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भारत सरकार अधिनियम
भारत सरकार अधिनियम 1935 में उल्लिखित निर्देशों के दस्तावेज (Instruments of Instructions) 1950 में भारत के संविधान में संविधान के अनुच्छेद 309 से 311 के रूप में समाहित किए गए। अनुच्छेद 309: यह अनुच्छेद सरकारी सेवा और कर्मचारियों के भर्ती, सेवा की शर्तों और अनुशासन पर शासन करने के लिए विधान बनाना का अRead more
भारत सरकार अधिनियम 1935 में उल्लिखित निर्देशों के दस्तावेज (Instruments of Instructions) 1950 में भारत के संविधान में संविधान के अनुच्छेद 309 से 311 के रूप में समाहित किए गए।
अनुच्छेद 309: यह अनुच्छेद सरकारी सेवा और कर्मचारियों के भर्ती, सेवा की शर्तों और अनुशासन पर शासन करने के लिए विधान बनाना का अधिकार राज्यों और केंद्र को प्रदान करता है। इसमें केंद्रीय और राज्य सरकारी सेवाओं की भर्ती, उनके कर्तव्य और अधिकारों का निर्धारण किया जाता है।
अनुच्छेद 310: यह अनुच्छेद भारत के सशस्त्र बलों और सिविल सेवा के कर्मचारियों के सेवाकाल की सुरक्षा से संबंधित है। इसके तहत यह कहा गया है कि सरकारी सेवा में किसी कर्मचारी को बिना कारण बताए निकालने की स्थिति में उन्हें उचित प्रक्रिया का पालन करना पड़ेगा।
अनुच्छेद 311: यह अनुच्छेद सरकारी कर्मचारियों की अनुशासन और अपील से संबंधित है। इसके तहत यह कहा गया है कि किसी कर्मचारी को बिना उचित कारण और बिना सुनवाई के नौकरी से नहीं निकाला जा सकता है।
भारत सरकार अधिनियम 1935 में दिए गए दस्तावेज़ों और निर्देशों के इन बिंदुओं को संविधान में समाहित करके भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को और अधिक मजबूत और न्यायसंगत बनाया गया।
See lessभारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की गतिविधियों का दायरा क्या है?
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की गतिविधियों का दायरा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की गतिविधियाँ सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनके दायरे में विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य सरकारी खर्च औरRead more
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की गतिविधियों का दायरा
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की गतिविधियाँ सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनके दायरे में विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य सरकारी खर्च और वित्तीय संचालन की निगरानी करना है। यहाँ इनकी प्रमुख गतिविधियों का विवरण दिया गया है:
1. केंद्र और राज्य सरकारों का वित्तीय लेखा परीक्षा
CAG वित्तीय लेखा परीक्षाएँ करती है, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों के खातों की जांच की जाती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक धन का उपयोग विधिक प्रावधानों के अनुसार किया जा रहा है।
उदाहरण: 2022-23 के लेखा परीक्षात्मक रिपोर्टों में, CAG ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा COVID-19 राहत कोष के आवंटन और उपयोग में असमानताओं को उजागर किया, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार की दिशा में कदम उठाए गए।
2. सरकारी कार्यक्रमों की प्रदर्शन लेखा परीक्षा
CAG प्रदर्शन लेखा परीक्षाएँ करती है ताकि यह मूल्यांकन किया जा सके कि सरकारी कार्यक्रम और योजनाएँ कितनी प्रभावी और कुशल हैं। इसमें यह देखना शामिल है कि क्या योजनाओं के उद्देश्यों को पूरा किया जा रहा है और संसाधनों का उपयोग सही तरीके से हो रहा है।
उदाहरण: 2023 में प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) पर CAG की प्रदर्शन लेखा परीक्षा ने परियोजनाओं में देरी और असमानताओं को उजागर किया, जिसके परिणामस्वरूप योजना की कार्यान्वयन में सुधार के लिए कदम उठाए गए।
3. अनुपालन लेखा परीक्षा
अनुपालन लेखा परीक्षा के माध्यम से CAG यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी विभाग और एजेंसियाँ वित्तीय संचालन में कानूनी नियमों और प्रक्रियाओं का पालन कर रही हैं। इससे वित्तीय प्रबंधन में गड़बड़ियाँ और गैर-अनुपालन की पहचान होती है।
उदाहरण: 2024 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) की लेखा परीक्षा ने वित्तीय प्रबंधन मानदंडों के अनुपालन में खामियों और वेतन भुगतान में विसंगतियों को उजागर किया, जिससे दिशा-निर्देशों के प्रति सख्त पालन की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
4. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की लेखा परीक्षा
