भारत के जल संकट के समाधान में, सूक्ष्म सिंचाई कैसे और किस सीमा तक सहायक होगी ? (150 words) [UPSC 2021]
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका 1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। 2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिकRead more
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका
1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका:
a. सूक्ष्म सिंचाई की परिभाषा: सूक्ष्म सिंचाई (Micro-Irrigation) में ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, जो सटीक रूप से पौधों की जड़ों के पास पानी प्रदान करती हैं। यह जल की बर्बादी को कम करता है और जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाता है।
b. भूमिका:
i. जल की बचत: सूक्ष्म सिंचाई जल की मात्रा को नियंत्रित करती है और फव्वारे की तुलना में 30-50% अधिक जल की बचत कर सकती है। उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई ने पंजाब और हरियाणा में धान और गेंहू की फसलों में जल की बर्बादी को कम किया है।
ii. फसल की वृद्धि: यह प्रणाली फसल की वृद्धि और उत्पादकता में सुधार करती है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से प्याज और मिर्च की फसलों में उत्पादकता में 30% तक की वृद्धि देखी गई है।
iii. भूमि की सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई भूमि की समान सिंचाई सुनिश्चित करती है और खेतों में जल की असमानता को समाप्त करती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है।
c. पर्यावरणीय लाभ: यह प्रणाली भूस्खलन और मिट्टी की कटाई को कम करती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गुजरात में सूक्ष्म सिंचाई ने मृदा की उपजाऊता को बनाए रखने में मदद की है।
निष्कर्ष: सूक्ष्म सिंचाई जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी है, क्योंकि यह जल की बर्बादी को कम करती है, फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करती है, और पर्यावरण की रक्षा करती है। यह सतत कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
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सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट 1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथRead more
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट
1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथ ही उपज में भी वृद्धि हुई है।
2. कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सूक्ष्म सिंचाई फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाती है। कर्नाटक में, टमाटर की फसलों में ड्रिप सिंचाई के कारण उपज में सुधार और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि देखी गई है।
3. जल संरक्षण: यह भूजल स्तर को बनाए रखने और सतही जल संसाधनों पर दबाव कम करने में सहायक है। तमिलनाडु में सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों ने भूजल स्तर को सहेजने में मदद की है, खासकर सूखे की स्थिति में।
4. आर्थिक लाभ: यह संचालन लागत को कम करती है और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन संभव बनाती है। गुजरात में, किसानों ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों के उपयोग से लागत में कमी और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की रिपोर्ट की है।
प्रभाव की सीमा: जबकि सूक्ष्म सिंचाई के लाभ स्पष्ट हैं, उच्च प्रारंभिक लागत और रखरखाव की जटिलता जैसे मुद्दे इसकी विस्तृत अपनाने में बाधक हो सकते हैं। सरकार की सब्सिडी और तकनीकी उन्नति इसे विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कुल मिलाकर, सूक्ष्म सिंचाई भारत के जल संकट के समाधान में प्रभावशाली उपाय प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से जब इसे समर्थन नीतियों और व्यापक अपनाने के साथ जोड़ा जाए।
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