क्या समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए उपयोगी मानी जाती है ? इस संदर्भ में प्राक्कलन समिति की भूमिका की विवेचना कीजिये । (200 Words) [UPPSC 2022]
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क्या समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए उपयोगी मानी जाती है ? इस संदर्भ में प्राक्कलन समिति की भूमिका की विवेचना कीजिये । (200 Words) [UPPSC 2022]
विगत कुछ दशकों में राज्य सभा एक ‘उपयोगहीन स्टैपनी टायर’ से सर्वाधिक उपयोगी सहायक अंग में रूपांतरित हुआ है। उन कारकों तथा क्षेत्रों को आलोकित कीजिये जहाँ यह रूपांतरण दृष्टिगत हो सकता है। (250 words) [UPSC 2020]
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See less‘एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर’! क्या आपके विचार में लोकसभा अध्यक्ष पद की निष्पक्षता के लिए इस कार्यप्रणाली को स्वीकारना चाहिए ? भारत में संसदीय प्रयोजन की सुदृढ कार्यशैली के लिए इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? (150 words) [UPSC ...
"एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर" का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्णRead more
“एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
सकारात्मक परिणाम:
निष्पक्षता और स्वतंत्रता: अध्यक्ष को एक बार निर्वाचित होने के बाद राजनीति से अलग माना जाएगा, जिससे वह निष्पक्ष निर्णय ले सकेगा और सदन की कार्यवाही को स्वतंत्रता से संचालित कर सकेगा।
विश्वसनीयता: यह सिद्धांत अध्यक्ष की भूमिका की विश्वसनीयता और सम्मान बढ़ा सकता है, जिससे सदन की कार्यवाही पर विश्वास मजबूत होगा।
संभावित चुनौतियाँ:
दीर्घकालिक प्रभाव: लंबे समय तक अध्यक्ष बने रहने से राजनीतिक दबावों से बचना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सुधार में कठिनाई: एक ही व्यक्ति लंबे समय तक पद पर रहने से सुधार की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है, यदि अध्यक्ष प्रणाली की कमियों को दूर नहीं कर पाता।
इसलिए, “एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत निष्पक्षता को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए समुचित निगरानी और निरंतर सुधार की आवश्यकता होगी।
लोक सभा की शक्तियों की राज्य सभा की शक्तियों के साथ तुलना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
लोक सभा और राज्य सभा भारतीय संविधान के दो प्रमुख संसदीय संस्थान हैं। दोनों की अपनी विशेष संवैधानिक और कार्यक्षमता है। लोक सभा की शक्तियाँ: लोकप्रियता का प्रतिष्ठान: लोक सभा निर्वाचन द्वारा प्रत्यक्ष रूप से जनता के चुनाव से आती है जिससे इसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। वित्तीय शक्ति: लोक सभा के पास वित्तीय शRead more
लोक सभा और राज्य सभा भारतीय संविधान के दो प्रमुख संसदीय संस्थान हैं। दोनों की अपनी विशेष संवैधानिक और कार्यक्षमता है।
लोक सभा की शक्तियाँ:
राज्य सभा की शक्तियाँ:
लोक सभा जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व करती है जबकि राज्य सभा राज्यों के हितों की रक्षा करती है और संविधानिक संरक्षण में सहायक होती है। दोनों के बीच एक संतुलित संघटन संविधानिक लक्ष्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण है।
See lessउन संवैधानिक प्रावधानों को समझाइए जिनके अंतर्गत विधान परिषदें स्थापित होती हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विधान परिषदों के कार्य और वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
संविधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 169: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार: स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद मेंRead more
संविधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 169:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार:
स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद में भी मंजूरी प्राप्त करनी होती है।
संगठन और संरचना: विधान परिषद की संरचना और सदस्य संख्या राज्य के संविधान द्वारा निर्धारित की जाती है, और इसमें विभिन्न श्रेणियों के सदस्य होते हैं जैसे कि शिक्षाविद, विधायकों, और पेशेवर।
