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प्राकृतिक आपदाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
प्राकृतिक आपदाएँ: संक्षिप्त वर्णन 1. परिभाषा और प्रकार प्राकृतिक आपदाएँ वे अचानक और चरम घटनाएँ हैं जो पर्यावरणीय कारकों के कारण होती हैं और जिनसे जीवन, संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों को गंभीर नुकसान होता है। इन आपदाओं को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: मौसमी आपदाएँ: ये मौसमीय स्थितियोंRead more
प्राकृतिक आपदाएँ: संक्षिप्त वर्णन
1. परिभाषा और प्रकार
प्राकृतिक आपदाएँ वे अचानक और चरम घटनाएँ हैं जो पर्यावरणीय कारकों के कारण होती हैं और जिनसे जीवन, संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों को गंभीर नुकसान होता है। इन आपदाओं को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
2. हालिया उदाहरण
a. मौसमी आपदाएँ
b. जलविज्ञान आपदाएँ
c. भौगोलिक आपदाएँ
d. जलवायु आपदाएँ
e. जीवविज्ञान आपदाएँ
3. प्रभाव और प्रतिक्रिया
प्राकृतिक आपदाएँ जीवन, संपत्ति और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालती हैं। प्रतिक्रिया सामान्यतः निम्नलिखित होती है:
4. निष्कर्ष
प्राकृतिक आपदाएँ, चाहे वे मौसमी, जलविज्ञान, भौगोलिक, जलवायु या जीवविज्ञान से संबंधित हों, समाजों पर गंभीर खतरे उत्पन्न करती हैं। हालिया उदाहरण दिखाते हैं कि इन आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है, अक्सर जलवायु परिवर्तन और अन्य कारकों के कारण। प्रभावी आपदा प्रबंधन और तैयारी की रणनीतियाँ इन आपदाओं के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
See lessआपदा प्रबन्धन में सरकार की क्या भूमिका है? क्या स्थानीय नागरिकों को इसका प्रशिक्षण देना उचित होगा ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
आपदा प्रबंधन में सरकार की भूमिका 1. नीति निर्माण और योजना: सरकार की प्राथमिक भूमिका आपदा प्रबंधन नीतियों और योजना के निर्माण में होती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) भारत में आपदा प्रबंधन की दिशा और रणनीतियों को निर्धारित करती है। 2. आपातकालीन सेवाएँ और राहत कार्य: सरकार आपातकRead more
आपदा प्रबंधन में सरकार की भूमिका
1. नीति निर्माण और योजना: सरकार की प्राथमिक भूमिका आपदा प्रबंधन नीतियों और योजना के निर्माण में होती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) भारत में आपदा प्रबंधन की दिशा और रणनीतियों को निर्धारित करती है।
2. आपातकालीन सेवाएँ और राहत कार्य: सरकार आपातकालीन सेवाएँ और राहत कार्य प्रदान करती है, जैसे कि उत्तराखंड बाढ़ (2013) के दौरान केंद्रीय और राज्य सरकारों ने तत्काल राहत कार्य और पुनर्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3. संसाधन आवंटन और समन्वय: सरकार संसाधनों के आवंटन और सहयोगात्मक समन्वय सुनिश्चित करती है, जैसे कि COVID-19 महामारी के दौरान चिकित्सा आपूर्ति और टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए समन्वय और संसाधन आवंटित किए गए।
4. नियम और कानून: आपदा प्रबंधन के लिए नियम और कानून लागू करती है, जैसे कि आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005), जो आपदा प्रबंधन के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
स्थानीय नागरिकों को प्रशिक्षण देने की आवश्यकता
1. त्वरित प्रतिक्रिया: स्थानीय नागरिकों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण देना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे आपदा के दौरान पहले संपर्क में होते हैं और तत्काल मदद कर सकते हैं। अग्निशामक प्रशिक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य वर्कशॉप्स ऐसे उदाहरण हैं जहाँ स्थानीय लोगों को आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षित किया गया है।
2. सशक्तिकरण और जागरूकता: स्थानीय नागरिकों को प्रशिक्षित करने से उनकी सशक्तिकरण और जागरूकता बढ़ती है। नेपाल भूकंप (2015) के बाद स्थानीय स्वयंसेवकों की भूमिका ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों में सुधार किया।
3. प्रभावी नेटवर्क: स्थानीय प्रशिक्षण से सामुदायिक नेटवर्क और सहयोग बढ़ता है, जिससे आपदा के समय समुदाय आधारित प्रतिक्रिया अधिक प्रभावी होती है। स्वच्छ भारत मिशन ने स्थानीय समुदायों को स्वच्छता और आपदा प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल किया है।