CAG सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के खातों की भी लेखा परीक्षा करती है, जिसमें सरकारी स्वामित्व वाले निगम और कंपनियाँ शामिल हैं। इसका उद्देश्य सुनिश्चित करना है कि ये कंपनियाँ कुशलता से संचालित हो रही हैं और उनके वित्तीय रिपोर्ट सटीक हैं।
उदाहरण: 2023 में एयर इंडिया की लेखा परीक्षा ने वित्तीय प्रबंधन और प्रभावशीलता में समस्याओं को उजागर किया, जिसने एयरलाइन के संचालन और लाभप्रदता पर असर डाला। इसके परिणामस्वरूप सुधार और पुनर्गठन के प्रयास शुरू किए गए।
5. विशेष लेखा परीक्षाएँ और जांच
CAG विशेष लेखा परीक्षाएँ और जांच भी करती है, जो राष्ट्रपति या संसद के निर्देश पर होती हैं। ये लेखा परीक्षाएँ विशेष मुद्दों या क्षेत्रों पर केंद्रित होती हैं जहाँ वित्तीय अनियमितताओं या प्रबंधन में समस्याएँ होती हैं।
उदाहरण: 2023 में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) पर CAG की विशेष लेखा परीक्षा ने टोल संग्रहण और रखरखाव अनुबंधों में असमानताओं की जांच की, जिसके परिणामस्वरूप निगरानी और संचालन में सुधार की सिफारिशें की गईं।
6. संसद को रिपोर्टिंग
CAG अपनी लेखा परीक्षा रिपोर्टों को संसद को प्रस्तुत करती है, जिन्हें बाद में सार्वजनिक लेखा समिति (PAC) और अन्य समितियों द्वारा समीक्षा की जाती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि लेखा परीक्षा की निष्कर्षों पर संसद द्वारा चर्चा और कार्रवाई की जाती है।
उदाहरण: 2024 में रक्षा आपूर्ति पर CAG की रिपोर्ट संसद में व्यापक रूप से चर्चा की गई, जिसमें रक्षा उपकरणों की खरीद में देरी और निष्क्रियता पर प्रकाश डाला गया, जिससे नीति संशोधन और बढ़ती निगरानी को प्रेरित किया गया।
7. सलाहकारी भूमिका
हालांकि CAG की मुख्य भूमिका लेखा परीक्षा की है, यह सलाहकारी सेवाएँ भी प्रदान करती है, जैसे वित्तीय प्रबंधन प्रथाओं और लेखांकन प्रणालियों में सुधार के लिए दिशा-निर्देश देना। यह वित्तीय शासन और पारदर्शिता को सशक्त बनाता है।
उदाहरण: 2024 में, CAG ने e-Governance पहलों को बढ़ाने के लिए राज्यों को सलाह जारी की, जिससे वित्तीय लेनदेन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सके और सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार हो सके।
सारांश में, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की गतिविधियों का दायरा वित्तीय लेखा, प्रदर्शन लेखा, अनुपालन लेखा, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की लेखा परीक्षा, विशेष लेखा परीक्षाएँ, संसद को रिपोर्टिंग, और सलाहकारी सेवाएँ प्रदान करने तक विस्तृत है। ये कार्य सरकारी वित्तीय प्रबंधन की पारदर्शिता, जवाबदेही, और कुशलता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessभारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की संवैधानिक स्थिति का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति 1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्Read more
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति
1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्त CAG हैं।
2. स्वतंत्रता: CAG पूरी स्वतंत्रता से कार्य करता है और इसके पद की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। हटाने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह होती है, जो इसकी स्वतंत्रता को बनाए रखती है।
3. अधिकार और कार्य: CAG केंद्र और राज्य सरकारों के खातों की लेखा परीक्षा करता है। इसके रिपोर्ट संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, 2021 की CAG रिपोर्ट ने कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया में अनियमितताओं को उजागर किया।
निष्कर्ष: CAG की संवैधानिक स्थिति उसे स्वतंत्र रूप से काम करने और सरकारी वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने की शक्ति देती है।
See lessसार्वजनिक धन के सरंक्षक के रूप में, भारत के नियंत्रक एवं मालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
सार्वजनिक धन के सरंक्षक के रूप में, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण 1. लेखा परीक्षण और वित्तीय रिपोर्टिंग (Audit and Financial Reporting): जिम्मेदारी: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) केंद्रीय और राज्य सरकारों के खातों का लेखा परीक्षण करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सारRead more
सार्वजनिक धन के सरंक्षक के रूप में, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण
1. लेखा परीक्षण और वित्तीय रिपोर्टिंग (Audit and Financial Reporting):
2. जवाबदेही सुनिश्चित करना (Ensuring Accountability):
3. जनहित की रक्षा (Public Interest Protection):
4. रिपोर्टिंग और सिफारिशें (Reporting and Recommendations):
