Home/upsc: sansad & rajya vidhan mandal
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आप यह क्यों सोचते हैं कि समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए उपयोगी मानी जाती हैं? इस संदर्भ में प्राक्कलन समिति की भूमिका की विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
'समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती हैं।' इसका मुख्य कारण यह है कि संसद के पास सीमित समय होता है और वह सभी मुद्दों पर गहनता से विचार नहीं कर पाती। समितियाँ इस कार्य को आसान बनाती हैं। वे विभिन्न विषयों पर गहराई से अध्ययन करती हैं, विशेषज्ञों से राय लेती हैं और फिर संसद के समक्ष अRead more
‘समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती हैं।’ इसका मुख्य कारण यह है कि संसद के पास सीमित समय होता है और वह सभी मुद्दों पर गहनता से विचार नहीं कर पाती। समितियाँ इस कार्य को आसान बनाती हैं। वे विभिन्न विषयों पर गहराई से अध्ययन करती हैं, विशेषज्ञों से राय लेती हैं और फिर संसद के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करती हैं।
‘प्राक्कलन समिति’ ऐसी ही संसदीय समिति है जो बजट में सरकार द्वारा प्रस्तावित व्यय के अनुमानों की जांच करती है। यह यह सुनिश्चित करती है कि सरकार का पैसा सही तरीके से खर्च किया जा रहा है और कोई भी धनराशि का दुरुपयोग नहीं हो रहा है। यह समिति सरकार को किफायती तरीके से काम करने के लिए सुझाव भी देती है।
रोल:
प्राक्कलन समिति का काम इस प्रकार है:
-बजट का विश्लेषण: यह समिति बजट में दिए गए आंकड़ों का विस्तृत विश्लेषण करती है और यह सुनिश्चित करती है कि ये आंकड़े सही हैं।
सरकारी खर्च की जांच: यह समिति सरकार द्वारा किए जा रहे खर्च की जांच करती है और यह सुनिश्चित करती है कि यह खर्च आवश्यक है और सही तरीके से किया जा रहा है।
-बजट पर जोर: यह समिति सरकार को किफायति से काम करने के लिए सुझाव देती है ताकि पैसे का दुरुपयोग न हो।
-जनता का हित: प्राक्कलन समिति जनता के हित में काम करती और यही कारण है कि यह सरकार के पैसे का सही व्यय करता है।
निष्कर्ष: प्राक्कलन समिति संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सरकार को जवाबदेह बनाती है और यह सुनिश्चित करती है कि जनता का पैसा सही तरीके से खर्च किया जा रहा है।
See less"यदि संसद में पटल पर रखे गए व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल को पारित कर दिया जाता है, तो हो सकता है कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई बचे ही नहीं।" समालोचनापूर्वक मूल्यांकन कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल का समालोचनापूर्वक मूल्यांकन व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 का पृष्ठभूमि: व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2011 को सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में भ्रष्टाचार या दुराचार को उजागर करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था। इसका उद्Read more
व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल का समालोचनापूर्वक मूल्यांकन
व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 का पृष्ठभूमि: व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2011 को सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में भ्रष्टाचार या दुराचार को उजागर करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था। इसका उद्देश्य व्हिसलब्लोअर्स को प्रतिशोध और उत्पीड़न से बचाना था।
संशोधन बिल के साथ चिंताएँ:
निष्कर्ष: यदि संशोधन बिल पारित हो जाता है, तो व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा को गंभीर रूप से कमजोर किया जा सकता है। प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिनियम को मजबूत संरक्षित उपायों को बनाए रखना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि शिकायत प्रक्रिया सुलभ और प्रभावी हो। इन मुद्दों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है ताकि व्यक्ति भ्रष्टाचार और दुराचार की रिपोर्ट करने के लिए सुरक्षित महसूस कर सकें।
See lessराष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में अकेले एक संसद सदस्य की भूमिका अवनति की ओर है, जिसके फलस्वरूप वादविवादों की गुणता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ भी चुका है। चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
एक संसद सदस्य की राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में भूमिका को लेकर कई चुनौतियाँ हैं, जिनके परिणामस्वरूप वादविवादों की गुणवत्ता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इन समस्याओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. विधायी प्रभावशीलता की कमी: एक अकेला संसद सदस्य, विशRead more
