदाय, खानपान, और पहनावा के विविध रूप देखने को मिलते हैं। हिंदी, तमिल, तेलुगु, और बंगाली जैसी भाषाएँ, हinduism, इस्लाम, ईसाई धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों की विविधता भारत की सांस्कृतिक अमीरता को दर्शाती है।
2. धार्मिक सहिष्णुता
भारत में विभिन्न धर्मों के बीच धार्मिक सहिष्णुता का आदर्श उदाहरण देखा जा सकता है। दुर्गा पूजा और दीवाली जैसे हिन्दू त्योहार, ईद और क्रिसमस जैसे मुस्लिम और ईसाई त्योहारों के साथ मनाए जाते हैं। हाल ही में गुजरात में रथ यात्रा और ईद के दौरान दोनों त्योहारों को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने की मिसाल प्रस्तुत की गई है।
3. सांस्कृतिक मेलजोल
भारतीय त्यौहारों और त्योहारों की विविधता में एकता का प्रमुख उदाहरण है। लोक संगीत, नृत्य, और पारंपरिक वस्त्र जैसे विविध सांस्कृतिक तत्व देश की एकता को मजबूत करते हैं। सारस कला और कच्छ के कम्बल और हस्तशिल्प इस विविधता का हिस्सा हैं जो सभी क्षेत्रों में समान मान्यता प्राप्त करते हैं।
4. भाषाई एकता
हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, जबकि विभिन्न प्रादेशिक भाषाएँ भी अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखती हैं। राजस्थान की लोककला और केरल की शास्त्रीय नृत्य संस्कृतियों की एकता का प्रतीक हैं।
5. समकालीन उदाहरण
हाल ही में नरेन्द्र मोदी की अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पहल ने भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान को बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र ने भी योग के महत्व को मान्यता दी है, जो भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता का प्रतीक है।
इस प्रकार, भारतीय संस्कृति अपनी विविधता के बावजूद एकता का प्रतीक है, जो विभिन्न धर्मों, भाषाओं, और परंपराओं के बीच सामंजस्य और सहयोग को बढ़ावा देती है।
See lessभारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में मूल बाधाओं का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। 2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियRead more
1. आर्थिक पिछड़ापन: जनजातियों का आर्थिक पिछड़ापन उनकी विकास में सबसे बड़ी बाधा है। परंपरागत जीवनशैली और अवसंरचना की कमी के कारण वे अक्सर निम्न आय और सीमित रोजगार अवसर का सामना करते हैं। उदाहरणस्वरूप, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं।
2. शैक्षिक चुनौतियाँ: जनजातियों में शिक्षा की पहुँच सीमित है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा और साक्षरता दर में कमी है। आंध्र प्रदेश के कोंडागांव जैसे क्षेत्रों में विद्यालयों की कमी और शिक्षण संसाधनों की कमी ने शिक्षा में बाधाएँ उत्पन्न की हैं।
3. स्वास्थ्य असमानता: स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य असमानता को बढ़ावा देती है। मध्य प्रदेश के बांसवाड़ा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एक प्रमुख समस्या है।
**4. सामाजिक बहिष्कार: जनजातियों का सामाजिक बहिष्कार और विभाजन भी उनके सशक्तिकरण में रुकावट डालता है। संस्कृतिक भिन्नताएँ और भेदभाव उनकी सामाजिक समावेशिता में बाधा उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष: भारत में जनजातियों के सशक्तिकरण में आर्थिक पिछड़ापन, शैक्षिक चुनौतियाँ, स्वास्थ्य असमानता, और सामाजिक बहिष्कार जैसी मूल बाधाएँ हैं, जिनका समाधान समग्र विकास योजनाओं और संवेदनशील नीतियों के माध्यम से किया जा सकता है।
See lessमलिन बस्तियाँ में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास हेतु नगर नियोजन की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
मलिन बस्तियों में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास हेतु नगर नियोजन की भूमिका 1. संरचनात्मक सुधार: नगर नियोजन मलिन बस्तियों में सड़क, नल जल आपूर्ति, और स्वच्छता की बुनियादी सुविधाओं को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रयासों जैसे मुंबई के स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) द्वारा मलिन बस्तियों काRead more
