जल-उपयोग दक्षता से आप क्या समझते हैं? जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका का वर्णन कीजिए। What is water-use efficiency? (200 words) [UPSC 2016]
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव **1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव: **1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव: सहायिकाओं की प्राथमिकता: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के कारण कुछ फसलों जैसे धान और गेहूँ को प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, धान के लिए सब्सिडीRead more
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
**1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव:
**1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव:
- सहायिकाओं की प्राथमिकता: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के कारण कुछ फसलों जैसे धान और गेहूँ को प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, धान के लिए सब्सिडी ने पंजाब और हरियाणा में धान की खेती को प्रोत्साहित किया, जिससे अन्य फसलों की खेती कम हो गई।
**2. संसाधन विषमताएँ:
- असामान्य संसाधन उपयोग: जब सहायता केवल कुछ फसलों पर केंद्रित होती है, तो अन्य फसलों की संसाधनों की उपलब्धता प्रभावित होती है। जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग धान की खेती के लिए किया जाता है, जिससे जलवायु संकट पैदा हो रहा है।
**3. आर्थिक प्रभाव:
- आय में अस्थिरता: सब्सिडी केवल चुनिंदा फसलों को प्रोत्साहित करती है, जिससे अन्य फसलों की उपज और किसानों की आय में अस्थिरता आ सकती है। चीनी उद्योग पर सब्सिडी ने कुछ क्षेत्रों में आर्थिक असंतुलन पैदा किया है।
**2. सस्य विविधता पर प्रभाव:
**1. सस्य विविधता में कमी:
- सिर्फ सब्सिडी प्राप्त फसलें: सब्सिडी के कारण फसल विविधता कम हो जाती है। धान और गेहूँ पर अत्यधिक ध्यान देने से दलहनों और तिलहनों की खेती में कमी आई है।
**2. पर्यावरणीय समस्याएँ:
- मृदा और जलवायु पर असर: एक ही फसल की अत्यधिक खेती से मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती है और पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। पंजाब में जलस्तर में गिरावट इसका उदाहरण है।
**3. आर्थिक अस्थिरता:
- जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: कम फसल विविधता से किसानों को जलवायु परिवर्तन और कीटों के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती है। पारंपरिक फसलों की असफलता के कारण किसानों की आय में गिरावट आई है।
**3. लघु और सीमांत कृषकों के लिए महत्त्वपूर्ण तत्व:
**1. फसल बीमा:
- जोखिम प्रबंधन: फसल बीमा प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के कारण होने वाली फसलों की क्षति से किसानों को सुरक्षा प्रदान करता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) ने हाल ही में बाढ़ और सूखे से प्रभावित किसानों को आर्थिक राहत दी है।
**2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):
- आय स्थिरता: MSP सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी फसल के लिए एक न्यूनतम मूल्य मिले, जिससे वे बाजार की अस्थिरता से बच सकें। पल्स और तिलहन पर MSP में वृद्धि ने इन फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया है और किसानों की आय को स्थिर किया है।
**3. खाद्य प्रसंस्करण:
- मूल्य संवर्धन और बाजार पहुंच: खाद्य प्रसंस्करण से कच्चे उत्पादों को मूल्यवर्धन मिलती है और किसानों को बाजार में बेहतर पहुंच मिलती है। प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (PMKSY) ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना को बढ़ावा दिया है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य और बाजार मिल रहा है।
हालिया उदाहरण:
- गुजरात खाद्य प्रसंस्करण मॉडल: गुजरात में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से किसानों को उनकी फसलों का बेहतर मूल्य मिला है और बाजार पहुंच में सुधार हुआ है।
निष्कर्ष:
- सरकारी सहायता फसल उत्पादन और विविधता को प्रभावित करती है, विशेष रूप से जब ये सहायता सीमित फसलों पर केंद्रित होती है। फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उपाय लघु और सीमांत किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता, जोखिम प्रबंधन और बेहतर बाजार पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन उपायों को सशक्त कर और उन्हें व्यापक रूप से लागू करके किसानों की आर्थिक स्थिति और कृषि प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है।
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका 1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। 2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिकRead more
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका
1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका:
a. सूक्ष्म सिंचाई की परिभाषा: सूक्ष्म सिंचाई (Micro-Irrigation) में ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, जो सटीक रूप से पौधों की जड़ों के पास पानी प्रदान करती हैं। यह जल की बर्बादी को कम करता है और जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाता है।
b. भूमिका:
i. जल की बचत: सूक्ष्म सिंचाई जल की मात्रा को नियंत्रित करती है और फव्वारे की तुलना में 30-50% अधिक जल की बचत कर सकती है। उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई ने पंजाब और हरियाणा में धान और गेंहू की फसलों में जल की बर्बादी को कम किया है।
ii. फसल की वृद्धि: यह प्रणाली फसल की वृद्धि और उत्पादकता में सुधार करती है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से प्याज और मिर्च की फसलों में उत्पादकता में 30% तक की वृद्धि देखी गई है।
iii. भूमि की सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई भूमि की समान सिंचाई सुनिश्चित करती है और खेतों में जल की असमानता को समाप्त करती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है।
c. पर्यावरणीय लाभ: यह प्रणाली भूस्खलन और मिट्टी की कटाई को कम करती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गुजरात में सूक्ष्म सिंचाई ने मृदा की उपजाऊता को बनाए रखने में मदद की है।
निष्कर्ष: सूक्ष्म सिंचाई जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी है, क्योंकि यह जल की बर्बादी को कम करती है, फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करती है, और पर्यावरण की रक्षा करती है। यह सतत कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
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