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लोक सभा की शक्तियों की राज्य सभा की शक्तियों के साथ तुलना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
लोक सभा और राज्य सभा भारतीय संविधान के दो प्रमुख संसदीय संस्थान हैं। दोनों की अपनी विशेष संवैधानिक और कार्यक्षमता है। लोक सभा की शक्तियाँ: लोकप्रियता का प्रतिष्ठान: लोक सभा निर्वाचन द्वारा प्रत्यक्ष रूप से जनता के चुनाव से आती है जिससे इसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। वित्तीय शक्ति: लोक सभा के पास वित्तीय शRead more
लोक सभा और राज्य सभा भारतीय संविधान के दो प्रमुख संसदीय संस्थान हैं। दोनों की अपनी विशेष संवैधानिक और कार्यक्षमता है।
लोक सभा की शक्तियाँ:
राज्य सभा की शक्तियाँ:
लोक सभा जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व करती है जबकि राज्य सभा राज्यों के हितों की रक्षा करती है और संविधानिक संरक्षण में सहायक होती है। दोनों के बीच एक संतुलित संघटन संविधानिक लक्ष्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण है।
See lessविधायी कार्यों के संचालन में व्यवस्था एवं निष्पक्षता बनाए रखने में और सर्वोत्तम लोकतांत्रिक परम्पराओं को सुगम बनाने में राज्य विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका की विवेचना कीजिए । (150 words)[UPSC 2023]
राज्य विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका विधायी कार्यों की व्यवस्था: "संचालन की निगरानी": पीठासीन अधिकारी, जैसे विधानसभा अध्यक्ष या सभापति, विधायी सत्रों की व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं। वे सदन की बैठकें संचालित करते हैं, और कार्यवाही को सुचारू और प्रभावी बनाए रखते हैं। "निर्देशन और समन्वय":Read more
राज्य विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका
विधायी कार्यों की व्यवस्था:
निष्पक्षता बनाए रखना:
निष्कर्ष: राज्य विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारी विधायी कार्यों में व्यवस्था और निष्पक्षता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी कार्यक्षमता और निष्पक्षता लोकतांत्रिक परम्पराओं को मजबूत करने में सहायक होती है।
See less"भारत के राज्य शहरी स्थानीय निकायों को कार्यात्मक एवं वित्तीय दोनों ही रूप से सशक्त बनाने के प्रति अनिच्छुक प्रतीत होते हैं।" टिप्पणी कीजिए । (150 words)[UPSC 2023]
भारत के राज्य शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को सशक्त बनाने में अनिच्छा कार्यात्मक सशक्तिकरण में कमी: "केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति": भारतीय राज्यों में प्रशासनिक शक्ति का केंद्रीकरण अधिक होता है, जिससे शहरी स्थानीय निकायों की स्वायत्तता सीमित रहती है। उदाहरण के लिए, शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे पानी की आपूरRead more
भारत के राज्य शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को सशक्त बनाने में अनिच्छा
कार्यात्मक सशक्तिकरण में कमी:
वित्तीय सशक्तिकरण में कमी:
निष्कर्ष: राज्यों की शहरी स्थानीय निकायों को कार्यात्मक और वित्तीय सशक्त बनाने में अनिच्छा स्थानीय शासन की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है। स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता और वित्तीय संसाधन प्रदान करना आवश्यक है ताकि वे शहरी विकास की चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान कर सकें।
See lessभारत में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने में विभागीय स्थायी समितियों की भूमिका की विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारत में विभागीय स्थायी समितियाँ लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन समितियों का मुख्य काम विभिन्न क्षेत्रों में नीतियों और कानूनों की विशेष विवेचना करना है और सरकार को सलाह देना है। विभागीय स्थायी समितियाँ विविध क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्त, कृषि, उद्योग आदि मेंRead more
भारत में विभागीय स्थायी समितियाँ लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन समितियों का मुख्य काम विभिन्न क्षेत्रों में नीतियों और कानूनों की विशेष विवेचना करना है और सरकार को सलाह देना है।
विभागीय स्थायी समितियाँ विविध क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्त, कृषि, उद्योग आदि में विशेषज्ञता प्रदान करती हैं। इन समितियों के सदस्यों का चयन अक्सर उनकी विशेषज्ञता और अनुभव के आधार पर किया जाता है।
इन समितियों की सिफारिशें सरकार को विभिन्न मुद्दों पर नीतियों और कानूनों को मजबूत करने में मदद करती हैं। समितियों का कार्य सरकारी नीतियों के निष्पादन की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करना भी होता है।
इन समितियों की सक्रिय भूमिका से संसद की कार्यक्षमता में सुधार होता है और लोकतंत्र को समृद्धि देने में मदद मिलती है।
See lessभारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्तियों की विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 में भारत के राष्ट्रपति को वीटो शक्ति प्रदान की गई है। राष्ट्रपति के पास तीन प्रकार की वीटो होती हैं - सुसम्मति वीटो, निरसम्मति वीटो, और पोकेट वीटो। सुसम्मति वीटो: जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। इससे विधेयक विफल हो जाता है और संसद को इसे पुRead more
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 में भारत के राष्ट्रपति को वीटो शक्ति प्रदान की गई है। राष्ट्रपति के पास तीन प्रकार की वीटो होती हैं – सुसम्मति वीटो, निरसम्मति वीटो, और पोकेट वीटो।
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ उसके कार्यक्षेत्र के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो संविधानिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं। यह एक महत्वपूर्ण संविधानिक उपकरण है जो सरकार को संसद के साथ संविधानिक प्रक्रिया में सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है।
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