मलिन बस्तियों में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास हेतु नगर नियोजन की भूमिका
1. संरचनात्मक सुधार: नगर नियोजन मलिन बस्तियों में सड़क, नल जल आपूर्ति, और स्वच्छता की बुनियादी सुविधाओं को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रयासों जैसे मुंबई के स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) द्वारा मलिन बस्तियों का पुनर्विकास इन क्षेत्रों में सुविधाओं की स्थिति को सुधारता है।
2. आवासीय सुधार: नगर नियोजन बेहतर आवास और पुनर्विकास योजनाओं के माध्यम से मलिन बस्तियों में सुरक्षित और स्थायी आवास प्रदान करता है। दिल्ली की राजीव आवास योजना ने मलिन बस्तियों को संगठित आवास में परिवर्तित किया है।
3. स्वास्थ्य और शिक्षा: नगर नियोजन के माध्यम से स्वास्थ्य केन्द्र और शैक्षिक संस्थान स्थापित किए जाते हैं, जो मलिन बस्तियों में समाज कल्याण को बढ़ावा देते हैं। कोलकाता का “स्कूल ऑन व्हील्स” कार्यक्रम शिक्षा के अवसर बढ़ाने का उदाहरण है।
निष्कर्ष: नगर नियोजन मलिन बस्तियों में मूलभूत नागरिक सुविधाओं के विकास के लिए संरचनात्मक सुधार, आवासीय सुधार, और स्वास्थ्य-शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करके जीवन की गुणवत्ता को सुधारने में अहम भूमिका निभाता है।
See lessउदारीकरण क्या है? उदारीकरण ने भारतीय सामाजिक संरचना को किस प्रकार प्रभावित किया है? (200 Words) [UPPSC 2020]
उदारीकरण क्या है? उदारीकरण (Liberalization) एक आर्थिक और सामाजिक नीति है जिसका उद्देश्य राज्य की भूमिका को कम करके बाजार की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। भारत में, 1991 में आर्थिक सुधारों के तहत उदारीकरण की शुरुआत हुई। इसके अंतर्गत, व्यापार और निवेश पर सरकारी नियंत्रण में कमी, निजीकरण और विदेशी निवेRead more
उदारीकरण क्या है?
उदारीकरण (Liberalization) एक आर्थिक और सामाजिक नीति है जिसका उद्देश्य राज्य की भूमिका को कम करके बाजार की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। भारत में, 1991 में आर्थिक सुधारों के तहत उदारीकरण की शुरुआत हुई। इसके अंतर्गत, व्यापार और निवेश पर सरकारी नियंत्रण में कमी, निजीकरण और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना शामिल है।
उदारीकरण का सामाजिक प्रभाव:
आर्थिक असमानता में वृद्धि:
उदारीकरण के बाद, आर्थिक असमानता बढ़ी है। अमीर-गरीब के बीच अंतर और भी गहरा हुआ है, विशेषकर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच। आमदनी में विषमता के उदाहरण के रूप में, नई दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में उच्च जीवन स्तर की तुलना में छोटे शहरों और गाँवों में गरीबों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
शैक्षिक और रोजगार अवसरों में बदलाव:
उदारीकरण ने शैक्षिक संस्थानों और रोजगार के अवसरों में सुधार किया है। प्राइवेट शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों की वृद्धि हुई है, जिससे नौकरी के नए अवसर मिले हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव:
उदारीकरण ने सांस्कृतिक बदलाव भी लाए हैं। उपभोक्ता संस्कृति में वृद्धि और वैश्विक प्रवृत्तियों का असर भारत की सामाजिक संरचना पर पड़ा है। फैशन, मीडिया और मनोरंजन उद्योग में वैश्विक प्रभाव देखा जा सकता है।
निष्कर्ष:
See lessउदारीकरण ने भारत की सामाजिक संरचना में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार के बदलाव किए हैं। जबकि इसने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया है, वहीं आर्थिक असमानता और सामाजिक विभाजन भी बढ़े हैं।
सांप्रदायिकता के संदर्भ में राष्ट्र और नागरिकता के प्रत्यय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
सांप्रदायिकता के संदर्भ में राष्ट्र और नागरिकता के प्रत्यय का समालोचनात्मक परीक्षण राष्ट्र और सांप्रदायिकता: राष्ट्र एक सामाजिक और राजनीतिक इकाई है जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक और जातीय समूह मिलकर एकता का अनुभव करते हैं। लेकिन सांप्रदायिकता इसे चुनौती देती है, जिससे एक ही राष्ट्र में अलग-अलग धRead more