एक संसद सदस्य की राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में भूमिका को लेकर कई चुनौतियाँ हैं, जिनके परिणामस्वरूप वादविवादों की गुणवत्ता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इन समस्याओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. विधायी प्रभावशीलता की कमी:
एक अकेला संसद सदस्य, विशेष रूप से एक छोटे दल या स्वतंत्र सदस्य, अक्सर विधायी प्रक्रिया में प्रभावी भूमिका निभाने में असमर्थ हो सकता है। उसके पास सीमित संसाधन, समर्थन और आवाज होती है, जो उसे प्रमुख मुद्दों पर प्रभाव डालने से रोकती है।
2. विवादों की गुणवत्ता:
एक सदस्य की सीमित शक्ति और संसाधनों के कारण, वादविवादों की गुणवत्ता में कमी हो सकती है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन और सूक्ष्म विवेचन की कमी हो सकती है, जो विधायिका के समग्र कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
3. संसदीय कार्यप्रणाली पर प्रभाव:
एक सदस्य की सीमित भूमिका के कारण, विधायिका में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। महत्वपूर्ण विधायी प्रस्तावों और निर्णयों में गहन बहस और विचार-विमर्श की कमी हो सकती है, जिससे पारदर्शिता और गुणात्मक निर्णयों पर असर पड़ता है।
4. संसदीय दायित्व और प्राथमिकताएँ:
अक्सर एक सदस्य की प्राथमिकताएँ और संसदीय दायित्व उसके स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं और उसकी व्यक्तिगत चिंताओं पर केंद्रित हो सकती हैं, जो राष्ट्रीय मुद्दों पर व्यापक दृष्टिकोण को प्रभावित करती है।
5. समर्थन की कमी:
अकेला सदस्य अक्सर पार्टी के नेतृत्व, संसदीय दल, और संसदीय समितियों के समर्थन से वंचित रहता है। यह स्थिति उसे विधायी कार्यों में सक्रिय और प्रभावी भागीदारी में कठिनाई का सामना कराती है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए, संसदीय प्रक्रियाओं में सुधार, दलगत सहयोग को बढ़ावा देना और संसदीय कार्यप्रणाली को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। इस प्रकार, एक सदस्य की भूमिका को मजबूत करने के लिए आवश्यक संसाधनों और समर्थन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
See less"लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक ही समय में चुनाव, चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय को तो सीमित कर देंगे, परंतु ऐसा करने से लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।" चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
एक ही समय में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव: प्रभाव और जवाबदेही समान समय पर चुनाव कराने से चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय को सीमित किया जा सकता है, जिससे चुनावी खर्चे कम होंगे और प्रचार गतिविधियाँ एक साथ चल सकेंगी। इससे विधानसभा और लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया की सुगमता बढ़ेगी और लॉजिस्टिक सुविधाएँRead more
एक ही समय में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव: प्रभाव और जवाबदेही
समान समय पर चुनाव कराने से चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय को सीमित किया जा सकता है, जिससे चुनावी खर्चे कम होंगे और प्रचार गतिविधियाँ एक साथ चल सकेंगी। इससे विधानसभा और लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया की सुगमता बढ़ेगी और लॉजिस्टिक सुविधाएँ सुलभ होंगी।
जवाबदेही पर प्रभाव: हालांकि, एक ही समय में चुनाव कराने से जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो सकती है। अलग-अलग समय पर चुनाव सरकार को उनके कार्यकाल के दौरान प्रदर्शन की निगरानी का अवसर देते हैं। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो सरकार की सत्ता के प्रति जवाबदेही कम हो सकती है क्योंकि सरकार को किसी विशिष्ट चुनावी मुद्दे या विधानसभा कार्यों पर समर्पित तरीके से जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकेगा।
इस प्रकार, समान समय पर चुनाव निश्चित लाभ प्रदान करते हैं, लेकिन जवाबदेही की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकते हैं।
See lessविगत कुछ दशकों में राज्य सभा एक 'उपयोगहीन स्टैपनी टायर' से सर्वाधिक उपयोगी सहायक अंग में रूपांतरित हुआ है। उन कारकों तथा क्षेत्रों को आलोकित कीजिये जहाँ यह रूपांतरण दृष्टिगत हो सकता है। (250 words) [UPSC 2020]
