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बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिए सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
मानव बस्तियों का पुनर्वास: विवाद और समाधान परिचय बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के दौरान मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात होता है, जो अक्सर विवाद का कारण बनता है। इस संघात को कम करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता होती है। उपाय सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन: परियोजना से पूर्व व्यापRead more
मानव बस्तियों का पुनर्वास: विवाद और समाधान
परिचय बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के दौरान मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात होता है, जो अक्सर विवाद का कारण बनता है। इस संघात को कम करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता होती है।
उपाय
निष्कर्ष मानव बस्तियों के पुनर्वास के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को कम करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें गहन मूल्यांकन, समुदाय की भागीदारी, और प्रभावी पुनर्वास योजनाएं शामिल हैं।
See less"समावेशी संवृद्धि अब विकासात्मक रणनीति का केन्द्रबिन्दु बन गयी है।" भारत के सन्दर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिए इस संवृद्धि की प्राप्ति हेतु उपचारात्मक सुझाव भी दीजिए (200 Words) [UPPSC 2022]
समावेशी संवृद्धि का विकासात्मक रणनीति में केंद्रबिंदु 1. समावेशी संवृद्धि की परिभाषा: समावेशी संवृद्धि का तात्पर्य विकास की ऐसी प्रक्रिया से है, जो सभी वर्गों, विशेषकर अल्पसंख्यक और गरीब वर्गों, को लाभ पहुँचाती है। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसरRead more
समावेशी संवृद्धि का विकासात्मक रणनीति में केंद्रबिंदु
1. समावेशी संवृद्धि की परिभाषा: समावेशी संवृद्धि का तात्पर्य विकास की ऐसी प्रक्रिया से है, जो सभी वर्गों, विशेषकर अल्पसंख्यक और गरीब वर्गों, को लाभ पहुँचाती है। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करना है।
2. भारत के संदर्भ में समावेशी संवृद्धि: भारत ने समावेशी संवृद्धि को अपनी विकासात्मक रणनीति का केंद्रीय तत्व माना है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसे कार्यक्रमों ने गरीब और हाशिए पर स्थित लोगों के लिए आर्थिक सहायता और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया है। उज्ज्वला योजना ने गरीब परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किया, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार हुआ।
3. उपचारात्मक सुझाव:
1. शिक्षा और कौशल विकास: समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) को लागू किया जाना चाहिए। इसके तहत, कौशल विकास कार्यक्रमों को व्यापक रूप से फैलाया जाना चाहिए, ताकि युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सकें।
2. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सभी वर्गों तक बढ़ाने के लिए आयुष्मान भारत योजना को और प्रभावी बनाया जाना चाहिए, ताकि गरीब परिवारों को उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवाएँ मिल सकें।
3. आर्थिक अवसरों का विस्तार: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs) को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता और अनुकूल नीतियाँ लागू की जानी चाहिए। इससे स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
4. सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क: सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को विस्तारित किया जाना चाहिए, जैसे महमारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए खाद्य सुरक्षा और रोजगार सुरक्षा योजनाएँ।
निष्कर्ष: समावेशी संवृद्धि भारत की विकासात्मक रणनीति का केंद्रीय तत्व है, जो सभी वर्गों के लिए समान अवसर प्रदान करने पर जोर देता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसर, और सामाजिक सुरक्षा में सुधार के माध्यम से इस लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
See less"सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम भारत में आर्थिक संवृद्धि तथा रोजगार संवर्धन के वाहक है" इस कथन का परीक्षण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम (MSMEs) भारत में आर्थिक संवृद्धि तथा रोजगार संवर्धन के वाहक परिचय: सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम (MSMEs) भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये न केवल आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देते हैं, बल्कि रोजगार के अवसर भी बड़े पैमाने पर उत्पन्न करते हैं। भारत मेRead more
सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम (MSMEs) भारत में आर्थिक संवृद्धि तथा रोजगार संवर्धन के वाहक
परिचय: सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रम (MSMEs) भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये न केवल आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देते हैं, बल्कि रोजगार के अवसर भी बड़े पैमाने पर उत्पन्न करते हैं। भारत में 63 मिलियन से अधिक MSMEs हैं, जो देश की GDP में लगभग 30% और कुल विनिर्माण उत्पादन में 45% का योगदान करते हैं।
आर्थिक संवृद्धि:
रोजगार संवर्धन:
हाल का उदाहरण: COVID-19 महामारी के दौरान MSMEs को गंभीर व्यवधानों का सामना करना पड़ा। भारतीय सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) शुरू की, जिसके तहत MSMEs को ₹3 लाख करोड़ से अधिक के बिना गारंटी ऋण दिए गए, जिससे MSMEs को आर्थिक संवृद्धि और रोजगार सृजन में योगदान जारी रखने में मदद मिली।
चुनौतियाँ: हालांकि MSMEs की महत्वपूर्ण भूमिका है, इन्हें वित्त तक सीमित पहुंच, प्रौद्योगिकी में पिछड़ापन, और अवसंरचना की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन मुद्दों का समाधान करना उनके पूर्ण क्षमता का लाभ उठाने के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष: MSMEs निस्संदेह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो आर्थिक संवृद्धि और रोजगार संवर्धन को गति देते हैं। सही समर्थन और सुधारों के साथ, वे भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने में और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
See lessसमावेशी विकास' से आप क्या समझते है? भारत में असमानताओं एवं गरीबी को कम करने में समावेशी विकास किस प्रकार सहायक है? समझाइए। (125 Words) [UPPSC 2019]
समावेशी विकास: परिभाषा और प्रभाव **1. समावेशी विकास की परिभाषा: सभी वर्गों के लिए समान अवसर: समावेशी विकास का तात्पर्य आर्थिक प्रगति से है जो समाज के सभी हिस्सों को लाभ पहुंचाती है, जिससे गरीबी और असमानताओं को कम किया जा सके। **2. गरीबी में कमी: स्वरोजगार के अवसर: प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) जैRead more
समावेशी विकास: परिभाषा और प्रभाव
**1. समावेशी विकास की परिभाषा:
**2. गरीबी में कमी:
**3. असमानताओं में कमी:
**4. हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: समावेशी विकास आर्थिक लाभों को समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाने में सहायक है, जो गरीबी और असमानताओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessव्यापार, रोजगार, विशेषकर महिला रोजगार, आय और संपत्ति वितरण की समानता आदि पर वैश्वीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
वैश्वीकरण के व्यापार, रोजगार और आय-संपत्ति वितरण पर प्रभाव 1. व्यापार वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बाजार की पहुंच और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है। मुक्त व्यापार समझौतों और वाणिज्यिक उदारीकरण के माध्यम से वैश्विक बाजारों तक पहुंच आसान हुई है। उदाहरण के लिए, क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (RCRead more
वैश्वीकरण के व्यापार, रोजगार और आय-संपत्ति वितरण पर प्रभाव
1. व्यापार
वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बाजार की पहुंच और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है। मुक्त व्यापार समझौतों और वाणिज्यिक उदारीकरण के माध्यम से वैश्विक बाजारों तक पहुंच आसान हुई है। उदाहरण के लिए, क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (RCEP) ने सदस्य देशों के बीच व्यापार प्रवाह को बढ़ावा दिया है। हालांकि, यह घरेलू उद्योगों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है, विशेषकर उन उद्योगों पर जो प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर सकते।
2. रोजगार
वैश्वीकरण ने नई नौकरियों और उद्योगों को जन्म दिया है। भारत में, आईटी और सेवा क्षेत्र ने वैश्विक आउटसोर्सिंग के कारण महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है। फिर भी, यह नौकरी विस्थापन का कारण भी बन सकता है, विशेषकर पारंपरिक क्षेत्रों जैसे कृषि और विनिर्माण में, जहां प्रतिस्पर्धा और प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण नौकरियों की संख्या कम हो रही है।
