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रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (250 words) [UPSC 2020]
जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय **1. जल भंडारण में सुधार a. वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ, जैसे की जल संचयन टैंक और गड्ढे, जल की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश ने “जल शक्ति अभियान” के अंतर्गत घर-घर वर्षा जल संचयन के प्रयास किए हैं, जिससे भूजल स्तर में सुधRead more
जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय
**1. जल भंडारण में सुधार
a. वर्षा जल संचयन:
वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ, जैसे की जल संचयन टैंक और गड्ढे, जल की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश ने “जल शक्ति अभियान” के अंतर्गत घर-घर वर्षा जल संचयन के प्रयास किए हैं, जिससे भूजल स्तर में सुधार हुआ है।
b. चेक डेम और परकोलेशन पिट्स:
छोटे चेक डेम और परकोलेशन पिट्स जल के संचयन और भूजल पुनर्भरण में सहायक होते हैं। राजस्थान में, “सुजलाम सुफलाम योजना” के अंतर्गत ऐसे ढाँचों का निर्माण किया गया है, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जलस्तर में वृद्धि हुई है।
c. पारंपरिक जल स्रोतों की पुनरावृत्ति:
प्राचीन जल स्रोतों जैसे तालाबों और झीलों का पुनरुद्धार जल की उपलब्धता को बढ़ा सकता है। मध्य प्रदेश में, भोपल की झीलों का पुनरुद्धार किया गया है, जिससे क्षेत्रीय जल संसाधनों में सुधार हुआ है।
**2. सिंचाई प्रणालियों में सुधार
a. ड्रिप सिंचाई:
ड्रिप सिंचाई प्रणाली सीधे पौधों की जड़ों को पानी प्रदान करती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है। महाराष्ट्र में प्याज की खेती में ड्रिप सिंचाई के उपयोग से पानी की खपत में कमी आई है और उपज में वृद्धि हुई है।
b. स्प्रिंकलर सिस्टम:
स्प्रिंकलर प्रणाली विशेष रूप से असमान भूभाग वाले क्षेत्रों में पानी की प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करती है। कर्नाटका में, गन्ने की फसलों के लिए स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग किया गया है, जिससे पानी की उपयोगिता में सुधार हुआ है।
c. मिट्टी की नमी प्रबंधन:
मिट्टी की नमी सेंसरों का उपयोग करके सिंचाई अनुसूचियों का प्रबंधन सटीक पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करता है। पंजाब में, इन सेंसरों के उपयोग से सिंचाई में सुधार और फसल की उत्पादकता में वृद्धि देखी गई है।
**3. नीति और प्रशासनिक उपाय
a. जल-संरक्षण तकनीकों के लिए प्रोत्साहन:
जल-संरक्षण तकनीकों को अपनाने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान करना महत्वपूर्ण है। “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)” के तहत ऐसे तकनीकी सुधारों को समर्थन दिया जाता है।
b. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM):
IWRM दृष्टिकोण जल संसाधनों के प्रबंधन में समग्र दृष्टिकोण अपनाता है। राष्ट्रीय जल नीति, 2012, इस एकीकृत दृष्टिकोण पर जोर देती है, जिससे जल उपयोग और प्रबंधन में सुधार होता है।
निष्कर्ष:
See lessजल भंडारण और सिंचाई प्रणालियों में सुधार के लिए आधुनिक तकनीकों और पारंपरिक विधियों का सम्मिलित उपयोग, साथ ही समर्थक नीतियों की आवश्यकता है, ताकि जल उपयोग की दक्षता और स्थिरता में सुधार हो सके।
ऐलीलोपैथी क्या है? सिंचित कृषि क्षेत्रों की प्रमुख फसल पद्धतियों में इसकी भूमिका का वर्णन कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका 1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा: ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालRead more
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका
1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा:
ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं।
2. सिंचित कृषि क्षेत्रों में ऐलीलोपैथी की भूमिका:
a. खरपतवार नियंत्रण:
ऐलीलोपैथी एक प्राकृतिक खरपतवार नियंत्रण विधि के रूप में कार्य कर सकती है। मिट्टी में ऐलीलोपैथिक यौगिक अन्य खरपतवारों की वृद्धि को रोकते हैं, जैसे कि अरेगॉन में फेनक्वेल पौधों द्वारा विवर की वृद्धि को नियंत्रित किया गया।
b. फसल उत्पादन में सुधार:
कुछ फसलें ऐलीलोपैथिक प्रभाव का उपयोग फसल की वृद्धि को बढ़ाने के लिए करती हैं। उदाहरण के लिए, टमाटर और मक्का जैसे पौधों के रूट exudates नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे फसल की उपज में सुधार होता है।
c. मिट्टी की उर्वरता:
ऐलीलोपैथी मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकती है। दलहनी फसलों जैसे ग्वार और मूँग द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जाती है, जो अन्य फसलों के लिए उपयुक्त पोषक तत्व प्रदान करती है।
d. उदाहरण:
पंजाब और हरियाणा में सरसों का प्रयोग ऐलीलोपैथी के माध्यम से धान की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने में किया गया।
निष्कर्ष:
ऐलीलोपैथी सिंचित कृषि में एक प्राकृतिक और प्रभावी विधि है जो खरपतवार नियंत्रण, फसल उत्पादन में सुधार, और मिट्टी की उर्वरता में योगदान करती है। इसका सही उपयोग कृषि उत्पादन को सतत और पर्यावरण मित्रवत बनाने में सहायक हो सकता है।
See lessजल-उपयोग दक्षता से आप क्या समझते हैं? जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका का वर्णन कीजिए। What is water-use efficiency? (200 words) [UPSC 2016]