5. स्वतंत्रता और ईमानदारी (Independence and Integrity):
निष्कर्ष: भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सार्वजनिक धन के एक महत्वपूर्ण संरक्षक के रूप में कार्य करता है। लेखा परीक्षण, जवाबदेही सुनिश्चित करने, जनहित की रक्षा, और सिफारिशों के माध्यम से, CAG पारदर्शिता और वित्तीय प्रबंधन की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण योगदान करता है। चुनौतियों के बावजूद, CAG का कार्य सार्वजनिक वित्तीय अनुशासन और ईमानदारी बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
See lessवित्त आयोग के क्या कार्य हैं? राजकोषीय संघवाद में इसकी उभरती भूमिका की समीक्षा कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
वित्त आयोग के कार्य और राजकोषीय संघवाद में उभरती भूमिका की समीक्षा 1. वित्त आयोग के कार्य: राजस्व वितरण: वित्त आयोग का मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण तय करना है। यह आयोग संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित होता है और राजस्व के साझा अधिकार और वित्तीय संसाधनों की सिफारिश करता है।Read more
वित्त आयोग के कार्य और राजकोषीय संघवाद में उभरती भूमिका की समीक्षा
1. वित्त आयोग के कार्य:
वित्त आयोग का मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण तय करना है। यह आयोग संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित होता है और राजस्व के साझा अधिकार और वित्तीय संसाधनों की सिफारिश करता है।
आयोग केंद्र सरकार को राज्यों को वित्तीय सहायता और अनुदान की सिफारिश करता है, जिससे राज्यों को विकासात्मक परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधन मिल सकें।
वित्त आयोग राज्यों के वित्तीय प्रबंधन और सदुपयोग पर सिफारिशें करता है, जिससे राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित हो सके।
2. राजकोषीय संघवाद में उभरती भूमिका की समीक्षा:
हाल के वर्षों में, 2021-22 के वित्त आयोग ने राज्य वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए कई सिफारिशें की हैं, जिससे राज्यों को अधिक स्वतंत्रता और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
आयोग ने आय और व्यय के असंतुलन को कम करने के लिए फाइनेंसियल असिस्टेंस और अनुदान की सिफारिश की है। वित्त आयोग की 15वीं रिपोर्ट ने सर्वजनिक वितरण प्रणाली और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अतिरिक्त सहायता की सिफारिश की।
2024 में वित्त आयोग ने COVID-19 महामारी के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए विशेष वित्तीय सहायता की सिफारिश की, जिससे राज्यों को स्वास्थ्य और राहत कार्य के लिए अतिरिक्त संसाधन प्राप्त हो सके।
निष्कर्ष:
See lessवित्त आयोग के कार्य राजस्व वितरण, अनुदान, और वित्तीय अनुशासन को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण हैं। राजकोषीय संघवाद में इसका उभरता हुआ योगदान राज्यों की वित्तीय स्थिति को सुधारने और आर्थिक असंतुलन को कम करने में सहायक साबित हो रहा है।
एक संस्था के रूप में चुनाव आयोग द्वारा वर्तमान में किन किन समस्याओं का सामना किया जा रहा है? इसक समाधान का भी उल्लेख कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
एक संस्था के रूप में चुनाव आयोग द्वारा वर्तमान में समस्याएँ और समाधान 1. समस्याएँ: मतदाता की पहचान में समस्याएँ: हाल के वर्षों में, मतदाता सूची में गलतियाँ और डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ एक आम समस्या रही हैं। उदाहरण के तौर पर, 2023 में कई राज्यों में मतदाता सूची में त्रुटियाँ की शिकायतें आईं, जिससे सटीकRead more
एक संस्था के रूप में चुनाव आयोग द्वारा वर्तमान में समस्याएँ और समाधान
1. समस्याएँ:
हाल के वर्षों में, मतदाता सूची में गलतियाँ और डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ एक आम समस्या रही हैं। उदाहरण के तौर पर, 2023 में कई राज्यों में मतदाता सूची में त्रुटियाँ की शिकायतें आईं, जिससे सटीक मतदाता पहचान में समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
चुनावी अभियानों में नकली प्रचार, हेरफेर, और भ्रष्टाचार की समस्या बढ़ी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में, राजनीतिक दलों द्वारा ब्लैक मनी और विज्ञापन पर खर्च की रिपोर्टें आईं।
चुनावों के दौरान सुरक्षा और हिंसा की घटनाएँ भी बढ़ रही हैं। पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान, हिंसात्मक घटनाओं की कई रिपोर्टें सामने आईं।
2. समाधान:
चुनाव आयोग को डिजिटल डेटाबेस और नियमित अद्यतन के माध्यम से मतदाता सूची में सही जानकारी सुनिश्चित करनी चाहिए। ई-मतदाता पंजीकरण और विज्ञापन अभियान को बढ़ावा दिया जा सकता है।
