रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (250 words) [UPSC 2020]
धान-गेहूँ प्रणाली की सफलता के प्रमुख कारक धान-गेहूँ प्रणाली भारत की कृषि में अत्यधिक सफल रही है, विशेष रूप से हरित क्रांति के बाद। इसके प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं: उन्नत बीज और उर्वरक: हरित क्रांति के दौरान उन्नत किस्म के बीजों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग ने धान-गेहूँ उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धRead more
धान-गेहूँ प्रणाली की सफलता के प्रमुख कारक
धान-गेहूँ प्रणाली भारत की कृषि में अत्यधिक सफल रही है, विशेष रूप से हरित क्रांति के बाद। इसके प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
- उन्नत बीज और उर्वरक: हरित क्रांति के दौरान उन्नत किस्म के बीजों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग ने धान-गेहूँ उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि की। उदाहरण के लिए, एच.वी.एस. स्वामीनाथन द्वारा विकसित हाई-यील्डिंग वैरायटीज़ (HYVs) ने किसानों को अधिक पैदावार का अवसर दिया।
- सिंचाई सुविधाओं में सुधार: पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाओं ने साल भर धान और गेहूँ की खेती को संभव बनाया।
- सरकारी समर्थन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और कृषि ऋण जैसी नीतियों ने किसानों को धान-गेहूँ की खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके परिणामस्वरूप, भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सका।
धान-गेहूँ प्रणाली: एक अभिशाप कैसे बनी?
इस प्रणाली की सफलता के बावजूद, इसके दीर्घकालिक प्रभाव नकारात्मक रहे हैं:
- मृदा की गुणवत्ता में गिरावट: लगातार धान और गेहूँ की खेती ने मृदा की उर्वरता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अत्यधिक उर्वरक और पानी के उपयोग से मिट्टी की संरचना में परिवर्तन और मृदा स्वास्थ्य में गिरावट आई है।
- जल संकट: धान की फसल के लिए भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, जिससे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में जल स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है। नाबार्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के कुछ हिस्सों में जल स्तर प्रति वर्ष 1 मीटर तक गिर रहा है।
- जैव विविधता में कमी: धान-गेहूँ प्रणाली के एकमात्र प्रचलन ने अन्य फसलों के स्थान पर इसे बढ़ावा दिया, जिससे कृषि जैव विविधता में गिरावट आई है।
- पर्यावरणीय क्षति: धान की फसल कटाई के बाद पराली जलाने की समस्या से वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है, खासकर दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के बावजूद, पराली जलाने से प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
निष्कर्ष: धान-गेहूँ प्रणाली ने भारत की खाद्यान्न सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों ने पर्यावरण, मृदा स्वास्थ्य और जल संसाधनों पर गंभीर दबाव डाला है। अब आवश्यकता है कि इस प्रणाली को टिकाऊ बनाने के लिए वैकल्पिक फसल प्रणाली, जल-संरक्षण तकनीकों, और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए।
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जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय **1. जल भंडारण में सुधार a. वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ, जैसे की जल संचयन टैंक और गड्ढे, जल की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश ने “जल शक्ति अभियान” के अंतर्गत घर-घर वर्षा जल संचयन के प्रयास किए हैं, जिससे भूजल स्तर में सुधRead more
जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय
**1. जल भंडारण में सुधार
a. वर्षा जल संचयन:
वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ, जैसे की जल संचयन टैंक और गड्ढे, जल की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश ने “जल शक्ति अभियान” के अंतर्गत घर-घर वर्षा जल संचयन के प्रयास किए हैं, जिससे भूजल स्तर में सुधार हुआ है।
b. चेक डेम और परकोलेशन पिट्स:
छोटे चेक डेम और परकोलेशन पिट्स जल के संचयन और भूजल पुनर्भरण में सहायक होते हैं। राजस्थान में, “सुजलाम सुफलाम योजना” के अंतर्गत ऐसे ढाँचों का निर्माण किया गया है, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जलस्तर में वृद्धि हुई है।
c. पारंपरिक जल स्रोतों की पुनरावृत्ति:
प्राचीन जल स्रोतों जैसे तालाबों और झीलों का पुनरुद्धार जल की उपलब्धता को बढ़ा सकता है। मध्य प्रदेश में, भोपल की झीलों का पुनरुद्धार किया गया है, जिससे क्षेत्रीय जल संसाधनों में सुधार हुआ है।
**2. सिंचाई प्रणालियों में सुधार
a. ड्रिप सिंचाई:
ड्रिप सिंचाई प्रणाली सीधे पौधों की जड़ों को पानी प्रदान करती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है। महाराष्ट्र में प्याज की खेती में ड्रिप सिंचाई के उपयोग से पानी की खपत में कमी आई है और उपज में वृद्धि हुई है।
b. स्प्रिंकलर सिस्टम:
स्प्रिंकलर प्रणाली विशेष रूप से असमान भूभाग वाले क्षेत्रों में पानी की प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करती है। कर्नाटका में, गन्ने की फसलों के लिए स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग किया गया है, जिससे पानी की उपयोगिता में सुधार हुआ है।
c. मिट्टी की नमी प्रबंधन:
मिट्टी की नमी सेंसरों का उपयोग करके सिंचाई अनुसूचियों का प्रबंधन सटीक पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करता है। पंजाब में, इन सेंसरों के उपयोग से सिंचाई में सुधार और फसल की उत्पादकता में वृद्धि देखी गई है।
**3. नीति और प्रशासनिक उपाय
a. जल-संरक्षण तकनीकों के लिए प्रोत्साहन:
जल-संरक्षण तकनीकों को अपनाने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान करना महत्वपूर्ण है। “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)” के तहत ऐसे तकनीकी सुधारों को समर्थन दिया जाता है।
b. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM):
IWRM दृष्टिकोण जल संसाधनों के प्रबंधन में समग्र दृष्टिकोण अपनाता है। राष्ट्रीय जल नीति, 2012, इस एकीकृत दृष्टिकोण पर जोर देती है, जिससे जल उपयोग और प्रबंधन में सुधार होता है।
निष्कर्ष:
See lessजल भंडारण और सिंचाई प्रणालियों में सुधार के लिए आधुनिक तकनीकों और पारंपरिक विधियों का सम्मिलित उपयोग, साथ ही समर्थक नीतियों की आवश्यकता है, ताकि जल उपयोग की दक्षता और स्थिरता में सुधार हो सके।