जल-उपयोग दक्षता से आप क्या समझते हैं? जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका का वर्णन कीजिए। What is water-use efficiency? (200 words) [UPSC 2016]
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका 1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा: ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालRead more
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका
1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा:
ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं।
2. सिंचित कृषि क्षेत्रों में ऐलीलोपैथी की भूमिका:
a. खरपतवार नियंत्रण:
ऐलीलोपैथी एक प्राकृतिक खरपतवार नियंत्रण विधि के रूप में कार्य कर सकती है। मिट्टी में ऐलीलोपैथिक यौगिक अन्य खरपतवारों की वृद्धि को रोकते हैं, जैसे कि अरेगॉन में फेनक्वेल पौधों द्वारा विवर की वृद्धि को नियंत्रित किया गया।
b. फसल उत्पादन में सुधार:
कुछ फसलें ऐलीलोपैथिक प्रभाव का उपयोग फसल की वृद्धि को बढ़ाने के लिए करती हैं। उदाहरण के लिए, टमाटर और मक्का जैसे पौधों के रूट exudates नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे फसल की उपज में सुधार होता है।
c. मिट्टी की उर्वरता:
ऐलीलोपैथी मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकती है। दलहनी फसलों जैसे ग्वार और मूँग द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जाती है, जो अन्य फसलों के लिए उपयुक्त पोषक तत्व प्रदान करती है।
d. उदाहरण:
पंजाब और हरियाणा में सरसों का प्रयोग ऐलीलोपैथी के माध्यम से धान की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने में किया गया।
निष्कर्ष:
ऐलीलोपैथी सिंचित कृषि में एक प्राकृतिक और प्रभावी विधि है जो खरपतवार नियंत्रण, फसल उत्पादन में सुधार, और मिट्टी की उर्वरता में योगदान करती है। इसका सही उपयोग कृषि उत्पादन को सतत और पर्यावरण मित्रवत बनाने में सहायक हो सकता है।
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जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका 1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। 2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिकRead more
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका
1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका:
a. सूक्ष्म सिंचाई की परिभाषा: सूक्ष्म सिंचाई (Micro-Irrigation) में ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, जो सटीक रूप से पौधों की जड़ों के पास पानी प्रदान करती हैं। यह जल की बर्बादी को कम करता है और जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाता है।
b. भूमिका:
i. जल की बचत: सूक्ष्म सिंचाई जल की मात्रा को नियंत्रित करती है और फव्वारे की तुलना में 30-50% अधिक जल की बचत कर सकती है। उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई ने पंजाब और हरियाणा में धान और गेंहू की फसलों में जल की बर्बादी को कम किया है।
ii. फसल की वृद्धि: यह प्रणाली फसल की वृद्धि और उत्पादकता में सुधार करती है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से प्याज और मिर्च की फसलों में उत्पादकता में 30% तक की वृद्धि देखी गई है।
iii. भूमि की सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई भूमि की समान सिंचाई सुनिश्चित करती है और खेतों में जल की असमानता को समाप्त करती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है।
c. पर्यावरणीय लाभ: यह प्रणाली भूस्खलन और मिट्टी की कटाई को कम करती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गुजरात में सूक्ष्म सिंचाई ने मृदा की उपजाऊता को बनाए रखने में मदद की है।
निष्कर्ष: सूक्ष्म सिंचाई जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी है, क्योंकि यह जल की बर्बादी को कम करती है, फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करती है, और पर्यावरण की रक्षा करती है। यह सतत कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
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