पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव यू.एस. के प्रभुत्व के अंत और एक नई बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की शुरुवात का संकेत प्रदान करता है। समालोचनात्मक विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
अश्गाबात करार 2018 और भारत के हित अश्गाबात करार 2018: अश्गाबात करार 2018, जिसे ‘ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन’ (TAPI) समझौते के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और हाल ही में इस पर हस्ताक्षर किए गए अन्य देशों को शामिलRead more
अश्गाबात करार 2018 और भारत के हित
अश्गाबात करार 2018: अश्गाबात करार 2018, जिसे ‘ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन’ (TAPI) समझौते के रूप में भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, और हाल ही में इस पर हस्ताक्षर किए गए अन्य देशों को शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से भारत तक गैस पाइपलाइन का निर्माण करना है।
भारत के लिए निहितार्थ:
- ऊर्जा सुरक्षा: इस पाइपलाइन परियोजना से भारत को प्राकृतिक गैस की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होगी, जो ऊर्जा सुरक्षा और विविधता को बढ़ावा देगी।
- भूराजनीतिक प्रभाव: इस करार के माध्यम से भारत मध्य एशिया में अपनी भूराजनीतिक उपस्थिति को मजबूत कर सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां चीन और रूस जैसी बाहरी शक्तियाँ सक्रिय हैं।
- अर्थव्यवस्था और विकास: इस परियोजना से जुड़े आर्थिक लाभ और क्षेत्रीय विकास के अवसर भारत की आर्थिक वृद्धि में योगदान करेंगे, और इसे एक प्रमुख ऊर्जा ट्रांजिट हब के रूप में स्थापित कर सकते हैं।
उपसंहार: अश्गाबात करार 2018 भारत के ऊर्जा सुरक्षा, भूराजनीतिक स्थिति, और आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, और यह मध्य एशिया में भारतीय उपस्थिति को बढ़ाने में सहायक होगा।
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पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है, जो यू.एस. के एकाधिकार को चुनौती देता है और एक नई बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की ओर इशारा करता है। चीन ने इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक मोर्चों पर मजबूत किया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Read more
पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है, जो यू.एस. के एकाधिकार को चुनौती देता है और एक नई बहु-ध्रुवीय व्यवस्था की ओर इशारा करता है। चीन ने इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक मोर्चों पर मजबूत किया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से चीन ने पश्चिम एशियाई देशों में बुनियादी ढांचे के विकास और निवेश को बढ़ावा दिया है, जिससे उसकी आर्थिक पैठ गहरी हुई है।
इसके अतिरिक्त, चीन ने क्षेत्रीय संकटों में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश की है, जैसे ईरान-सऊदी अरब संबंधों को सुधारने में, जिससे उसकी कूटनीतिक छवि मजबूत हुई है। चीन की ऊर्जा जरूरतों के लिए पश्चिम एशिया का महत्वपूर्ण होना भी उसे इस क्षेत्र में सक्रिय बनाए रखता है।
दूसरी ओर, यू.एस. का पश्चिम एशिया में प्रभुत्व धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। इराक और अफगानिस्तान में लंबे समय तक चले युद्ध और इस क्षेत्र में अमेरिकी नीतियों की विफलताएँ, जैसे अरब स्प्रिंग के बाद उत्पन्न अस्थिरता, ने अमेरिका की साख को नुकसान पहुँचाया है।
चीन का उदय और यू.एस. के प्रभाव का ह्रास एक बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर संकेत करता है, जहाँ शक्तियों का संतुलन अब एक ही ध्रुव पर केंद्रित नहीं रहेगा। यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जटिलताओं को बढ़ाएगा और क्षेत्रीय शक्तियों को नए विकल्प प्रदान करेगा, जिससे वैश्विक राजनीति की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा।
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