विगत कुछ दशकों में राज्य सभा ने 'उपयोगहीन स्टैपनी टायर' से एक महत्वपूर्ण सहायक अंग के रूप में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को पार किया है। इस रूपांतरण को निम्नलिखित कारकों और क्षेत्रों में देखा जा सकता है: 1. विधायिका की कार्यप्रणाली में योगदान: राज्य सभा ने विधायिका की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूRead more
विगत कुछ दशकों में राज्य सभा ने ‘उपयोगहीन स्टैपनी टायर’ से एक महत्वपूर्ण सहायक अंग के रूप में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को पार किया है। इस रूपांतरण को निम्नलिखित कारकों और क्षेत्रों में देखा जा सकता है:
1. विधायिका की कार्यप्रणाली में योगदान:
राज्य सभा ने विधायिका की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेषकर समीक्षा और सुझाव देने में। यह सदन विधेयकों की समीक्षा करता है, उन्हें संशोधित करता है, और अपने सुझाव प्रस्तुत करता है, जो कि लोकसभा द्वारा पास किए गए विधेयकों की गुणवत्ता में सुधार लाता है। उदाहरणस्वरूप, कई महत्वपूर्ण विधेयक जैसे कि राजस्व, वित्तीय सुधार, और समाजिक कल्याण के विधेयकों पर राज्य सभा की संस्तुति और सुझाव महत्वपूर्ण रहे हैं।
2. विशेषज्ञता और विविधता:
राज्य सभा में विशेषज्ञों, अनुभवी व्यक्तियों और विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व होता है। इस कारण, सदन में पेश किए गए मुद्दों पर गहराई से विचार-विमर्श होता है और विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं। यह विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण होता है जहाँ तकनीकी या विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है।
3. संघीय संतुलन:
राज्य सभा ने संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह राज्यों की आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का माध्यम है और केंद्रीय नीतियों पर राज्यों के दृष्टिकोण को समाहित करता है। उदाहरण के लिए, राज्यों की विशेष समस्याओं और आवश्यकताओं पर चर्चा कर उन्हें केंद्र सरकार के ध्यान में लाया जाता है।
4. विवादों का समाधान:
राज्य सभा ने विवादित मुद्दों पर मध्यस्थता और समाधान प्रदान करने में भी योगदान दिया है। कई बार यह सदन विधायिका में उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने का काम करता है और संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
5. संवैधानिक संशोधन:
राज्य सभा ने संवैधानिक संशोधनों पर विचार और मंजूरी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह प्रक्रिया संविधान में आवश्यक बदलाव और सुधार को लागू करने में सहायक रही है।
इन कारकों और क्षेत्रों के माध्यम से, राज्य सभा ने अपनी भूमिका और प्रभावशीलता को मजबूत किया है, जिससे यह एक ‘उपयोगहीन स्टैपनी टायर’ से एक महत्वपूर्ण सहायक अंग में परिवर्तित हो गया है।
See less'एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर'! क्या आपके विचार में लोकसभा अध्यक्ष पद की निष्पक्षता के लिए इस कार्यप्रणाली को स्वीकारना चाहिए ? भारत में संसदीय प्रयोजन की सुदृढ कार्यशैली के लिए इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? (150 words) [UPSC 2020]
"एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर" का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्णRead more
“एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
सकारात्मक परिणाम:
See lessनिष्पक्षता और स्वतंत्रता: अध्यक्ष को एक बार निर्वाचित होने के बाद राजनीति से अलग माना जाएगा, जिससे वह निष्पक्ष निर्णय ले सकेगा और सदन की कार्यवाही को स्वतंत्रता से संचालित कर सकेगा।
विश्वसनीयता: यह सिद्धांत अध्यक्ष की भूमिका की विश्वसनीयता और सम्मान बढ़ा सकता है, जिससे सदन की कार्यवाही पर विश्वास मजबूत होगा।
संभावित चुनौतियाँ:
दीर्घकालिक प्रभाव: लंबे समय तक अध्यक्ष बने रहने से राजनीतिक दबावों से बचना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सुधार में कठिनाई: एक ही व्यक्ति लंबे समय तक पद पर रहने से सुधार की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है, यदि अध्यक्ष प्रणाली की कमियों को दूर नहीं कर पाता।
इसलिए, “एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत निष्पक्षता को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए समुचित निगरानी और निरंतर सुधार की आवश्यकता होगी।
क्या विभागों से संबंधित संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन को अपने पैर की उँगलियों पर रखती हैं और संसदीय नियंत्रण के लिए सम्मान-प्रदर्शन हेतु प्रेरित करती हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ ऐसी समितियों के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन के कार्यों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विभागों के कार्यों और नीतियों की समीक्षा करती हैं और संसदीय नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाती हैं। संसदीय स्थायी समितियों के कार्य और उनका मूल्यांकन: 1. निगरानी औRead more
संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन के कार्यों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विभागों के कार्यों और नीतियों की समीक्षा करती हैं और संसदीय नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाती हैं।
संसदीय स्थायी समितियों के कार्य और उनका मूल्यांकन:
1. निगरानी और समीक्षा:
उदाहरण: लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC) और वित्त समिति (Estimates Committee) संसदीय स्थायी समितियाँ हैं जो बजट और खर्चों की समीक्षा करती हैं। PAC का मुख्य कार्य सरकारी खातों का ऑडिट करना और वित्तीय गड़बड़ियों की पहचान करना है। इस प्रकार, यह विभागों की वित्तीय अनुशासन पर नजर रखती है।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बनाए रखने के लिए प्रेरित करती हैं। PAC के उदाहरण के रूप में, इसने विभिन्न समय पर महत्वपूर्ण घोटालों को उजागर किया है, जैसे कि 2G स्पेक्ट्रम घोटाला और कोल घोटाला।
2. नीतिगत सलाह और सुधार:
उदाहरण: गृह मामलों की स्थायी समिति (Standing Committee on Home Affairs) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की स्थायी समिति (Standing Committee on Health and Family Welfare) विभागों की नीतियों की समीक्षा करती हैं और सुधार के सुझाव देती हैं।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को नीतिगत सुधारों के लिए प्रेरित करती हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की स्थायी समिति ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिससे विभागों को नीतियों में बदलाव और सुधार लाने की दिशा में मार्गदर्शन मिला है।
3. सरकारी प्रदर्शन की निगरानी:
उदाहरण: संविधान समीक्षा समिति (Committee on the Constitution) और संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees) विभिन्न सरकारी विभागों के कार्यों की निगरानी करती हैं और प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति जवाबदेह बनाती हैं।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को उनकी कार्यप्रणाली और प्रदर्शन में सुधार के लिए प्रेरित करती हैं। संविधान समीक्षा समिति ने कई बार संविधान में सुधारों की सिफारिश की है, जिससे प्रशासन को अपनी कार्यप्रणाली को अपडेट करने में सहायता मिली है।
निष्कर्ष:
See lessसंसदीय स्थायी समितियाँ विभागों से संबंधित प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करती हैं, पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करती हैं, और संसदीय नियंत्रण को मजबूत करती हैं। इनके कार्यों से प्रशासन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है और संसदीय सिस्टम के प्रति सम्मान बनाए रहता है। ये समितियाँ न केवल नीतिगत सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, बल्कि प्रशासनिक सुधारों के लिए भी प्रेरित करती हैं।
उन संवैधानिक प्रावधानों को समझाइए जिनके अंतर्गत विधान परिषदें स्थापित होती हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विधान परिषदों के कार्य और वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
संविधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 169: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार: स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद मेंRead more
संविधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 169:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार:
स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद में भी मंजूरी प्राप्त करनी होती है।
संगठन और संरचना: विधान परिषद की संरचना और सदस्य संख्या राज्य के संविधान द्वारा निर्धारित की जाती है, और इसमें विभिन्न श्रेणियों के सदस्य होते हैं जैसे कि शिक्षाविद, विधायकों, और पेशेवर।
विधान परिषदों के कार्य:
विधायिका का समर्थन:
विधान परिषद का मुख्य कार्य राज्य विधान सभा की सहायता करना होता है। यह विधायिका के सदस्य बनते हैं और विधायी कार्यों में अनुभव और विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
विधायी प्रक्रिया में सुधार:
विधान परिषद विधेयकों पर विचार करने, संशोधन करने और समीक्षा करने का काम करती है। यह विधान सभा के निर्णयों को अधिक सुसंगत और संतुलित बनाती है।
विशेषज्ञता और सलाह:
इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को सलाह और सुझाव प्रदान करते हैं, जिससे कानूनों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
उदाहरण:
बिहार विधान परिषद:
