‘आधारिक संरचना’ के सिद्धांत से प्रारंभ करते हुए, न्यायपालिका ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत एक उन्नतिशील लोकतंत्र के रूप में विकसित करे, एक उच्चतः अग्रलक्षी (प्रोऐक्टिव) भूमिका निभाई है। इस कथन के प्रकाश में, लोकतंत्र के आदर्शों ...
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: समालोचनात्मक परीक्षण राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 का उद्देश्य भारत की उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावसायिक बनाना था। अधिनियम के तहत एक आयोग गठित कियाRead more
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: समालोचनात्मक परीक्षण
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 का उद्देश्य भारत की उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यावसायिक बनाना था। अधिनियम के तहत एक आयोग गठित किया गया जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, और विधायी प्रतिनिधि शामिल थे, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायालय ने तर्क किया कि NJAC अधिनियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को कमजोर करता है। कोर्ट ने कहा कि आयोग में कार्यपालिका की अधिकतम भागीदारी न्यायपालिका के स्वतंत्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकती है, जो संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।
इस निर्णय ने न्यायपालिका की स्वायत्तता की रक्षा की और Collegium प्रणाली को बनाए रखा, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। हालांकि, इस प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर विवाद जारी है।
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'आधारिक संरचना' के सिद्धांत के अंतर्गत, न्यायपालिका ने भारत के लोकतंत्र की संरचना और उसकी मूलभूत मान्यताओं की रक्षा के लिए एक सक्रिय भूमिका निभाई है। इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के मूलभूत ढांचे को किसी भी विधायिका या कार्यपालिका द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता। इस दृष्टिकोण से, न्यायपालिका ने 'नRead more
‘आधारिक संरचना’ के सिद्धांत के अंतर्गत, न्यायपालिका ने भारत के लोकतंत्र की संरचना और उसकी मूलभूत मान्यताओं की रक्षा के लिए एक सक्रिय भूमिका निभाई है। इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के मूलभूत ढांचे को किसी भी विधायिका या कार्यपालिका द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता। इस दृष्टिकोण से, न्यायपालिका ने ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ (Judicial Activism) को अपनाते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जो लोकतंत्र के आदर्शों की प्राप्ति में सहायक रहे हैं।
हाल के समय में, न्यायिक सक्रियतावाद ने कई प्रमुख क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, ‘विवाह के अधिकार’ और ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ पर न्यायालय ने विस्तार से विचार किया है। ‘आधार’ और ‘प्रवासी श्रमिकों के अधिकार’ पर न्यायालय के फैसलों ने सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और असमानताओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
न्यायिक सक्रियतावाद ने सार्वजनिक हित में सरकार की नीतियों पर नजर रखने और संविधान की मूलभूत संरचना की रक्षा करने में योगदान दिया है। हालांकि, इसके साथ ही न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसका हस्तक्षेप विधायिका और कार्यपालिका की स्वायत्तता में हस्तक्षेप न करे, ताकि लोकतंत्र का संतुलन बना रहे।
इस प्रकार, न्यायिक सक्रियतावाद ने भारत के उन्नतिशील लोकतंत्र के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, लेकिन इसके उपयोग में संतुलन और सावधानी की आवश्यकता है।
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