प्रश्न का उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 11 अंक का है। [MPPSC 2023] भारतीय संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, परन्तु इसके मूल ढांचे में नहीं” चर्चा करें।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के आलोक में कैदियों को मताधिकार से वंचित करना लोकतंत्र के मूल्यों और अधिकारों के प्रति एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारत में चुनावों के आयोजन और चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाला मुख्य कानून है। यह अधिनियम मतदाता योग्यता, चुनावी नियमोंRead more
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के आलोक में कैदियों को मताधिकार से वंचित करना लोकतंत्र के मूल्यों और अधिकारों के प्रति एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 भारत में चुनावों के आयोजन और चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाला मुख्य कानून है। यह अधिनियम मतदाता योग्यता, चुनावी नियमों और लोक प्रतिनिधियों की नियुक्ति को निर्धारित करता है।
कैदियों के मताधिकार का प्रश्न:
डेमोक्रेटिक सिद्धांत: लोकतंत्र में मतदान का अधिकार प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है, जिसे संविधान और चुनावी कानूनों के माध्यम से संरक्षित किया गया है। कैदियों को मताधिकार से वंचित करना, जो कि उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर रखता है, लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है।
मानवाधिकार और पुनर्वास: कैदी भी समाज के सदस्य होते हैं और उनके अधिकारों का सम्मान करना आवश्यक है। मताधिकार से वंचित करना पुनर्वास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है और समाज की मुख्यधारा में उनकी पुनः स्थापना के प्रयासों को कमजोर करता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: इस अधिनियम में कैदियों के मतदान के अधिकार को सीधे तौर पर संबोधित नहीं किया गया है, परंतु इसमें नागरिकों के मतदान के अधिकारों को मान्यता दी गई है। भारतीय संविधान के तहत, कैदियों को मतदान से वंचित करने की प्रथा एक विवादित मामला है। विभिन्न न्यायालयों ने इस मुद्दे पर विभिन्न विचार व्यक्त किए हैं, जिसमें कहा गया है कि कैदियों को मतदान के अधिकार से वंचित करना उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
निष्कर्ष:
कैदियों को मताधिकार से वंचित करना लोकतंत्र के मूल्य और मानवाधिकारों के प्रति एक चुनौतीपूर्ण सवाल है। यह सुनिश्चित करना कि सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए, लोकतांत्रिक समाज की ताकत और न्याय के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस संदर्भ में, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और अन्य कानूनी ढाँचों का समीक्षा और सुधार महत्वपूर्ण हो सकता है।
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तनRead more
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। यह सिद्धांत संविधान की स्थिरता और उसके बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करता है।
मूल ढांचा सिद्धांत का उदय:
समकालीन उदाहरण:
निष्कर्ष: भारतीय संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीयता और मौलिक अधिकारों जैसे तत्वों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करता है। संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है। मूल ढांचा सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान की आत्मा संरक्षित रहे, और कोई भी संशोधन संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर न करे। वर्तमान में, संवैधानिक संशोधनों के संदर्भ में इस सिद्धांत का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और अखंडता की रक्षा करता है।
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