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका 1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। 2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिकRead more
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका
1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका:
a. सूक्ष्म सिंचाई की परिभाषा: सूक्ष्म सिंचाई (Micro-Irrigation) में ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, जो सटीक रूप से पौधों की जड़ों के पास पानी प्रदान करती हैं। यह जल की बर्बादी को कम करता है और जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाता है।
b. भूमिका:
i. जल की बचत: सूक्ष्म सिंचाई जल की मात्रा को नियंत्रित करती है और फव्वारे की तुलना में 30-50% अधिक जल की बचत कर सकती है। उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई ने पंजाब और हरियाणा में धान और गेंहू की फसलों में जल की बर्बादी को कम किया है।
ii. फसल की वृद्धि: यह प्रणाली फसल की वृद्धि और उत्पादकता में सुधार करती है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से प्याज और मिर्च की फसलों में उत्पादकता में 30% तक की वृद्धि देखी गई है।
iii. भूमि की सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई भूमि की समान सिंचाई सुनिश्चित करती है और खेतों में जल की असमानता को समाप्त करती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है।
c. पर्यावरणीय लाभ: यह प्रणाली भूस्खलन और मिट्टी की कटाई को कम करती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गुजरात में सूक्ष्म सिंचाई ने मृदा की उपजाऊता को बनाए रखने में मदद की है।
निष्कर्ष: सूक्ष्म सिंचाई जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी है, क्योंकि यह जल की बर्बादी को कम करती है, फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करती है, और पर्यावरण की रक्षा करती है। यह सतत कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
See lessभारत के जल संकट के समाधान में, सूक्ष्म सिंचाई कैसे और किस सीमा तक सहायक होगी ? (150 words) [UPSC 2021]
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट 1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथRead more
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट
1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथ ही उपज में भी वृद्धि हुई है।
2. कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सूक्ष्म सिंचाई फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाती है। कर्नाटक में, टमाटर की फसलों में ड्रिप सिंचाई के कारण उपज में सुधार और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि देखी गई है।
3. जल संरक्षण: यह भूजल स्तर को बनाए रखने और सतही जल संसाधनों पर दबाव कम करने में सहायक है। तमिलनाडु में सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों ने भूजल स्तर को सहेजने में मदद की है, खासकर सूखे की स्थिति में।
4. आर्थिक लाभ: यह संचालन लागत को कम करती है और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन संभव बनाती है। गुजरात में, किसानों ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों के उपयोग से लागत में कमी और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की रिपोर्ट की है।
प्रभाव की सीमा: जबकि सूक्ष्म सिंचाई के लाभ स्पष्ट हैं, उच्च प्रारंभिक लागत और रखरखाव की जटिलता जैसे मुद्दे इसकी विस्तृत अपनाने में बाधक हो सकते हैं। सरकार की सब्सिडी और तकनीकी उन्नति इसे विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कुल मिलाकर, सूक्ष्म सिंचाई भारत के जल संकट के समाधान में प्रभावशाली उपाय प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से जब इसे समर्थन नीतियों और व्यापक अपनाने के साथ जोड़ा जाए।
See lessभारतीय कृषि में जल के अकुशल उपयोग के लिए उत्तरदायी कारण क्या हैं? जल उपयोग दक्षता में सुधार के उपाय सुझाइए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय कृषि में जल के अकुशल उपयोग के मुख्य कारण हैं: परंपरागत सिंचाई पद्धतियाँ: पुराने और अक्षम सिंचाई विधियाँ, जैसे कि बहाव सिंचाई, जल की अधिक बर्बादी करती हैं। जल की कमी: कई क्षेत्रों में जल की कमी और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से जल संकट पैदा हो गया है। अनियमित वर्षा: असमान और अनियमित वर्षा के कारRead more
भारतीय कृषि में जल के अकुशल उपयोग के मुख्य कारण हैं:
परंपरागत सिंचाई पद्धतियाँ: पुराने और अक्षम सिंचाई विधियाँ, जैसे कि बहाव सिंचाई, जल की अधिक बर्बादी करती हैं।
जल की कमी: कई क्षेत्रों में जल की कमी और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से जल संकट पैदा हो गया है।
अनियमित वर्षा: असमान और अनियमित वर्षा के कारण सिंचाई के लिए आवश्यक जल उपलब्ध नहीं रहता।
पानी की बर्बादी: खेतों में जल की बर्बादी और सिंचाई की आवश्यकता का सही आंकलन नहीं होने के कारण जल की अत्यधिक खपत होती है।
जल उपयोग दक्षता में सुधार के उपाय:
सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियाँ: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग जल के सटीक प्रबंधन में मदद करता है।
See lessवृष्टि-संवर्धन तकनीकें: जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन की तकनीकों को अपनाना।
मृदा प्रबंधन: मृदा की नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग और ऑर्गेनिक सामग्री का उपयोग।
सिंचाई योजना: सिंचाई के समय और मात्रा का सही मूल्यांकन करने के लिए तकनीकी समाधान और स्मार्ट सिंचाई सिस्टम का उपयोग।