सभी राजनीतिक दलों के लिए पारदर्शिता और फंडिंग की निगरानी को सख्त करने के लिए नए कानूनी प्रावधान लाने चाहिए। आयकर विभाग और चुनाव आयोग को संयुक्त रूप से काम करने की जरूरत है।
चुनावों के दौरान सुरक्षा बलों की तैनाती को मजबूत किया जाए और हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जाए। पूर्व-चुनाव सुरक्षा प्लान और फिर से प्रशिक्षण का आयोजन किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
See lessचुनाव आयोग को वर्तमान में मतदाता पहचान, चुनावी भ्रष्टाचार, और सुरक्षा से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के समाधान के लिए डिजिटल समाधान, चुनाव सुधार, और सुरक्षा उपाय पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
संघ और राज्यों के लेखाओं के सम्बन्ध में, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तियों का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिए कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या कि नहीं । (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) को संघ और राज्यों के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। CAG की मुख्य जिम्मेदारी सार्वजनिक धन के उपयोग की पारदर्शिता और अनुपालन को सुनिश्चित करना है। यह प्रश्न कि सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करनRead more
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) को संघ और राज्यों के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। CAG की मुख्य जिम्मेदारी सार्वजनिक धन के उपयोग की पारदर्शिता और अनुपालन को सुनिश्चित करना है। यह प्रश्न कि सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना CAG की अधिकारिता का अतिक्रमण हो सकता है या नहीं, इसे समझने के लिए हमें CAG के कर्तव्यों और अधिकारिता की सीमाओं को देखना होगा।
अधिकारिता और कर्तव्य:
लेखापरीक्षा की सीमा: CAG की भूमिका मुख्य रूप से संघ और राज्य सरकारों के लेखों की लेखापरीक्षा करने तक सीमित है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि सार्वजनिक धन सही तरीके से और कानून के अनुसार उपयोग किया गया है।
नीति कार्यान्वयन का लेखा परीक्षण: नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करते समय, CAG का ध्यान मुख्यतः यह देखना होता है कि निर्धारित बजट और संसाधनों का उपयोग उचित रूप से किया गया है या नहीं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय प्रबंधन और संसाधनों की अनुपालन में कोई चूक न हो।
अतिक्रमण की संभावनाएँ: यदि CAG की लेखापरीक्षा नीति के कार्यान्वयन के परिणामों या नीति के प्रभाव पर केंद्रित हो जाती है, तो यह उसके मूल कर्तव्यों के बाहर हो सकता है। CAG को नीति की गुणवत्ता या प्रभावशीलता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता, बल्कि उसे केवल वित्तीय प्रबंधन की जांच करनी चाहिए।
निष्कर्ष:
See lessCAG की जिम्मेदारी का मूल उद्देश्य वित्तीय पारदर्शिता और अनुपालन सुनिश्चित करना है। नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करते समय, अगर यह वित्तीय प्रबंधन और संसाधन उपयोग की जांच पर केंद्रित रहती है, तो यह उसकी अधिकारिता के भीतर रहेगा। परंतु, यदि यह नीति के प्रभाव या गुणवत्ता की समीक्षा में प्रवेश करती है, तो यह अधिकारिता का अतिक्रमण हो सकता है। उचित संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि CAG अपनी परिधि के भीतर रहकर प्रभावी लेखापरीक्षा कर सके।
भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिए भारत के चुनाव आयोग ने में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (250 words) [UPSC 2017]
भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में लोकतंत्र की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया। ये सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। सुझाए गए सुधार: वोटर आईडी को आधार से जोड़ना: वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ने का प्रस्ताव कियाRead more
भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में लोकतंत्र की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया। ये सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
सुझाए गए सुधार:
वोटर आईडी को आधार से जोड़ना: वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है ताकि डुप्लिकेट और फर्जी मतदाता प्रविष्टियों को समाप्त किया जा सके। यह एक साफ-सुथरी मतदाता सूची सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
ऑनलाइन नामांकन प्रक्रिया: उम्मीदवारों को ऑनलाइन नामांकन पत्र दाखिल करने की सुविधा देने का सुझाव दिया गया है। इससे प्रक्रिया पारदर्शी और सुगम बनेगी, और कागजी कार्रवाई कम होगी।
