भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम पर टिप्पणी कीजिए और रामसर स्थलों में शामिल अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की भारत की कुछ आर्द्रभूमियों के नाम लिखिए। (250 words) [UPSC 2023]
बायोपाइरेसी (Biopiracy) का अर्थ है प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग और उन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights) के तहत बिना अनुमति के उपयोग करना। विकासशील देशों में यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, खासकर उन देशों में जहाँ पारंपरिक ज्ञान और जैव विविधता की प्रचुरता है।Read more
बायोपाइरेसी (Biopiracy) का अर्थ है प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग और उन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights) के तहत बिना अनुमति के उपयोग करना। विकासशील देशों में यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, खासकर उन देशों में जहाँ पारंपरिक ज्ञान और जैव विविधता की प्रचुरता है।
बायोपाइरेसी की चिंता के कारण:
सांस्कृतिक और आर्थिक शोषण: विकासशील देशों, जैसे भारत, में पारंपरिक समुदायों के पास अनमोल जैविक और चिकित्सा ज्ञान होता है। बायोपाइरेसी के माध्यम से, विदेशी कंपनियाँ इस ज्ञान का उपयोग कर पेटेंट प्राप्त कर लेती हैं, जबकि मूल समुदायों को उचित क्रेडिट या मुआवजा नहीं मिलता। यह उनकी सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है।
वैज्ञानिक और तकनीकी लाभ की हानि: जब विदेशी कंपनियाँ पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करती हैं, तो वे इससे वैज्ञानिक और तकनीकी लाभ प्राप्त करती हैं, जिससे विकासशील देशों को लाभ का हिस्सा नहीं मिलता। इससे पारंपरिक समुदायों का विज्ञान और प्रौद्योगिकी में योगदान मान्यता प्राप्त करने से वंचित रहता है।
पारंपरिक ज्ञान का ह्रास: बायोपाइरेसी पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा और संरक्षण को खतरे में डालती है। जब यह ज्ञान बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत पेटेंट कर लिया जाता है, तो मूल समुदायों को अपने ही ज्ञान का उपयोग करने पर प्रतिबंध लग सकता है।
भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
वैकल्पिक सिस्टम और कानून: भारत ने संपत्ति और जैव विविधता के संरक्षण के लिए उपनिवेशी पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge Digital Library – TKDL) स्थापित किया है। TKDL पारंपरिक भारतीय ज्ञान को डिजिटल रूप में संग्रहित करता है और इसे पेटेंट दावों से बचाने के लिए साक्ष्य प्रदान करता है।
कानूनी और नीतिगत ढांचा: भारत ने नागरिक और जैव विविधता अधिनियम के तहत पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं। इन कानूनों का उद्देश्य बायोपाइरेसी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना और पारंपरिक ज्ञान के अवैध उपयोग को रोकना है।
वैश्विक संधियाँ और समझौते: भारत ने जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD) के तहत वैश्विक स्तर पर बायोपाइरेसी और पारंपरिक ज्ञान की रक्षा के लिए संधियाँ और समझौतों का पालन किया है। ये संधियाँ पारंपरिक ज्ञान के स्वामित्व और लाभ साझा करने की अवधारणाओं को लागू करती हैं।
स्वदेशी समुदायों का सशक्तिकरण: भारत सरकार ने विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से स्वदेशी और स्थानीय समुदायों को अपने पारंपरिक ज्ञान के अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन्हें सशक्त बनाने की कोशिश की है।
इन प्रयासों के माध्यम से, भारत पारंपरिक ज्ञान की रक्षा और बायोपाइरेसी के खिलाफ प्रभावी उपाय कर रहा है, ताकि विकासशील देशों के सांस्कृतिक और वैज्ञानिक योगदान को सुरक्षित रखा जा सके।
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भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम पर टिप्पणी राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP): भारत सरकार ने 1985 में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देशभर में आर्द्रभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण करना है। यह कार्यक्रम आर्द्रभRead more
भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम पर टिप्पणी
राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP):
भारत सरकार ने 1985 में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देशभर में आर्द्रभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण करना है। यह कार्यक्रम आर्द्रभूमियों के महत्व को मान्यता देते हुए उनकी रक्षा और प्रबंधन के लिए विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
मुख्य उद्देश्य:
रामसर स्थलों में शामिल भारत की आर्द्रभूमियाँ:
भारत ने कई आर्द्रभूमियों को रामसर स्थलों के रूप में मान्यता दी है, जो अंतर्राष्ट्रीय महत्व की होती हैं। इनमें शामिल हैं:
हाल की पहल:
हाल ही में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और मूल्यांकन परियोजना की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों की सूची को अद्यतन और सुधारना है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्ययोजना आर्द्रभूमि प्रबंधन को व्यापक पर्यावरणीय नीतियों और कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करती है।
संक्षेप में, राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम भारत की आर्द्रभूमियों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और रामसर स्थलों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियाँ भारत के प्राकृतिक संसाधनों की अमूल्य धरोहर हैं।
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