विधान परिषदों के कार्य:
विधायिका का समर्थन:
विधान परिषद का मुख्य कार्य राज्य विधान सभा की सहायता करना होता है। यह विधायिका के सदस्य बनते हैं और विधायी कार्यों में अनुभव और विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
विधायी प्रक्रिया में सुधार:
विधान परिषद विधेयकों पर विचार करने, संशोधन करने और समीक्षा करने का काम करती है। यह विधान सभा के निर्णयों को अधिक सुसंगत और संतुलित बनाती है।
विशेषज्ञता और सलाह:
इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को सलाह और सुझाव प्रदान करते हैं, जिससे कानूनों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
उदाहरण:
बिहार विधान परिषद:
बिहार में विधान परिषद 1952 में स्थापित की गई थी और यह राज्य की विधायिका का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को समर्थन और सलाह प्रदान करते हैं।
कर्नाटक विधान परिषद:
कर्नाटक में विधान परिषद 1986 में पुनः स्थापित की गई थी। इसका काम राज्य की विधायिका के लिए महत्वपूर्ण सुझाव और निरीक्षण प्रदान करना है।
वर्तमान स्थिति और मूल्यांकन:
लाभ:
संतुलन और नियंत्रण:
विधान परिषद विधान सभा के कार्यों की समीक्षा करती है और इसमें शामिल विशेषज्ञता विधायिका को बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
विधायिका की गुणवत्ता:
परिषद में अनुभवी और पेशेवर सदस्य होते हैं, जो विधायी प्रक्रिया में सुधार और अधिक पारदर्शिता लाने में सहायक होते हैं।
सीमाएँ:
अर्थशास्त्र:
कई लोगों का मानना है कि विधान परिषदें अनावश्यक और खर्चीली हैं, और इनकी उपस्थिति राज्य सरकार के संसाधनों पर बोझ डालती है।
राजनीतिक नियुक्तियाँ:
विधान परिषद में कई बार राजनीतिक नियुक्तियाँ होती हैं, जिससे इसकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
वर्तमान स्थिति:
कुछ राज्यों में विधान परिषदें प्रभावी ढंग से कार्य कर रही हैं, जबकि अन्य में इसे समाप्त करने की माँग उठ रही है। विधान परिषद की उपयोगिता और संरचना पर विचार राज्य की प्रशासनिक प्राथमिकताओं और राजनीतिक परिदृश्य पर निर्भर करती है।
इस प्रकार, संविधानिक प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित विधान परिषदें विधायिका को सहारा प्रदान करती हैं और विधायी प्रक्रिया को अधिक संतुलित और गुणवत्ता युक्त बनाने में सहायक होती हैं।
आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (150 words) [UPSC 2021]
संसद की कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में भूमिका 1. विधायी निगरानी: संसद सरकार की नीतियों और निर्णयों पर बहस और चर्चा के माध्यम से कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। सांसद सरकार से प्रश्न पूछते हैं, जो कार्यपालिका की गतिविधियों की समीक्षा में सहायक होते हैं। 2. समितियाँ: संसदीय समितRead more
संसद की कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में भूमिका
1. विधायी निगरानी: संसद सरकार की नीतियों और निर्णयों पर बहस और चर्चा के माध्यम से कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। सांसद सरकार से प्रश्न पूछते हैं, जो कार्यपालिका की गतिविधियों की समीक्षा में सहायक होते हैं।
2. समितियाँ: संसदीय समितियाँ, जैसे लोक लेखा समिति (PAC) और अनुमान समिति, सरकारी खर्च और प्रदर्शन की समीक्षा करती हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
3. अविश्वास प्रस्ताव: संसद अविश्वास प्रस्ताव पारित कर सकती है, जो सरकार के इस्तीफे का कारण बन सकता है। यह कार्यपालिका पर एक महत्वपूर्ण चेक होता है।
4. प्रश्नकाल और बहसें: प्रश्नकाल और संसदीय बहसें सांसदों को कार्यपालिका के निर्णयों और नीतियों पर सवाल उठाने का अवसर प्रदान करती हैं।
निष्कर्ष: संसद के पास कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रभावी उपाय हैं, लेकिन पार्टी वफादारी और राजनीतिक परिस्थितियाँ कभी-कभी इसके प्रभावशीलता को सीमित कर सकती हैं।
See less“भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दल केन्द्रीयकरण के पक्ष में हैं, जबकि क्षेत्रीय दल राज्य-स्वायत्तता के पक्ष में ।” टिप्पणी कीजिए। (250 words) [UPSC 2022]