निष्कर्ष: सरकार की भूमिका आपदा प्रबंधन में एक संरचनात्मक और समन्वयात्मक आधार प्रदान करती है, जबकि स्थानीय नागरिकों का प्रशिक्षण तत्काल और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने में सहायक होता है। दोनों के सहयोग से आपदा प्रबंधन की क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जा सकता है।
See lessआपदा प्रबंधन के विभिन्न प्रकारों एवं कार्यों का उल्लेख कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
आपदा प्रबंधन के विभिन्न प्रकार और कार्य 1. आपातकालीन प्रतिक्रिया: आपातकालीन प्रतिक्रिया का उद्देश्य आपदा की स्थिति में त्वरित और प्रभावी राहत प्रदान करना है। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड बाढ़ (2013) के दौरान, आपदा प्रबंधन दलों ने त्वरित राहत और बचाव कार्य किए। 2. आपदा की तैयारी: आपदा की तैयारी का उद्देशRead more
आपदा प्रबंधन के विभिन्न प्रकार और कार्य
1. आपातकालीन प्रतिक्रिया: आपातकालीन प्रतिक्रिया का उद्देश्य आपदा की स्थिति में त्वरित और प्रभावी राहत प्रदान करना है। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड बाढ़ (2013) के दौरान, आपदा प्रबंधन दलों ने त्वरित राहत और बचाव कार्य किए।
2. आपदा की तैयारी: आपदा की तैयारी का उद्देश्य आपदा से पूर्व योजना और तैयारी करना है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) और सामुदायिक प्रशिक्षण इसके उदाहरण हैं, जो विभिन्न आपदाओं के लिए तैयारी सुनिश्चित करते हैं।
3. आपदा पुनर्वास: पुनर्वास का कार्य आपदा के बाद प्रभावित लोगों की स्थिति में सुधार करना है। गुजरात भूकंप (2001) के बाद, पुनर्वास प्रयासों ने प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और आवास की मरम्मत की।
4. आपदा जोखिम न्यूनीकरण: जोखिम न्यूनीकरण का उद्देश्य आपदा के प्रभाव को कम करना है। सीमांत क्षेत्रों में वृक्षारोपण और विपदाओं के प्रति जागरूकता अभियानों के माध्यम से जोखिम को कम किया जा सकता है।
5. आपदा की प्रतिक्रिया और राहत: आपदा की प्रतिक्रिया में त्वरित राहत, बचाव कार्य और प्रभावितों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करना शामिल है। कोविड-19 महामारी के दौरान, सरकारों और संगठनों ने तत्काल चिकित्सा सहायता और खाद्य वितरण किया।
See lessभारत में केंद्र, राज्य तथा जनपद स्तरों पर आपदा प्रबंधन की विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
भारत में केंद्र, राज्य तथा जनपद स्तरों पर आपदा प्रबंधन परिचय: भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली एक तीन स्तरीय ढांचा है, जिसमें केंद्र, राज्य, और जनपद स्तर शामिल हैं। यह ढांचा आपदाओं से निपटने और राहत कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए जिम्मेदार है। **1. केंद्र स्तर: केंद्र स्तर पर, राष्ट्रीय आRead more
भारत में केंद्र, राज्य तथा जनपद स्तरों पर आपदा प्रबंधन
परिचय: भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली एक तीन स्तरीय ढांचा है, जिसमें केंद्र, राज्य, और जनपद स्तर शामिल हैं। यह ढांचा आपदाओं से निपटने और राहत कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए जिम्मेदार है।
**1. केंद्र स्तर: केंद्र स्तर पर, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) प्रमुख निकाय है, जिसे आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित किया गया है। NDMA की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यह आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करता है। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), NDMA के अधीन कार्य करता है और आपातकालीन राहत कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, 2023 के हिमाचल प्रदेश बाढ़ में, NDRF ने व्यापक बचाव और राहत कार्य किए।
**2. राज्य स्तर: राज्य स्तर पर, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) प्रत्येक राज्य में स्थापित है और इसकी अध्यक्षता राज्य के मुख्यमंत्री करते हैं। SDMA राज्य की आपदा प्रबंधन योजनाओं को तैयार करता है और कार्यान्वित करता है। 2022 के उत्तराखंड के भारी बारिश के दौरान, SDMA ने स्थानीय एजेंसियों और संगठनों के साथ मिलकर राहत और बचाव कार्यों का समन्वय किया।
**3. जनपद स्तर: जनपद स्तर पर, जनपद आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA), जिसकी अध्यक्षता जनपद कलेक्टर करते हैं, आपदा प्रबंधन का पहला स्तर है। DDMA स्थानीय समस्याओं का समाधान करता है और आपातकालीन राहत कार्यों का संचालन करता है। 2021 के चमोली फ्लैश फ्लड्स के दौरान, DDMA ने तत्काल राहत, निकासी और पुनर्वास कार्यों का प्रभावी प्रबंधन किया।
हाल का उदाहरण: COVID-19 महामारी के दौरान, NDMA ने राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए, राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन और स्वास्थ्य सुरक्षा उपाय लागू किए, और जनपद प्राधिकरण ने कंटेनमेंट जोन का प्रबंधन किया।
