निर्धनता आकलन के लिए गठित विभिन्न समितियों द्वारा उपयोग की गई पद्धति पर ध्यान केंद्रित करते हुए, व्याख्या कीजिए कि स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता का आकलन कैसे विकसित हुआ है। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय गिग इकोनॉमी की तीव्र वृद्धि के साथ, गिग कर्मियों को संबोधित करने के लिए कई मुद्दे उभर रहे हैं। पहला मुद्दा है सुरक्षा और सुरक्षितता का अभाव। गिग कर्मियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए समाज और सरकार को मिलकर काम करना होगा। दूसरा मुद्दा है भविष्य की योजना और लाभ। गिग कर्मियों के लिए योजनाएRead more
भारतीय गिग इकोनॉमी की तीव्र वृद्धि के साथ, गिग कर्मियों को संबोधित करने के लिए कई मुद्दे उभर रहे हैं। पहला मुद्दा है सुरक्षा और सुरक्षितता का अभाव। गिग कर्मियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए समाज और सरकार को मिलकर काम करना होगा। दूसरा मुद्दा है भविष्य की योजना और लाभ। गिग कर्मियों के लिए योजनाएं और वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए नीतियों को अपडेट करना आवश्यक है। इसके अलावा, गिग कर्मियों की अधिक समान स्थिति और वित्तीय स्वतंत्रता के लिए नीतियों की आवश्यकता है। साथ ही, उन्हें क्षमता विकास और प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। इस प्रकार की नीतियों के माध्यम से, भारतीय गिग इकोनॉमी को सुदृढ़ और समृद्ध बनाने में सहायता मिल सकती है।
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स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न। **1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्Read more
स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न।
**1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्वतंत्रता के तुरंत बाद, पंडित नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति ने निर्धनता के आकलन के लिए आय और उपभोग के आंकड़ों को प्राथमिकता दी। इस समय, निर्धनता को मुख्यतः जीवनस्तर और बुनियादी सुविधाओं की कमी के आधार पर समझा गया।
**2. ** सार्वजनिक उपभोग समिति (1962): इस समिति ने उपभोग की वस्तुओं के आधार पर निर्धनता की पहचान की। इसमें बुनियादी वस्त्र, खाद्य पदार्थ और अन्य जरूरतों के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को भी शामिल किया गया।
**3. ** सिंह आयोग (1979): 1979 में स्थापित सिंह आयोग ने निर्धनता के आकलन के लिए नया दृष्टिकोण पेश किया। इस आयोग ने न्यूनतम जीवन स्तर (Minimum Needs) और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता को निर्धनता की पहचान का एक महत्वपूर्ण मानक माना।
**4. ** वर्गी पॉल आयोग (1980): इस आयोग ने निर्धनता की गणना के लिए एक नई विधि पेश की, जिसमें आय की सीमा और उपभोग खर्च को शामिल किया गया।
**5. ** नरेंद्र जडेजा समिति (1993): इस समिति ने गरीबी रेखा (Poverty Line) को निर्धारित करने के लिए एक मानक विधि विकसित की, जिसमें उपभोग के आंकड़े और औसत आय शामिल थे।
समाज और अर्थशास्त्र में बदलाव के साथ, निर्धनता के आकलन की विधियों में सुधार हुआ है। आजकल, यह दृष्टिकोण अधिक व्यापक है, जिसमें बहुआयामी निर्धनता सूचकांक, जीवन स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा को शामिल किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निर्धनता का आकलन केवल आर्थिक पहलुओं पर निर्भर न हो बल्कि सामाजिक और जीवन गुणवत्ता के मानदंडों को भी ध्यान में रखा जाए।
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