इलेक्ट्रॉनिक वोटर रोल सत्यापन: वोटर रोल का इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन करने का प्रस्ताव है जिससे सटीकता बढ़ेगी और गलतियों को कम किया जा सकेगा।
राजनीतिक विज्ञापन पर नियंत्रण: राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी और नियमन के लिए प्रस्तावित सुधार, जिससे मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सके और विज्ञापनों की नैतिकता सुनिश्चित की जा सके।
राजनीति में आपराधिककरण पर अंकुश: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिए कड़ी प्रकटीकरण नीतियों का प्रस्ताव है, जिसमें विस्तृत हलफनामे और आपराधिक रिकॉर्ड का प्रकाशन शामिल है।
चुनावी वित्त में सुधार: चुनावी वित्त की पारदर्शिता को सुधारने के लिए, राजनीतिक दान और खर्च के लिए सख्त रिपोर्टिंग आवश्यकताओं का सुझाव दिया गया है।
महत्व:
चुनावी अखंडता में सुधार: वोटर आईडी को आधार से जोड़ने और इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन से मतदाता सूची की सटीकता बढ़ेगी, जिससे धोखाधड़ी कम होगी।
पारदर्शिता में वृद्धि: ऑनलाइन नामांकन और विज्ञापनों पर नियंत्रण से चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी, जिससे मतदाता सूचित निर्णय ले सकेंगे।
जवाबदेही और ईमानदारी: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों और चुनावी वित्त की पारदर्शिता से राजनीति में जवाबदेही बढ़ेगी और भ्रष्टाचार कम होगा।
प्रशासनिक दक्षता: सुधारों से प्रशासनिक प्रक्रियाएं सरल और तेज होंगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में विलंब और त्रुटियाँ कम होंगी।
निष्कर्ष:
See lessचुनाव आयोग द्वारा सुझाए गए सुधार भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। ये सुधार चुनावों की पारदर्शिता, अखंडता, और जवाबदेही को बढ़ाएंगे, जो एक सफल और प्रभावी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं। इन सुधारों के लागू होने से चुनावी प्रणाली अधिक विश्वसनीय और सक्षम बनेगी।
क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एन० सी० एस० सी०) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में आरक्षण संवैधानिक दायित्व: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा करना और उनकी स्थिति में सुधार लाना है। हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षRead more
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में आरक्षण
संवैधानिक दायित्व: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा करना और उनकी स्थिति में सुधार लाना है। हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण के क्रियान्वयन के संबंध में NCSC की भूमिका और अधिकार सीमित हैं।
क्रियान्वयन का प्रवर्तन:
निष्कर्ष: NCSC धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रत्यक्ष प्रवर्तन नहीं कर सकता, लेकिन यह निगरानी और सिफारिशें कर सकता है। प्रवर्तन का वास्तविक कार्य अन्य कानूनी और नियामक संस्थानों के जिम्मे होता है।
See less"नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सी० ए० जी०) को एक अत्यावश्यक भूमिका निभानी होती है।" व्याख्या कीजिए कि यह किस प्रकार उसकी नियुक्ति की विधि और शर्तों और साथ ही साथ उन अधिकारों के विस्तार से परिलक्षित होती है, जिनका प्रयोग वह कर सकता है। (150 words) [UPSC 2018]
नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) की भूमिका और अधिकार भुमिका: नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) भारत में सार्वजनिक वित्त के लेखा-जोखा और ऑडिट के लिए एक अत्यावश्यक भूमिका निभाता है। इसका मुख्य कार्य सरकारी खातों का स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट करना है, ताकि सार्वजनिक धन का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जाRead more
नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) की भूमिका और अधिकार
भुमिका: नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) भारत में सार्वजनिक वित्त के लेखा-जोखा और ऑडिट के लिए एक अत्यावश्यक भूमिका निभाता है। इसका मुख्य कार्य सरकारी खातों का स्वतंत्र और निष्पक्ष ऑडिट करना है, ताकि सार्वजनिक धन का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
नियुक्ति की विधि और शर्तें:
अधिकारों का विस्तार:
निष्कर्ष: सीएजी की नियुक्ति की विधि, शर्तें, और अधिकार उसकी अत्यावश्यक भूमिका को बनाए रखने में मदद करते हैं, जो सार्वजनिक वित्त के उचित प्रबंधन और सरकारी पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।
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