भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की संवैधानिक स्थिति का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
राजद्रोह कानून, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत परिभाषित किया गया है, एक विवादास्पद प्रावधान है जो देश के प्रति निष्ठा को चुनौती देने वाले आचरण को दंडनीय बनाता है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों और उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के संदर्भ में, यह कानून कई सवाल उठाता है और इसकी आलोचनाRead more
राजद्रोह कानून, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत परिभाषित किया गया है, एक विवादास्पद प्रावधान है जो देश के प्रति निष्ठा को चुनौती देने वाले आचरण को दंडनीय बनाता है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों और उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के संदर्भ में, यह कानून कई सवाल उठाता है और इसकी आलोचना की जाती है।
संविधानिक दृष्टिकोण: भारतीय संविधान, जो एक उदार लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर आधारित है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है। अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत, नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, जो लोकतंत्र के केंद्रीय तत्वों में से एक है। राजद्रोह कानून, जो सरकार की आलोचना या विरोध को दंडनीय बनाता है, इस स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ: राजद्रोह कानून का दुरुपयोग लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों को खतरे में डाल सकता है। इसका दुरुपयोग राजनीतिक असहमति या सामाजिक आलोचना को दंडित करने के लिए किया जा सकता है, जो कि खुले और स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद के विपरीत है। कई विशेषज्ञ और अधिकार समूह मानते हैं कि इस कानून का प्रयोग आलोचना को दबाने और राजनीतिक असंतोष को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जिससे कि सरकार की आलोचना करने वालों को चुप कराया जा सकता है।
संविधानिक सुधार की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की है और इसके अनुप्रयोग को अधिक सख्त मानदंडों के तहत रखने की सलाह दी है। अदालत ने यह माना है कि इस कानून का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब किसी के कार्य वास्तव में राष्ट्र के खिलाफ सीधे खतरा पैदा करते हों, न कि सामान्य आलोचना या असहमति को दंडित करने के लिए।
निष्कर्ष: राजद्रोह कानून भारतीय संविधान के उदार लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव पर हमला करने की क्षमता रखता है यदि इसका दुरुपयोग किया जाए। हालांकि यह कानून राष्ट्र की सुरक्षा और एकता को बनाए रखने के लिए बनाया गया है, लेकिन इसकी संकीर्ण व्याख्या और दुरुपयोग से संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, इस कानून की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है ताकि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ संगत रहे और असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए न उपयोग किया जाए।
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भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति 1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्Read more
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति
1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्त CAG हैं।
2. स्वतंत्रता: CAG पूरी स्वतंत्रता से कार्य करता है और इसके पद की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। हटाने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह होती है, जो इसकी स्वतंत्रता को बनाए रखती है।
3. अधिकार और कार्य: CAG केंद्र और राज्य सरकारों के खातों की लेखा परीक्षा करता है। इसके रिपोर्ट संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, 2021 की CAG रिपोर्ट ने कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया में अनियमितताओं को उजागर किया।
निष्कर्ष: CAG की संवैधानिक स्थिति उसे स्वतंत्र रूप से काम करने और सरकारी वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने की शक्ति देती है।
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