Home/भारतीय राजव्यवस्था/Page 2
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
विवादों के समाधान के लिए, हाल के वर्षों में कौन-से वैकल्पिक तंत्र उभरे है? वे कितने प्रभावी सिद्ध हुए है ? (200 Words) [UPPSC 2023]
हाल के वर्षों में विवादों के समाधान के लिए कई वैकल्पिक तंत्र उभरे हैं, जो पारंपरिक मुकदमेबाज़ी के विकल्प प्रदान करते हैं। इनमें शामिल हैं: मध्यस्थता (Mediation): मध्यस्थता में एक तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्षों के बीच संवाद को सुविधाजनक बनाता है ताकि एक परस्पर स्वीकार्य समाधान पर पहुँच सके। यह तंत्र पाRead more
हाल के वर्षों में विवादों के समाधान के लिए कई वैकल्पिक तंत्र उभरे हैं, जो पारंपरिक मुकदमेबाज़ी के विकल्प प्रदान करते हैं। इनमें शामिल हैं:
इन वैकल्पिक तंत्रों ने पारंपरिक मुकदमेबाज़ी के मुकाबले अधिक लचीलापन, सुलभता, और कुशलता प्रदान की है। हालांकि, इनकी प्रभावशीलता संदर्भ और पक्षों की प्रक्रिया में भागीदारी पर निर्भर करती है।
See lessसंयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधानों में, समता के अधिकार की धारणा की विशिष्ट विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]]
संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधानों में समता के अधिकार की धारणा महत्वपूर्ण है, लेकिन उनकी विशिष्ट विशेषताएँ अलग-अलग हैं। भारत में समता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समता के अधिकार की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 1Read more
संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधानों में समता के अधिकार की धारणा महत्वपूर्ण है, लेकिन उनकी विशिष्ट विशेषताएँ अलग-अलग हैं।
भारत में समता का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समता के अधिकार की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 15 जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में समान अवसर की गारंटी देता है। इसके अलावा, अनुच्छेद 17 जातिगत भेदभाव को समाप्त करता है।
भारत में समता का अधिकार सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो विशेष रूप से कमजोर वर्गों को सशक्त करने पर केंद्रित है।
अमेरिका में समता का अधिकार
संयुक्त राज्य अमेरिका में समता का अधिकार मुख्यतः संविधान के चौदहवें संशोधन द्वारा सुनिश्चित किया गया है, जो “समान संरक्षण का अधिकार” प्रदान करता है। यह भेदभाव के खिलाफ कानूनी सुरक्षा का आधार है। अमेरिका में नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून भी बनाए गए हैं, जैसे कि नागरिक अधिकार अधिनियम (1964), जो नस्ल, रंग, धर्म, लिंग या राष्ट्रीय उत्पत्ति के आधार पर भेदभाव को समाप्त करता है।
तुलना
भारत में समता का अधिकार सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में अधिक उन्मुख है, जबकि अमेरिका में यह कानूनी और राजनीतिक अधिकारों का संरक्षण करता है। भारत में समता का अधिकार विशेष रूप से कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए अधिक संवेदनशील है, जबकि अमेरिका में यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की मूल धारणा पर केंद्रित है। दोनों संविधानों में समता का अधिकार महत्वपूर्ण है, लेकिन उनके कार्यान्वयन और सामाजिक संदर्भ अलग-अलग हैं।
See lessभारत में लोकपाल की शक्तियों एवं सीमाओं की समीक्षा कीजिये।
भारत में लोकपाल की शक्तियों एवं सीमाओं की समीक्षा परिचय लोकपाल की स्थापना 2013 में हुई थी, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार के मामलों की जांच और निपटान करना है। यह संस्था केंद्रीय सरकार और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है। लोकपाल का गठन भारत के संविधान में एक महत्वपूर्ण सुधारRead more
भारत में लोकपाल की शक्तियों एवं सीमाओं की समीक्षा
परिचय
लोकपाल की स्थापना 2013 में हुई थी, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार के मामलों की जांच और निपटान करना है। यह संस्था केंद्रीय सरकार और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करती है। लोकपाल का गठन भारत के संविधान में एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में किया गया था, जो पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है।
लोकपाल की शक्तियाँ
लोकपाल की सीमाएँ
निष्कर्ष
लोकपाल एक महत्वपूर्ण संस्था है जो भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हालांकि, इसके शक्तियों और सीमाओं की समीक्षा से यह स्पष्ट होता है कि इसे और भी सशक्त और प्रभावी बनाने के लिए सुधार की आवश्यकता है। संसाधनों की कमी और सीमित अधिकारों के बावजूद, लोकपाल की भूमिका भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में एक महत्वपूर्ण कदम है।
See lessकौटिल्य के प्रशासन में भ्रष्टाचार के कितने मार्ग बताये गए हैं?
