क्या स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार में दीवाली के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम भी शामिल हैं? इस पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के, और इस संबंध में शीर्ष न्यायालय के निर्णय/निर्णयों के, प्रकाश में चर्चा कीजिए। (200 words) ...
संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान के संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन यह शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और इसे अनंत या पूर्ण शक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसका व्याख्या निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. संविधान की संशोधन शक्ति: अनुच्छेद 368 के अंतर्गत, संसद को संRead more
संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान के संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन यह शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और इसे अनंत या पूर्ण शक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसका व्याख्या निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. संविधान की संशोधन शक्ति:
अनुच्छेद 368 के अंतर्गत, संसद को संविधान के किसी भी भाग को संशोधित करने की शक्ति है, जो एक विधायी प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है। संशोधन के लिए संसद में प्रस्ताव पेश किया जाता है, और इसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाता है, उसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है।
2. संविधान के मूल ढांचे की रक्षा:
केशवानंद भारती केस (1973) में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संसद के पास संविधान के मूल ढांचे को बदलने की शक्ति नहीं है। संविधान का मूल ढांचा उन आधारभूत सिद्धांतों और प्रावधानों का समूह है जो संविधान की स्थिरता और पहचान को बनाए रखते हैं। इनमें संघीय ढांचा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और मौलिक अधिकार शामिल हैं।
3. संशोधन की सीमाएँ:
संसद की संशोधन शक्ति परिसीमित है, जिसका अर्थ है कि संसद संविधान के मूल ढांचे को नष्ट या परिवर्तित नहीं कर सकती। यदि संसद ऐसा संशोधन प्रस्तावित करती है जो संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करता है या उसे कमजोर करता है, तो वह संशोधन न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है। सुप्रीम कोर्ट किसी भी संशोधन की समीक्षा कर सकता है और यह तय कर सकता है कि क्या वह संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करता है या नहीं।
इस प्रकार, संसद के पास संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने की शक्ति नहीं है, और उसकी संशोधन शक्ति इस ढांचे के प्रति संरक्षित रहती है।
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स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। इस अधिकार का विस्तार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार तक किया गया है। दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम इस अधिकार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनुच्छेदRead more
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। इस अधिकार का विस्तार स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार तक किया गया है। दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखे जलाने के विधिक विनियम इस अधिकार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अनुच्छेद 21 और पर्यावरण का अधिकार:
अनुच्छेद 21: यह अनुच्छेद जीवन का अधिकार प्रदान करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक रूप से व्याख्यायित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जीवन स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण में जीया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:
वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम संघ भारत (1996): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत आता है और यह सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है कि प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जाए।
See lessM.C. Mehta बनाम संघ भारत (2005): सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण पर विचार करते हुए, यह कहा कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए विधिक उपाय किए जाने चाहिए। अदालत ने वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए।
M.C. Mehta बनाम संघ भारत (2018): इस निर्णय में, कोर्ट ने दीवाली के दौरान पटाखों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लागू किए ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। अदालत ने पटाखों के निर्माण और बिक्री पर नियंत्रण के लिए आदेश दिए।
निष्कर्ष:
स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार, जो अनुच्छेद 21 के तहत आता है, दीवाली जैसे त्योहारों के दौरान पटाखों के उपयोग पर विधिक विनियम को सही ठहराता है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण की समस्या को ध्यान में रखते हुए पटाखों पर नियंत्रण के लिए कदम उठाए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्सवों के दौरान भी पर्यावरण सुरक्षित रहे।