भारत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के बीच केंद्रीयकरण और राज्य-स्वायत्तता के मुद्दे पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं, जो देश के संघीय ढांचे की जटिलता को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय राजनैतिक दल और केंद्रीयकरण: राष्ट्रीय दल जैसे भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई.एन.सी.) केंदRead more
भारत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के बीच केंद्रीयकरण और राज्य-स्वायत्तता के मुद्दे पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं, जो देश के संघीय ढांचे की जटिलता को दर्शाते हैं।
राष्ट्रीय राजनैतिक दल और केंद्रीयकरण: राष्ट्रीय दल जैसे भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई.एन.सी.) केंद्रीयकरण के पक्षधर होते हैं। उनका मानना है कि केंद्रीयकरण से पूरे देश में एक समान नीतियों और कानूनों का कार्यान्वयन संभव होता है, जिससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा मिलता है। केंद्रीयकरण से सरकार को संसाधनों का बेहतर वितरण, और एकीकृत राष्ट्रीय रणनीतियों का निर्माण करना आसान होता है, जो विभिन्न राज्यों में समान विकास और नीति प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
क्षेत्रीय राजनैतिक दल और राज्य-स्वायत्तता: इसके विपरीत, क्षेत्रीय दल जैसे द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डी.एम.के.), तृणमूल कांग्रेस (टी.एम.सी.), और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) राज्य-स्वायत्तता के पक्षधर होते हैं। वे तर्क करते हैं कि स्थानीय सरकारें अपने क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकती हैं और उन्हें संबोधित कर सकती हैं। राज्य-स्वायत्तता से राज्यों को अपने संसाधनों और नीतियों पर अधिक नियंत्रण मिलता है, जिससे स्थानीय विकास को बढ़ावा मिलता है और सांस्कृतिक विविधताओं को संरक्षित किया जा सकता है।
विवाद और सहयोग: इन दोनों दृष्टिकोणों के बीच मतभेद भारत के संघीय ढांचे को चुनौती देते हैं। केंद्रीयकरण राष्ट्रीय एकता और समरसता को बढ़ावा देता है, जबकि राज्य-स्वायत्तता क्षेत्रीय विविधताओं और स्थानीय स्वायत्तता को महत्व देती है। भारतीय संविधान ने इन दोनों पहलुओं को संतुलित करने के लिए एक संघीय ढांचा प्रदान किया है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का विभाजन सुनिश्चित किया गया है।
इस प्रकार, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष और सहयोग भारत के संघीय ढांचे की जटिलताओं को उजागर करते हैं, जहां केंद्र और राज्य दोनों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण हैं।
See lessराज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिए। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनःप्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तें: संवैधानिक प्रावधान: राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ भारतीय संविधान के तहत निर्धारित होती हैं। इनमें विधायिका को बुलाना, स्थगित करना या भंग करना, और विधेयकों पर सहमति देना या अस्वीकृत करना शामिल है। इन शक्तियों का प्रयोग संविधान और विधायी प्रक्रRead more
राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तें:
राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनःप्रख्यापन की वैधता:
अध्यादेशों का पुनःप्रख्यापन बिना विधायिका के समक्ष पेश किए संविधान की प्रावधानों के खिलाफ होता है। अध्यादेश, अनुच्छेद 123 और अनुच्छेद 213 के तहत, तब जारी किए जाते हैं जब विधायिका सत्र में नहीं होती और तत्काल कदम उठाना आवश्यक हो।
मुख्य बिंदु:
इस प्रकार, राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ संविधान और मंत्रियों की सलाह के तहत सीमित होती हैं, और अध्यादेशों का पुनःप्रख्यापन विधायिका की स्वीकृति के बिना असंवैधानिक होता है।
See lessराज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका की विवेचना कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