निष्कर्ष: भारत का आपदा प्रबंधन ढांचा केंद्र, राज्य, और जनपद स्तरों पर एक समन्वित प्रणाली है, जो आपदाओं के प्रभावी प्रबंधन और राहत कार्यों को सुनिश्चित करता है। इस ढांचे को निरंतर सुधार और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है।
See lessभारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी, इनके प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ हैं। विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2015]
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति और भारत की तत्परता: 1. भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति: भौगोलिक स्थिति: भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधि बढ़ रही है, विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में। उदाहरण के लिए, 2015 नेपाल भूकम्प (7.8 मैग्नीट्यूड) ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों, जैसे उत्तर प्रदेRead more
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति और भारत की तत्परता:
1. भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति:
2. तत्परता में कमी:
3. सुधार की रणनीतियाँ:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधियों की बढ़ती आवृत्ति के बावजूद, तत्परता में महत्वपूर्ण कमी है। निर्माण मानकों को मजबूत करना, आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमताओं में सुधार और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना भूकम्पीय घटनाओं के प्रति बेहतर तत्परता और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम हैं।
See lessराष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एन० डी० एम० ए०) के सुझावों के सन्दर्भ में, उत्तराखण्ड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिए अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
एन० डी० एम० ए० के सुझावों के संदर्भ में उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाओं को कम करने के उपाय 1. बादल फटने की घटनाओं का विवरण: बादल फटना अत्यधिक तीव्र वर्षा की घटनाएँ हैं जो सामान्यतः पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में होती हैं। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ और भूस्खलन होते हैं, जिससे व्यापक क्षRead more
एन० डी० एम० ए० के सुझावों के संदर्भ में उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाओं को कम करने के उपाय
1. बादल फटने की घटनाओं का विवरण: बादल फटना अत्यधिक तीव्र वर्षा की घटनाएँ हैं जो सामान्यतः पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में होती हैं। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ और भूस्खलन होते हैं, जिससे व्यापक क्षति होती है।
2. एन० डी० एम० ए० के सुझावों के आधार पर अपनाए जाने वाले उपाय:
इन उपायों को अपनाकर उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे जनसामान्य की सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
See lessकई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिए। (200 words) [UPSC 2016]
शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारण और जोखिम कम करने की तैयारियाँ 1. शहरी बाढ़ के कारण: त्वरित शहरीकरण: तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण अधिक अवशोषित सतहें (जैसे सड़कें और भवन) बन गई हैं, जिससे वर्षा का जल तेजी से बहकर नालों में जाता है और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। अप्रचलित जल निकासी प्रणाली: कई शहरोRead more
शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारण और जोखिम कम करने की तैयारियाँ
1. शहरी बाढ़ के कारण:
2. जोखिम कम करने की तैयारियाँ:
इन उपायों को अपनाकर शहरी बाढ़ के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे शहरों को सुरक्षित और समृद्ध बनाया जा सकता है।
