भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइए जब सामान्यतः यह होता है तथा उन अवसरों को भी जब यह नहीं किया जा सकता, और इसके कारण भी बताइए। (250 ...
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसका हाशिया नोट "जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबन्ध" है, जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। इसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय की विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करना था। अस्थायीता की सीमा: प्रारंभिक उद्देश्य: अनुच्छेद 370 कRead more
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसका हाशिया नोट “जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबन्ध” है, जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। इसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय की विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करना था।
अस्थायीता की सीमा:
प्रारंभिक उद्देश्य: अनुच्छेद 370 को अस्थायी रूप से स्थापित किया गया था ताकि जम्मू और कश्मीर की विशेष परिस्थितियों के अनुसार एक स्वायत्त व्यवस्था बनाई जा सके। इसके तहत राज्य की अपनी संविधान और अधिकांश प्रशासनिक स्वतंत्रताएँ थीं, जबकि रक्षा, विदेश मामले, और संचार जैसे कुछ विषयों पर केंद्रीय नियंत्रण था।
स्वायत्तता: अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर को अपने संविधान और विधायिका की स्वतंत्रता प्रदान की, लेकिन यह सीमित था और किसी भी बदलाव के लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक थी।
उन्मूलन: 2019 में, भारतीय सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया। इसके तहत जम्मू और कश्मीर को दो संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया—जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख। इस कदम ने विशेष स्वायत्तता और अनुच्छेद 370 द्वारा प्रदान की गई व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
भावी सम्भावनाएँ:
संवैधानिक और राजनीतिक प्रभाव: अनुच्छेद 370 के उन्मूलन से जम्मू और कश्मीर की राज्य-व्यवस्था और राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। केंद्रीय नियंत्रण में वृद्धि और नई प्रशासनिक संरचना की शुरुआत ने राज्य के साथ संबंधों में नई दिशा दी है।
क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रभाव: यह परिवर्तन क्षेत्रीय राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में नई प्राथमिकताएँ और नीतियाँ ला सकता है, जो भारतीय संघीय ढाँचे पर प्रभाव डालेगा।
कानूनी और राजनयिक प्रतिक्रियाएँ: अनुच्छेद 370 के उन्मूलन ने कानूनी और राजनयिक स्तर पर विविध प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं, जो भारत के आंतरिक और बाहरी संबंधों पर प्रभाव डालेंगी।
सारांश में, अनुच्छेद 370 एक अस्थायी उपबन्ध के रूप में स्थापित था, लेकिन इसके लंबे समय तक प्रभावी रहने के बाद 2019 में इसके उन्मूलन ने जम्मू और कश्मीर के प्रशासनिक और राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं।
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भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है। संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर: कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकRead more
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है।
संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर:
कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, लेकिन राज्यसभा द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है या राज्यसभा इसमें 14 दिनों के भीतर कोई निर्णय नहीं लेती है, तब संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है। यह विधेयक की प्रक्रिया में गतिरोध को समाप्त करने के लिए किया जाता है।
विधेयक की पुनरावृत्ति: यदि राज्यसभा एक विधेयक को लोकसभा द्वारा भेजे जाने के बाद 14 दिनों के भीतर पास नहीं करती या वापस नहीं भेजती है, तो लोकसभा संयुक्त सत्र की मांग कर सकती है।
संयुक्त सत्र नहीं बुलाए जा सकते:
मनी बिल: मनी बिलों पर संयुक्त सत्र नहीं बुलाया जा सकता। मनी बिल पर राज्यसभा केवल सिफारिशें कर सकती है, और लोकसभा को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है। राज्यसभा को मनी बिल को 14 दिनों के भीतर वापस करना होता है, और लोकसभा की अनुमति से ही इसे पारित किया जा सकता है।
अनुदान विधेयक: अनुदान विधेयक, जो सरकारी खर्च से संबंधित होते हैं, संयुक्त सत्र का हिस्सा नहीं हो सकते। इन पर लोकसभा का विशेष अधिकार होता है।
संविधान संशोधन विधेयक: संविधान संशोधन विधेयक भी संयुक्त सत्र के दायरे में नहीं आते। इन्हें संसद में दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है और इसके साथ-साथ कुछ राज्यों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
निष्कर्ष
See lessसंविधान के अनुसार, संयुक्त सत्र विशेष परिस्थितियों में बुलाया जाता है, जैसे कि विधेयकों पर गतिरोध को समाप्त करने के लिए। मनी बिल, अनुदान विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक जैसे विशेष मामलों में संयुक्त सत्र का प्रावधान नहीं होता, ताकि प्रत्येक सदन की विशेष भूमिका और प्रक्रियाओं की रक्षा की जा सके।