कौटिल्य के प्रशासन में भ्रष्टाचार के मार्ग कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में भ्रष्टाचार के चार प्रमुख मार्ग बताए हैं। ये मार्ग प्रशासनिक ईमानदारी को चुनौती देते हैं और शासन के प्रभावी संचालन को प्रभावित करते हैं। 1. घूस (रिष्वता) घूस वह प्रक्रिया है जिसRead more
कौटिल्य के प्रशासन में भ्रष्टाचार के मार्ग
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में भ्रष्टाचार के चार प्रमुख मार्ग बताए हैं। ये मार्ग प्रशासनिक ईमानदारी को चुनौती देते हैं और शासन के प्रभावी संचालन को प्रभावित करते हैं।
1. घूस (रिष्वता)
घूस वह प्रक्रिया है जिसमें पैसे या वस्तुओं का लेन-देन निर्णयों और क्रियाओं को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। कौटिल्य के अनुसार, घूस एक महत्वपूर्ण भ्रष्टाचार का मार्ग है जो शासन की निष्पक्षता को प्रभावित करता है।
2. धन की हेराफेरी (व्यापद)
धन की हेराफेरी में उन निधियों की चोरी या दुरुपयोग शामिल है जो किसी के पास रखी गई हैं। कौटिल्य ने इसे गंभीर मुद्दा माना क्योंकि यह राज्य की वित्तीय संसाधनों को सीधे प्रभावित करता है।
3. अधिकारियों को घूस देना (अमात्य-रिष्वता)
यह भ्रष्टाचार का प्रकार है जिसमें अधिकारियों को विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए घूस दी जाती है। कौटिल्य ने इसे प्रशासन की निष्पक्षता और प्रभावशीलता को प्रभावित करने वाला माना।
4. प्रशासनिक भ्रष्टाचार (आरण्य-व्यापद)
प्रशासनिक भ्रष्टाचार का तात्पर्य उन व्यापक भ्रष्टाचार से है जो प्रशासनिक ढांचे के भीतर होती है। इसमें उन प्रथाओं की भी शामिल होती है जहां भ्रष्टाचार प्रणाली में गहराई से समाहित हो जाता है।
निष्कर्ष
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में भ्रष्टाचार के चार प्रमुख मार्ग: घूस, धन की हेराफेरी, अधिकारियों को घूस देना, और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का उल्लेख किया है। वर्तमान उदाहरण जैसे विजय माल्या मामला, सत्याम घोटाला, कैश-फॉर-वीट घोटाला, और दिल्ली पुलिस भर्ती घोटाला इन मार्गों की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता को दर्शाते हैं। इन बिन्दुओं को समझना आधुनिक भ्रष्टाचार निवारण नीतियों के लिए महत्वपूर्ण है और प्रशासनिक सुधारों में उनकी प्रभावशीलता को बढ़ावा देने में सहायक है।
See lessकेन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन किस समिति की अनुशंसा पर किया गया था?
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और समिति की अनुशंसा केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission - CVC) भारत सरकार का एक प्रमुख संस्थान है, जिसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार की निगरानी और रोकथाम करना है। यह आयोग सरकारी कर्मचारियों औरRead more
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और समिति की अनुशंसा
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission – CVC) भारत सरकार का एक प्रमुख संस्थान है, जिसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार की निगरानी और रोकथाम करना है। यह आयोग सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के कार्यों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
गठन की अनुशंसा
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन सत्य नारायण समिति की अनुशंसा पर किया गया था। सत्य नारायण समिति, जिसे 1963 में सत्य नारायण रेddy द्वारा अध्यक्षता में गठित किया गया था, ने भारत में भ्रष्टाचार की समस्या को गंभीरता से लिया और इसके समाधान के लिए ठोस उपाय सुझाए। समिति ने एक स्वतंत्र संस्था की आवश्यकता की बात की जो सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर निगरानी रख सके और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रभावी उपाय कर सके।
सत्य नारायण समिति की अनुशंसाएँ
वर्तमान स्थिति और उदाहरण
निष्कर्ष
केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन सत्य नारायण समिति की अनुशंसा पर किया गया था, जिसने सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी। आयोग की स्थापना के बाद से, यह भ्रष्टाचार की रोकथाम और सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सत्य नारायण समिति की अनुशंसाएँ आज भी भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्ध होती हैं।
See lessकौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिए।
कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता परिचय कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ "अर्थशास्त्र" में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य राज्य की सुरक्षा, शक्ति, और समृद्धि को सुनिश्चित करना था। आधुनिक समय में, कौटिल्य की वRead more
कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता
परिचय
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ग्रंथ “अर्थशास्त्र” में विदेश नीति पर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य राज्य की सुरक्षा, शक्ति, और समृद्धि को सुनिश्चित करना था। आधुनिक समय में, कौटिल्य की विदेश नीति के सिद्धांत कई वैश्विक परिदृश्यों में प्रासंगिक साबित हो रहे हैं। इस उत्तर में, हम देखेंगे कि कौटिल्य की विदेश नीति की समकालीन प्रासंगिकता क्या है और हाल की घटनाओं के उदाहरणों के माध्यम से इसे समझेंगे।
1. शक्ति संतुलन और नीति
2. सहयोग और विरोध की रणनीति
3. आंतरिक और बाहरी सुरक्षा
4. कूटनीति और राजनयिकता
5. अनुकूलन और लचीलापन
6. आर्थिक और व्यापारिक हित
निष्कर्ष
