भारत के स्टार्ट-अप परिवेश की उत्कृष्ट प्रगति के बावजूद, देश में डीप टेक स्टार्ट-अप्स विकसित करने की तत्काल आवश्यकता को कम करके नहीं आंका जा जा सकता है। स्पष्ट कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास 1. प्रारंभिक विकास और प्रमुख मील के पत्थर: **1. स्थापना और प्रारंभिक कदम: 1948: भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) की स्थापना के साथ नाभिकीय विज्ञान में भारत की यात्रा शुरू हुई। 1962: अप्सरा, भारत का पहला स्वदेशी परमाणु रियेक्टर, बंबई परमाणुRead more
भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास
1. प्रारंभिक विकास और प्रमुख मील के पत्थर:
**1. स्थापना और प्रारंभिक कदम:
- 1948: भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) की स्थापना के साथ नाभिकीय विज्ञान में भारत की यात्रा शुरू हुई।
- 1962: अप्सरा, भारत का पहला स्वदेशी परमाणु रियेक्टर, बंबई परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में चालू हुआ।
**2. नाभिकीय प्रौद्योगिकी में उन्नति:
- 1974: भारत ने ऑपरेशन स्माइलींग बुद्धा के तहत अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जो नाभिकीय प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
- 1980s: भारत ने तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत की, जो थोरियम पर आधारित था, भारत के समृद्ध थोरियम संसाधनों का लाभ उठाने के लिए।
**3. हालिया विकास:
- 2008: भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और परमाणु तकनीक और ईंधन तक पहुंच के अवसर प्रदान किए।
- 2010s: कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र जैसी नई परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं चालू की गईं, जो 2013 से परिचालन में हैं।
भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम के लाभ
**1. ईंधन दक्षता में सुधार:
- पुनरावर्तन और स्थिरता: तीव्र प्रजनक रियेक्टर (FBRs) प्लूटोनियम और थोरियम का उपयोग करते हैं, जो अधिक फिसाइल सामग्री उत्पन्न करते हैं। यह नाभिकीय ईंधन संसाधनों की दीर्घकालिक उपलब्धता को बढ़ाता है।
**2. थोरियम का उपयोग:
- दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा: भारत के FBR कार्यक्रम ने थोरियम के समृद्ध भंडार का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित किया है। प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रियेक्टर (PFBR), जो कपालककम में निर्माणाधीन है, भारत को यूरेनियम आधारित सिस्टम से थोरियम आधारित सिस्टम की ओर ले जाएगा।
**3. रेडियोधर्मी कचरे में कमी:
- कचरा प्रबंधन: FBRs पारंपरिक रियेक्टर्स की तुलना में कम दीर्घकालिक रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न करते हैं, जिससे बेहतर कचरा प्रबंधन और स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
**4. ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि:
- ऊर्जा घनत्व: FBRs अपेक्षाकृत कम ईंधन मात्रा से उच्च ऊर्जा उत्पादन की पेशकश करते हैं, जो एक मजबूत और कुशल ऊर्जा उत्पादन प्रणाली में योगदान करता है।
हालिया उदाहरण:
- कपालककम प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रियेक्टर (PFBR): PFBR भारत के FBR कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो व्यापक पैमाने पर फास्ट ब्रीडर रियेक्टरों की तकनीक को प्रदर्शित और उन्नत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
निष्कर्ष:
- भारत ने नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण प्रगति की है, प्रारंभिक अनुसंधान से लेकर एक मजबूत परमाणु ऊर्जा अवसंरचना की स्थापना तक। तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम, जो ईंधन दक्षता में सुधार, थोरियम का उपयोग, और कचरे में कमी की संभावनाओं के साथ, भारत के लिए दीर्घकालिक और सतत नाभिकीय ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत में स्टार्ट-अप परिवेश की उत्कृष्ट प्रगति के बावजूद, डीप टेक स्टार्ट-अप्स की विकास की तत्काल आवश्यकता को कम करके नहीं आंका जा सकता। डीप टेक स्टार्ट-अप्स, जो अत्याधुनिक तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, और क्वांटम कंप्यूटिंग पर आधारित होते हैं, देश की प्रतिस्पर्धात्मकता और वैश्विक नेतRead more
भारत में स्टार्ट-अप परिवेश की उत्कृष्ट प्रगति के बावजूद, डीप टेक स्टार्ट-अप्स की विकास की तत्काल आवश्यकता को कम करके नहीं आंका जा सकता। डीप टेक स्टार्ट-अप्स, जो अत्याधुनिक तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, और क्वांटम कंप्यूटिंग पर आधारित होते हैं, देश की प्रतिस्पर्धात्मकता और वैश्विक नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इन स्टार्ट-अप्स के अभाव में, भारत उन्नत तकनीक के क्षेत्र में पिछड़ सकता है और अपनी वैश्विक टेक्नोलॉजी सृजन की क्षमता खो सकता है। डीप टेक स्टार्ट-अप्स उच्च रिसर्च और विकास निवेश की मांग करते हैं, जिससे नई तकनीकों के आविष्कार और उनका व्यावसायिक उपयोग संभव हो सकता है।
इसके अलावा, इन स्टार्ट-अप्स से उभरने वाली नवाचारशील तकनीकें देश की सुरक्षा, स्वास्थ्य और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए, इनकी वृद्धि को बढ़ावा देना और उनके विकास में निवेश करना अत्यंत आवश्यक है।
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