निर्धनता आकलन के लिए गठित विभिन्न समितियों द्वारा उपयोग की गई पद्धति पर ध्यान केंद्रित करते हुए, व्याख्या कीजिए कि स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता का आकलन कैसे विकसित हुआ है। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना भारतीय सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती है। यह योजना विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। यह उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने के लिए उत्कृष्Read more
उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना भारतीय सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती है। यह योजना विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। यह उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने के लिए उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए उन्नत तकनीकी और उत्पादकता को प्रोत्साहित करने के लिए माध्यम से विभिन्न उद्यमों को प्रेरित करती है।
इसके साथ ही, इस योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने में कई चुनौतियाँ हैं। उनमें तकनीकी नवाचार, विपणन, और आपरेशनल क्षमता में सुधार करने की जरुरत है। साथ ही, विदेशी प्रतिस्पर्धा और वित्तीय संगठन भी चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती हैं। इन चुनौतियों का सामना करते हुए, सरकार को नीतियों में सुधार करने और उत्पादकता में सुधार करने के लिए सक्रिय रूप से काम करने की जरुरत है।
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स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न। **1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्Read more
स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न।
**1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्वतंत्रता के तुरंत बाद, पंडित नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति ने निर्धनता के आकलन के लिए आय और उपभोग के आंकड़ों को प्राथमिकता दी। इस समय, निर्धनता को मुख्यतः जीवनस्तर और बुनियादी सुविधाओं की कमी के आधार पर समझा गया।
**2. ** सार्वजनिक उपभोग समिति (1962): इस समिति ने उपभोग की वस्तुओं के आधार पर निर्धनता की पहचान की। इसमें बुनियादी वस्त्र, खाद्य पदार्थ और अन्य जरूरतों के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को भी शामिल किया गया।
**3. ** सिंह आयोग (1979): 1979 में स्थापित सिंह आयोग ने निर्धनता के आकलन के लिए नया दृष्टिकोण पेश किया। इस आयोग ने न्यूनतम जीवन स्तर (Minimum Needs) और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता को निर्धनता की पहचान का एक महत्वपूर्ण मानक माना।
**4. ** वर्गी पॉल आयोग (1980): इस आयोग ने निर्धनता की गणना के लिए एक नई विधि पेश की, जिसमें आय की सीमा और उपभोग खर्च को शामिल किया गया।
**5. ** नरेंद्र जडेजा समिति (1993): इस समिति ने गरीबी रेखा (Poverty Line) को निर्धारित करने के लिए एक मानक विधि विकसित की, जिसमें उपभोग के आंकड़े और औसत आय शामिल थे।
समाज और अर्थशास्त्र में बदलाव के साथ, निर्धनता के आकलन की विधियों में सुधार हुआ है। आजकल, यह दृष्टिकोण अधिक व्यापक है, जिसमें बहुआयामी निर्धनता सूचकांक, जीवन स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा को शामिल किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निर्धनता का आकलन केवल आर्थिक पहलुओं पर निर्भर न हो बल्कि सामाजिक और जीवन गुणवत्ता के मानदंडों को भी ध्यान में रखा जाए।
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