सांप्रदायिकता के संदर्भ में राष्ट्र और नागरिकता के प्रत्यय का समालोचनात्मक परीक्षण
राष्ट्र और सांप्रदायिकता:
राष्ट्र एक सामाजिक और राजनीतिक इकाई है जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक और जातीय समूह मिलकर एकता का अनुभव करते हैं। लेकिन सांप्रदायिकता इसे चुनौती देती है, जिससे एक ही राष्ट्र में अलग-अलग धार्मिक समूहों के बीच तनाव उत्पन्न हो सकता है। भारत में, सांप्रदायिकता का तात्पर्य विशेष रूप से हिंदू-मुस्लिम विभाजन से है, जो अक्सर राष्ट्र की एकता और समानता को प्रभावित करता है।
नागरिकता और सांप्रदायिकता:
नागरिकता एक व्यक्ति की कानूनी पहचान होती है जो उसे राष्ट्र के अधिकार और कर्तव्यों का हिस्सा बनाती है। सांप्रदायिकता इस अवधारणा को तब चुनौती देती है जब धार्मिक आधार पर नागरिकों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। सीएए (सिटिज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट) 2019 के हालिया विवाद ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उभारा है। इस कानून ने धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया, जिससे सांप्रदायिक असंतुलन और भेदभाव की आशंका बढ़ गई।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण:
See lessराष्ट्र की संप्रभुता और एकता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि सांप्रदायिकता से दूर रहा जाए। नागरिकता की अवधारणा को धार्मिक विभाजन से अलग रखना चाहिए, ताकि सभी नागरिक समान अधिकार और सम्मान प्राप्त कर सकें। सांप्रदायिकता के प्रभाव को रोकने के लिए समाजिक और कानूनी उपायों की आवश्यकता है, ताकि एक सशक्त और समान राष्ट्र का निर्माण किया जा सके।
भारत में मलिन बस्तियों के निर्माण और इसके प्रसार के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालते हुए, प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत इन-सीटू स्लम पुनर्विकास योजना में सुधार की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में मलिन बस्तियों के निर्माण और प्रसार के कारक भारत में मलिन बस्तियाँ (slums) एक जटिल समस्या हैं, जिनके निर्माण और प्रसार के कई कारक हैं: शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि: तेजी से शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण नगरों और शहरों में आवास की मांग में अत्यधिक वृद्धि हुई है। इससे गरीब तबकों को अस्थायी औRead more
भारत में मलिन बस्तियों के निर्माण और प्रसार के कारक
भारत में मलिन बस्तियाँ (slums) एक जटिल समस्या हैं, जिनके निर्माण और प्रसार के कई कारक हैं:
प्रधान मंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत इन-सीटू स्लम पुनर्विकास योजना में सुधार की आवश्यकता
1. योजना का दायरा और कार्यान्वयन
वर्तमान में, इन-सीटू स्लम पुनर्विकास योजना का कार्यान्वयन असमान है। योजना को अधिक समावेशी और व्यापक बनाने की आवश्यकता है ताकि सभी मलिन बस्तियों को शामिल किया जा सके।
2. वित्तीय और तकनीकी सहायता
स्थानीय निकायों को आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए। इसके साथ ही, निर्माण और पुनर्विकास के लिए समुदाय आधारित दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए ताकि स्थानीय जरूरतों और प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से समायोजित किया जा सके।
3. सामाजिक और आर्थिक स्थिरता
मलिन बस्तियों के पुनर्विकास में केवल भौतिक पुनर्निर्माण पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता पर भी ध्यान देना चाहिए। रोजगार सृजन, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
4. जनसहभागिता और निगरानी
योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए जनसहभागिता और पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहिए। स्थानीय निवासियों की भागीदारी से योजना की स्वीकार्यता बढ़ेगी और समस्याओं का समय पर समाधान हो सकेगा।
निष्कर्ष
See lessमलिन बस्तियों की समस्या का समाधान एक बहुआयामी दृष्टिकोण की मांग करता है, जिसमें बेहतर नियोजन, वित्तीय प्रबंधन, और सामाजिक नीतियों का समन्वय शामिल हो। प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत इन-सीटू स्लम पुनर्विकास योजना में सुधार करके इस समस्या को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा सकता है।