3. महिला रोजगार
वैश्वीकरण ने महिलाओं के रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं, जैसे वस्त्र और परिधान उद्योग में महिलाओं की उच्च भागीदारी। लेकिन इसके साथ ही वेतन अंतर और नौकरी की असुरक्षा जैसी समस्याएं भी सामने आई हैं, जहां महिलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है।
4. आय और संपत्ति वितरण की समानता
वैश्वीकरण ने आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है, लेकिन इससे आय और संपत्ति का अंतर भी बढ़ा है। विकासशील देशों में, जबकि आर्थिक प्रगति हुई है, लाभ अक्सर असमान रूप से वितरित होते हैं, जिससे आय विषमता बढ़ी है। उदाहरण के लिए, भारत में, शीर्ष 1% की संपत्ति में बड़ी वृद्धि देखी गई है, जबकि निम्न-आय समूहों की औसत आय में वृद्धि सीमित रही है।
सारांश में, वैश्वीकरण ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया है और नए अवसर प्रदान किए हैं, लेकिन इससे आय असमानता बढ़ी है और विशेषकर महिलाओं के रोजगार में चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
See lessभारत में गरीबी और असमानता को कम करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? (200 Words) [UPPSC 2020]
भारत में गरीबी और असमानता को कम करने में प्रमुख चुनौतियाँ आर्थिक असमानता: संबंध: भारत में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक अंतर बढ़ रहा है, जिससे गरीबी और असमानता में वृद्धि हो रही है। 2023 के आर्थिक सर्वेक्षण में यह दर्शाया गया कि शीर्ष 10% लोग राष्ट्रीय आय का बड़ा हिस्सा कमा रहे हैं, जबकि निचले 50% का हRead more
भारत में गरीबी और असमानता को कम करने में प्रमुख चुनौतियाँ
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए समन्वित प्रयासों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक योजनाओं, और सामाजिक न्याय के सुधार की आवश्यकता है।
See lessहाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए । (200 words) [UPSC 2015]
हाँ, यह विचार कि भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति "नौकरीहीन संवृद्धि" के रूप में देखी जा रही है, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस विचार से सहमत होने के कुछ प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं: नौकरी की कमी: भारत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद, नई नौकरियों का सृजन पर्याप्त नहीं हो रहा है। रोजगार वृद्धि की दर अक्सरRead more
हाँ, यह विचार कि भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति “नौकरीहीन संवृद्धि” के रूप में देखी जा रही है, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस विचार से सहमत होने के कुछ प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं:
इन तर्कों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि भारत की आर्थिक वृद्धि की प्रकृति में “नौकरीहीन संवृद्धि” का तत्व मौजूद है, और इस चुनौती को हल करने के लिए समेकित नीतियों और पहल की आवश्यकता है।
See lessपूँजीवाद ने विश्व अर्थव्यवस्था का अभूतपूर्व समृद्धि तक दिशा-निर्देशन किया है। परन्तु फिर भी, वह अक्रसर अदूरदर्शिता को प्रोत्साहित करता है तथा धनवानों और निर्धनों के बीच विस्तृत असमताओं को बढ़ावा देता है। इसके प्रकाश में, भारत में समावेशी संवृद्धि को लाने के लिए क्या पूँजीवाद में विश्वास करना और उसको अपना लेना सही होगा? चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: पूँजीवाद, जो कि निजी स्वामित्व और मुक्त बाजारों पर आधारित है, ने निस्संदेह विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि तक पहुँचाया है। परन्तु, इसके साथ ही यह अल्पकालिक लाभ और आय असमानताओं को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है। पूँजीवाद के लाभ: आर्थिक वृद्धि: पूँजीवाद नवाचार और प्रतिस्पर्धा को प्रRead more
परिचय: पूँजीवाद, जो कि निजी स्वामित्व और मुक्त बाजारों पर आधारित है, ने निस्संदेह विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि तक पहुँचाया है। परन्तु, इसके साथ ही यह अल्पकालिक लाभ और आय असमानताओं को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।
पूँजीवाद के लाभ:
पूँजीवाद की आलोचना:
भारत में समावेशी संवृद्धि और पूँजीवाद:
निष्कर्ष: हालाँकि पूँजीवाद आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है, परन्तु भारत में समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने के लिए यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है। संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए पूँजीवाद की शक्तियों के साथ राज्य हस्तक्षेप और सामाजिक नीतियों को मिलाना आवश्यक है ताकि न्यायसंगत और स्थायी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
See less'समावेशी संवृद्धि' के प्रमुख अभिलक्षण क्या हैं ? क्या भारत इस प्रकार के संवृद्धि प्रक्रम का अनुभव करता रहा है ? विश्लेषण कीजिए एवं समावेशी संवृद्धि हेतु उपाय सुझाइये । (250 words) [UPSC 2017]
समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण और भारत का अनुभव **1. समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण: **1. संसाधनों का समान वितरण: आय और संपत्ति में समानता: समावेशी संवृद्धि का उद्देश्य आय और संपत्ति के असमान वितरण को कम करना है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसरों को सभी वर्गों के बीच समान रूप से बाRead more
समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण और भारत का अनुभव
**1. समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण:
**1. संसाधनों का समान वितरण:
**2. स्थायी विकास:
**3. परिवादित समूहों का सशक्तिकरण:
**4. विस्तृत आर्थिक भागीदारी:
**2. भारत का अनुभव:
**1. प्रगति और उपलब्धियाँ:
**2. चुनौतियाँ:
**3. समावेशी संवृद्धि के लिए उपाय:
**1. गुणवत्ता शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार:
**2. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सुदृढ़ करना:
**3. क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहन देना:
**4. उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देना:
निष्कर्ष:
भारतीय सन्दर्भ में समावेशी विकास में निहित चुनौतियों, जिनमें लापरवाह और बेकार जनशक्ति शामिल है, पर टिप्पणी कीजिए। इन चुनौतियों का सामना करने के उपाय सुझाइए। (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास की चुनौतियाँ 1. लापरवाह और बेकार जनशक्ति: भारत में समावेशी विकास के रास्ते में लापरवाह और बेकार जनशक्ति एक प्रमुख चुनौती है। यह स्थिति अशिक्षा, आवश्यक कौशलों की कमी, और प्रशासनिक विफलता के कारण उत्पन्न होती है। अनौपचारिक क्षेत्र में कामकाजी व्यक्तियों की आय असमानता औरRead more
भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास की चुनौतियाँ
1. लापरवाह और बेकार जनशक्ति: भारत में समावेशी विकास के रास्ते में लापरवाह और बेकार जनशक्ति एक प्रमुख चुनौती है। यह स्थिति अशिक्षा, आवश्यक कौशलों की कमी, और प्रशासनिक विफलता के कारण उत्पन्न होती है। अनौपचारिक क्षेत्र में कामकाजी व्यक्तियों की आय असमानता और कामकाजी सुरक्षा की कमी से भी यह समस्या गंभीर हो जाती है। उदाहरण के लिए, युवा बेरोजगारी की समस्या और कौशल के अद्यतन की कमी जैसी समस्याएँ इसके मुख्य कारण हैं।
2. उपाय:
a. शिक्षा और कौशल विकास: लापरवाह जनशक्ति को शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से सुधारना आवश्यक है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और साक्षरता मिशन जैसी योजनाएँ युवाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं और उनके रोजगार की संभावनाओं को बढ़ा रही हैं।
b. बेहतर नियोजन और प्रशासन: अच्छे प्रशासनिक ढांचे के माध्यम से कार्यक्रमों और योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मंगलसूत्र योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में सुधार लाने का प्रयास किया है।
c. औपचारिक क्षेत्र में रोजगार: औपचारिक क्षेत्र में अधिक रोजगार सृजन की आवश्यकता है, जिससे कि मजदूरी असमानता और बेहतर कार्य वातावरण को सुनिश्चित किया जा सके। मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों ने औपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने का प्रयास किया है।
d. सरकारी योजनाओं की निगरानी: सरकारी योजनाओं और योजनाओं की निगरानी को सुदृढ़ करना होगा ताकि उनके लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित हो सके। समावेशी विकास रिपोर्ट्स और जनगणना डेटा का विश्लेषण इस प्रक्रिया में सहायक हो सकता है।
निष्कर्ष: समावेशी विकास में लापरवाह और बेकार जनशक्ति की चुनौतियों का सामना शिक्षा, कौशल विकास, अच्छे प्रशासन, औपचारिक रोजगार और सही निगरानी के माध्यम से किया जा सकता है। इन उपायों से भारत में समावेशी विकास की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।
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