राज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं, नियमों और विधायिका की प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करते हैं। सभापति सदन में शांति और अनुशासन बनाए रखते हैं, और बहस की दिशा को नियंत्रित करते हैं। उनके पास मतदान में टाई की सRead more
राज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं, नियमों और विधायिका की प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करते हैं। सभापति सदन में शांति और अनुशासन बनाए रखते हैं, और बहस की दिशा को नियंत्रित करते हैं। उनके पास मतदान में टाई की स्थिति में निर्णायक मत डालने का अधिकार होता है। सभापति विधेयकों को विभिन्न समितियों के पास भेज सकते हैं और संसदीय कार्यवाही के दौरान निष्पक्षता बनाए रखते हैं। इसके अलावा, वे राज्य सभा के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति और अन्य विधायी निकायों के साथ संवाद करते हैं। इस भूमिका से वे राज्य सभा के सुचारू और प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करते हैं, जो समग्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अहम है।
See lessसंसदीय समिति प्रणाली की संरचना को समझाइए । भारतीय संसद के संस्थानीकरण में वित्तीय समितियों ने कहां तक मदद की ? (250 words) [UPSC 2023]
संसदीय समिति प्रणाली की संरचना: भारत की संसदीय समिति प्रणाली संसद के कार्यों की दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी संरचना निम्नलिखित प्रकार की समितियों से मिलकर होती है: स्थायी समितियाँ: वित्तीय समितियाँ: ये समितियाँ सरकारी वित्तीय कार्यों की जाँच करती हैं। इसमें लोRead more
संसदीय समिति प्रणाली की संरचना:
भारत की संसदीय समिति प्रणाली संसद के कार्यों की दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी संरचना निम्नलिखित प्रकार की समितियों से मिलकर होती है:
वित्तीय समितियों का संस्थानीकरण में योगदान:
Do you agree with the claim that indecision and risk aversion are prevalent issues in Indian bureaucracy? Support your answer with logical reasoning. (150 words) ऐसा कहा जाता है कि भारतीय नौकरशाही में अनिर्णय और जोखिम से बचने की प्रवृत्ति ...
Rising Threats Digital Era Challenges: 2024 marks a significant rise in digital threats, particularly from AI and cyberattacks. Key Issues: Disinformation campaigns. Cyber fraud affecting daily life. Current Major Cyber Threats Ransomware Rampage: Over 48,000 instances of WannaCry ransomware detected ...
बढ़ते खतरे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और साइबर हमले: 2024 में AI और साइबर हमलों के खतरे में वृद्धि। महत्वपूर्ण अवसंरचना पर हमले: डिजिटल हमलों और दुष्प्रचार अभियानों की संभावना बढ़ी है। प्रमुख साइबर खतरें रैनसमवेयर का प्रकोप: 48,000 से अधिक ...
समितियों की उपयोगिता: समितियाँ संसदीय कार्यों की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विस्तृत विचार-विमर्श, विश्लेषण, और विशेषज्ञों से साक्षात्कार के माध्यम से जटिल मुद्दों की गहराई से जांच करती हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक सूचित और संतुलित होती है। उदाहरRead more
समितियों की उपयोगिता: समितियाँ संसदीय कार्यों की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विस्तृत विचार-विमर्श, विश्लेषण, और विशेषज्ञों से साक्षात्कार के माध्यम से जटिल मुद्दों की गहराई से जांच करती हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक सूचित और संतुलित होती है। उदाहरण के लिए, लोकसभा की सार्वजनिक क्षेत्र समिति ने 2023 में कई सार्वजनिक उपक्रमों की स्थिति की समीक्षा की और सुधार सुझाव दिए, जो उनके प्रबंधन में पारदर्शिता और सुधार को बढ़ावा देते हैं।
प्राक्कलन समिति की भूमिका:
निष्कर्ष: समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए अत्यधिक उपयोगी होती हैं, और प्राक्कलन समिति का बजट समीक्षा और सुधार में केंद्रीय योगदान है, जो संसदीय प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बढ़ाती है।
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