निर्धनता आकलन के लिए गठित विभिन्न समितियों द्वारा उपयोग की गई पद्धति पर ध्यान केंद्रित करते हुए, व्याख्या कीजिए कि स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता का आकलन कैसे विकसित हुआ है। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
आधारिक-अवसंरचना में निवेश और समावेशी आर्थिक संवृद्धि आधारिक-अवसंरचना का महत्व: आधारिक-अवसंरचना में निवेश आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्पादन और वितरण क्षमताओं को बढ़ाता है, रोजगार सृजन करता है, और समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है। इसके अलावा, यह आर्थिक विकास के लिए एक मजबूतRead more
आधारिक-अवसंरचना में निवेश और समावेशी आर्थिक संवृद्धि
आधारिक-अवसंरचना का महत्व: आधारिक-अवसंरचना में निवेश आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्पादन और वितरण क्षमताओं को बढ़ाता है, रोजगार सृजन करता है, और समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है। इसके अलावा, यह आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
भारतीय अनुभव:
- परिवहन और लॉजिस्टिक्स: भारत ने प्रधानमंत्री सड़क सुरक्षा योजना के तहत सड़क और परिवहन अवसंरचना में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। गंगा साफ़ करने की योजना और उदय जैसी योजनाएँ भी महत्वपूर्ण हैं, जो आधारिक अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिए, नागरनिगमों की सड़क परियोजनाएँ और रिवर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स ने बुनियादी ढांचे में सुधार किया है, जिससे व्यापार और उद्योगों को लाभ हुआ है।
- ऊर्जा क्षेत्र में निवेश: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और सौर ऊर्जा परियोजनाएँ जैसे पहलों ने ऊर्जा आधारिक अवसंरचना को सशक्त किया है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत किए गए सौर ऊर्जा के बुनियादी ढांचे में निवेश से ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की उपलब्धता और सस्ती बिजली की आपूर्ति में सुधार हुआ है।
- डिजिटल अवसंरचना: डिजिटल इंडिया पहल ने ई-गवर्नेंस और इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार किया है, जिससे नागरिक सेवाओं की पहुँच आसान हुई है और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिला है।
चुनौतियाँ और सुझाव:
- वित्तीय सीमाएँ: आधारिक अवसंरचना में निवेश के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। PPP (Public-Private Partnership) मॉडल और ग्रहणशीलता प्रोत्साहन जैसे उपायों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- असमान विकास: देश के विभिन्न हिस्सों में आधारिक अवसंरचना के विकास में असमानता है। विशेष रूप से, पूर्वी भारत और गैर-शहरी क्षेत्रों में अवसंरचना की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है।
निष्कर्ष: भारत में आधारिक अवसंरचना में निवेश ने समावेशी आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित किया है, लेकिन असमान विकास और वित्तीय चुनौतियों को संबोधित करने के लिए सतत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। यह निवेश न केवल आर्थिक विकास को तेज करता है बल्कि सामाजिक समावेश और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है।
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स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न। **1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्Read more
स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न।
**1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्वतंत्रता के तुरंत बाद, पंडित नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति ने निर्धनता के आकलन के लिए आय और उपभोग के आंकड़ों को प्राथमिकता दी। इस समय, निर्धनता को मुख्यतः जीवनस्तर और बुनियादी सुविधाओं की कमी के आधार पर समझा गया।
**2. ** सार्वजनिक उपभोग समिति (1962): इस समिति ने उपभोग की वस्तुओं के आधार पर निर्धनता की पहचान की। इसमें बुनियादी वस्त्र, खाद्य पदार्थ और अन्य जरूरतों के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को भी शामिल किया गया।
**3. ** सिंह आयोग (1979): 1979 में स्थापित सिंह आयोग ने निर्धनता के आकलन के लिए नया दृष्टिकोण पेश किया। इस आयोग ने न्यूनतम जीवन स्तर (Minimum Needs) और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता को निर्धनता की पहचान का एक महत्वपूर्ण मानक माना।
**4. ** वर्गी पॉल आयोग (1980): इस आयोग ने निर्धनता की गणना के लिए एक नई विधि पेश की, जिसमें आय की सीमा और उपभोग खर्च को शामिल किया गया।
**5. ** नरेंद्र जडेजा समिति (1993): इस समिति ने गरीबी रेखा (Poverty Line) को निर्धारित करने के लिए एक मानक विधि विकसित की, जिसमें उपभोग के आंकड़े और औसत आय शामिल थे।
समाज और अर्थशास्त्र में बदलाव के साथ, निर्धनता के आकलन की विधियों में सुधार हुआ है। आजकल, यह दृष्टिकोण अधिक व्यापक है, जिसमें बहुआयामी निर्धनता सूचकांक, जीवन स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा को शामिल किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निर्धनता का आकलन केवल आर्थिक पहलुओं पर निर्भर न हो बल्कि सामाजिक और जीवन गुणवत्ता के मानदंडों को भी ध्यान में रखा जाए।
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