कौटिल्य की विदेश नीति के सिद्धांत आज भी वैश्विक राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में प्रासंगिक हैं। शक्ति संतुलन, कूटनीति, आंतरिक सुरक्षा, और आर्थिक हितों पर ध्यान देने वाले उनके विचार आधुनिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण हैं। UPSC Mains aspirants के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐतिहासिक सिद्धांतों का आधुनिक संदर्भ में कैसे उपयोग किया जा सकता है और उनके अनुसार नीतियाँ कैसे विकसित की जा सकती हैं।
See lessफर्स्ट पास्ट द पोस्ट व्यवस्था' का भारतीय संदर्भ में आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ व्यवस्था का भारतीय संदर्भ में आलोचनात्मक मूल्यांकन परिचय ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ (FPTP) चुनावी व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें चुनावी क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार जीतता है, भले ही उसे कुल मतों का बहुमत न मिले। भारत में इस व्यवस्था का उपयोग लोकसभा और कईRead more
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ व्यवस्था का भारतीय संदर्भ में आलोचनात्मक मूल्यांकन
परिचय
‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ (FPTP) चुनावी व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें चुनावी क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार जीतता है, भले ही उसे कुल मतों का बहुमत न मिले। भारत में इस व्यवस्था का उपयोग लोकसभा और कई राज्य विधानसभाओं के चुनावों में किया जाता है। इस व्यवस्था का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के लिए, इसके लाभ और सीमाओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट व्यवस्था की विशेषताएँ
FPTP व्यवस्था की सीमाएँ
वैकल्पिक प्रणाली
निष्कर्ष
‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ व्यवस्था के भारतीय संदर्भ में एक मिश्रित प्रभाव है। जहां यह प्रणाली चुनावी प्रक्रिया को सरल और स्थिर बनाती है, वहीं इसके द्वारा प्रतिनिधित्व की कमी, रणनीतिक मतदान, और सामाजिक विभाजन की समस्याएँ भी उभरती हैं। इन सीमाओं के मद्देनजर, वैकल्पिक चुनावी प्रणालियों की चर्चा और संभावनाएँ विचारणीय हैं, जो भविष्य में अधिक समावेशी और प्रतिनिधित्वात्मक चुनावी परिदृश्य को प्रोत्साहित कर सकती हैं। UPSC Mains उम्मीदवारों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न चुनावी प्रणालियाँ कैसे काम करती हैं और उनके संभावित प्रभाव क्या हो सकते हैं।
See lessकेन्द्रीय सूचना आयोग के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
केन्द्रीय सूचना आयोग के प्रमुख उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही: केन्द्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission - CIC) का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक प्राधिकारियों के कामकाज में पारदर्शिता को बढ़ावा देना और जवाबदेही सुनिश्चित करना है जो 2005 के सूचना का अधिकार (Right to Information - RTI) अधिनियमRead more
केन्द्रीय सूचना आयोग के प्रमुख उद्देश्य
हाल के उदाहरण
इन मुख्य उद्देश्यों को पूरा करके, केन्द्रीय सूचना आयोग भारत की शासन प्रणाली में पारदर्शिता, जवाबदेही और सूचना के अधिकार को उचित रूप से उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessभारत के चुनाव आयोग की स्वतन्त्रता से आप क्या समझते हैं? इसके मार्गदर्शक सिद्धान्त क्या हैं?
भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से मुझे यह मान्यता है कि यह निष्पक्षता और निर्भीकता को सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, बिना किसी अंतर्निहित प्रभाव से प्रभावित होने के। चुनाव आयोग की इस स्वतंत्रता के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र में मुक्त और न्यायसंRead more
भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता
भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से मुझे यह मान्यता है कि यह निष्पक्षता और निर्भीकता को सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, बिना किसी अंतर्निहित प्रभाव से प्रभावित होने के। चुनाव आयोग की इस स्वतंत्रता के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र में मुक्त और न्यायसंगत चुनाव सुनिश्चित किए जाते हैं।
मार्गदर्शक सिद्धान्त
हाल के उदाहरण
इस प्रकार, चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और मार्गदर्शक सिद्धांतों का पालन करना भारतीय लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessभारतीय संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, परन्तु इसके मूल ढांचे में नहीं" चर्चा करें।
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तनRead more
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। यह सिद्धांत संविधान की स्थिरता और उसके बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करता है।
मूल ढांचा सिद्धांत का उदय:
समकालीन उदाहरण:
निष्कर्ष: भारतीय संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीयता और मौलिक अधिकारों जैसे तत्वों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करता है। संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है। मूल ढांचा सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान की आत्मा संरक्षित रहे, और कोई भी संशोधन संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर न करे। वर्तमान में, संवैधानिक संशोधनों के संदर्भ में इस सिद्धांत का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और अखंडता की रक्षा करता है।
See less