See lessसूखे को उसके स्थानिक विस्तार, कालिक अवधि, मंथर प्रारम्भ और कमज़ोर बगों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एन० डी० एम० ए०) के सितम्बर 2010 मार्गदर्शी सिद्धान्तों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भारत में एल नीनो और ला नीना के सम्भावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिए तैयारी की कार्यविधियों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: सूखा को उसके विशाल स्थानिक प्रभाव, दीर्घकालिक अवधि, मंथर प्रारंभ, और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। एनडीएमए (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के सितम्बर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर आधारित, भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावRead more
परिचय: सूखा को उसके विशाल स्थानिक प्रभाव, दीर्घकालिक अवधि, मंथर प्रारंभ, और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। एनडीएमए (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के सितम्बर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर आधारित, भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिए विभिन्न तैयारी कार्यविधियाँ निर्धारित की गई हैं।
सितम्बर 2010 एनडीएमए मार्गदर्शी सिद्धांतों के तहत तैयारी:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: सितम्बर 2010 के एनडीएमए मार्गदर्शी सिद्धांत सूखा प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, जल संसाधन प्रबंधन, सूखा-प्रतिरोधी कृषि प्रथाएँ, और प्रभावी प्रतिक्रिया योजनाओं का कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। इन तैयारियों से भारत सूखे और जलवायु परिवर्तन से बेहतर तरीके से निपट सकता है।
See lessदिसम्बर 2004 को सुनामी भारत सहित चौदह देशों में तबाही लायी थी। सुनामी के होने के लिए जिम्मेदार कारकों पर एवं जीवन तथा अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले उसके प्रभावों पर चर्चा कीजिए। एन.डी.एम.ए. के दिशा निर्देशों (2010) के प्रकाश में, इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
दिसंबर 2004 का सुनामी: जिम्मेदार कारक और प्रभाव 1. सुनामी के होने के लिए जिम्मेदार कारक: 1.1. भूकंप: कारण: 26 दिसंबर 2004 को भारतीय महासागर में 9.1-9.3 तीव्रता का भूकंप आया, जिसे "सुनामी जनक भूकंप" कहा जाता है। यह भूकंप सुमात्रा के पश्चिमी तट के पास समुद्रतल में हुआ। उदाहरण: इस भूकंप ने समुद्र के नीRead more
दिसंबर 2004 का सुनामी: जिम्मेदार कारक और प्रभाव
1. सुनामी के होने के लिए जिम्मेदार कारक:
1.1. भूकंप:
1.2. समुद्री भूस्खलन:
2. जीवन और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
2.1. जीवन की हानि:
2.2. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
3. एन.डी.एम.ए. के दिशा निर्देशों (2010) के प्रकाश में जोखिम कम करने की क्रियाविधि:
3.1. आपातकालीन तैयारी और योजना:
3.2. संरचनात्मक और अवसंरचनात्मक सुधार:
3.3. जागरूकता और शिक्षा:
निष्कर्ष:
भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी० आर० आर०) के लिए 'सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात् किए गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए। यह प्रारूप 'ह्योगो कार्रवाई प्रारूप, 2005 से किस प्रकार भिन्न है?
आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) और सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप 1. सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030) के तहत किए गए उपाय: पूर्व-हस्ताक्षरित उपाय: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना: भारत ने 2016 में अपनी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना तैयार की, जो सेंडाई प्रारूप के सिद्धांतों के अनुरूप है। इसRead more
आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) और सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप
1. सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030) के तहत किए गए उपाय:
2. सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप और ह्योगो कार्रवाई प्रारूप में भिन्नताएँ:
3. निष्कर्ष: सेंडाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप ने भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के दृष्टिकोण को नया दिशा दिया है। इसके माध्यम से, स्थानीय स्तर पर सामुदायिक सशक्तिकरण और स्थिर विकास को प्राथमिकता दी गई है, जो ह्योगो प्रारूप की विशेषताएँ और दृष्टिकोण से भिन्न है।
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