बिहार में विधान परिषद 1952 में स्थापित की गई थी और यह राज्य की विधायिका का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को समर्थन और सलाह प्रदान करते हैं।
कर्नाटक विधान परिषद:
कर्नाटक में विधान परिषद 1986 में पुनः स्थापित की गई थी। इसका काम राज्य की विधायिका के लिए महत्वपूर्ण सुझाव और निरीक्षण प्रदान करना है।
वर्तमान स्थिति और मूल्यांकन:
लाभ:
संतुलन और नियंत्रण:
विधान परिषद विधान सभा के कार्यों की समीक्षा करती है और इसमें शामिल विशेषज्ञता विधायिका को बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
विधायिका की गुणवत्ता:
परिषद में अनुभवी और पेशेवर सदस्य होते हैं, जो विधायी प्रक्रिया में सुधार और अधिक पारदर्शिता लाने में सहायक होते हैं।
सीमाएँ:
अर्थशास्त्र:
कई लोगों का मानना है कि विधान परिषदें अनावश्यक और खर्चीली हैं, और इनकी उपस्थिति राज्य सरकार के संसाधनों पर बोझ डालती है।
राजनीतिक नियुक्तियाँ:
विधान परिषद में कई बार राजनीतिक नियुक्तियाँ होती हैं, जिससे इसकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
वर्तमान स्थिति:
कुछ राज्यों में विधान परिषदें प्रभावी ढंग से कार्य कर रही हैं, जबकि अन्य में इसे समाप्त करने की माँग उठ रही है। विधान परिषद की उपयोगिता और संरचना पर विचार राज्य की प्रशासनिक प्राथमिकताओं और राजनीतिक परिदृश्य पर निर्भर करती है।
See lessइस प्रकार, संविधानिक प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित विधान परिषदें विधायिका को सहारा प्रदान करती हैं और विधायी प्रक्रिया को अधिक संतुलित और गुणवत्ता युक्त बनाने में सहायक होती हैं।
भारत में लोकतंत्र के प्रभावी काम-काज के लिए विपक्ष के नेता (LOP) की भूमिका पर चचर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में लोकतंत्र के प्रभावी काम-काज के लिए विपक्ष के नेता (LOP) की भूमिका महत्वपूर्ण है। LOP का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों और कार्यों पर निगरानी रखना और उनके खिलाफ वैध और सृजनात्मक आलोचना प्रस्तुत करना है। यह भूमिका सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करती है। LOP को संसद में प्रRead more
भारत में लोकतंत्र के प्रभावी काम-काज के लिए विपक्ष के नेता (LOP) की भूमिका महत्वपूर्ण है। LOP का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों और कार्यों पर निगरानी रखना और उनके खिलाफ वैध और सृजनात्मक आलोचना प्रस्तुत करना है। यह भूमिका सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करती है।
LOP को संसद में प्रभावी ढंग से सवाल उठाने, बहस करने और विधेयकों की समीक्षा करने की जिम्मेदारी होती है। उनकी आलोचना और सुझाव सरकार को बेहतर नीतियां बनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, LOP का कार्य विपक्षी दलों को एकजुट करना और वैकल्पिक नीतियों का प्रस्ताव देना भी है, जो लोकतांत्रिक बहस को समृद्ध करता है। इस तरह, विपक्ष के नेता लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखते हैं और सरकार के कामकाज को नियंत्रित करने में योगदान करते हैं।
See lessआपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (150 words) [UPSC 2021]
संसद की कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में भूमिका 1. विधायी निगरानी: संसद सरकार की नीतियों और निर्णयों पर बहस और चर्चा के माध्यम से कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। सांसद सरकार से प्रश्न पूछते हैं, जो कार्यपालिका की गतिविधियों की समीक्षा में सहायक होते हैं। 2. समितियाँ: संसदीय समितRead more
संसद की कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने में भूमिका
1. विधायी निगरानी: संसद सरकार की नीतियों और निर्णयों पर बहस और चर्चा के माध्यम से कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। सांसद सरकार से प्रश्न पूछते हैं, जो कार्यपालिका की गतिविधियों की समीक्षा में सहायक होते हैं।
2. समितियाँ: संसदीय समितियाँ, जैसे लोक लेखा समिति (PAC) और अनुमान समिति, सरकारी खर्च और प्रदर्शन की समीक्षा करती हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
3. अविश्वास प्रस्ताव: संसद अविश्वास प्रस्ताव पारित कर सकती है, जो सरकार के इस्तीफे का कारण बन सकता है। यह कार्यपालिका पर एक महत्वपूर्ण चेक होता है।
4. प्रश्नकाल और बहसें: प्रश्नकाल और संसदीय बहसें सांसदों को कार्यपालिका के निर्णयों और नीतियों पर सवाल उठाने का अवसर प्रदान करती हैं।
निष्कर्ष: संसद के पास कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रभावी उपाय हैं, लेकिन पार्टी वफादारी और राजनीतिक परिस्थितियाँ कभी-कभी इसके प्रभावशीलता को सीमित कर सकती हैं।
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