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति का परीक्षण कीजिये तथा तीव्र गति से बढ़ते नगरीकरण से उत्पन्न सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति भारत में नगरीकरण, यानी शहरीकरण की प्रक्रिया, पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। नगरीकरण की यह प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों से प्रेरित है: आर्थिक विकास: औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र के विकास ने शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या बढ़ाई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरीRead more
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति
भारत में नगरीकरण, यानी शहरीकरण की प्रक्रिया, पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। नगरीकरण की यह प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों से प्रेरित है:
तीव्र गति से बढ़ते नगरीकरण से उत्पन्न सामाजिक परिणाम
निष्कर्ष: भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति ने शहरी विकास को प्रोत्साहित किया है, लेकिन इसके साथ सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय समस्याएँ भी उभरी हैं। प्रभावी शहरी नियोजन और सतत विकास की नीतियों को लागू करके इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
See lessभारत की जनसंख्या नीति (2000) की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिये। जनसंख्या स्थिरीकरण के लिये कुछ उपाय समुझाइये। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारत की जनसंख्या नीति (2000): मुख्य विशेषताएँ जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य: भारत की जनसंख्या नीति 2000 का मुख्य उद्देश्य 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करना है। इसमें उम्रदराज़ और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता दी गई है। प्रजनन स्वास्थ्य: नीति में प्रजनन स्वास्थ्य परRead more
भारत की जनसंख्या नीति (2000): मुख्य विशेषताएँ
जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए उपाय
निष्कर्ष: भारत की जनसंख्या नीति 2000 जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, और प्रेरणा योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इन उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने से जनसंख्या स्थिरीकरण के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
See lessवैश्वीकरण को परिभाषित कीजिये। भारत में ग्रामीण सामाजिक संरचना पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
वैश्वीकरण (Globalization) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं, संस्कृतियों, राजनीतिक व्यवस्थाओं, और सामाजिक संरचनाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय संपर्क और आदान-प्रदान बढ़ता है। इसमें आर्थिक, सूचनात्मक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्व शामिल होते हैं, जो विभिन्न देशों और समाजों को आपस में जोड़तेRead more
वैश्वीकरण (Globalization) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं, संस्कृतियों, राजनीतिक व्यवस्थाओं, और सामाजिक संरचनाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय संपर्क और आदान-प्रदान बढ़ता है। इसमें आर्थिक, सूचनात्मक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्व शामिल होते हैं, जो विभिन्न देशों और समाजों को आपस में जोड़ते हैं और एक वैश्विक नेटवर्क का निर्माण करते हैं।
भारत में ग्रामीण सामाजिक संरचना पर वैश्वीकरण के प्रभाव:
निष्कर्ष: वैश्वीकरण ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास, सामाजिक बदलाव, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार, और संस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डाले हैं। इससे ग्रामीण समाज में समृद्धि और आधुनिकता का संचार हुआ है, लेकिन इसके साथ पारंपरिक मूल्यों और संस्कृतियों पर भी प्रभाव पड़ा है।
See less