भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइए जब सामान्यतः यह होता है तथा उन अवसरों को भी जब यह नहीं किया जा सकता, और इसके कारण भी बताइए। (250 ...
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत 1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: 'संवैधानिक नैतिकता' संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए। 2. न्यायिRead more
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत
1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: ‘संवैधानिक नैतिकता’ संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए।
2. न्यायिक निर्णयों की प्रासंगिकता
के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता को मूलभूत अधिकार मानते हुए कहा कि संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): कोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों को अपराधमुक्त किया, यह बताते हुए कि संवैधानिक नैतिकता समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
3. निष्कर्ष: संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों की सुरक्षा और न्यायिक फैसलों में उनके प्रभाव को सुनिश्चित करती है, जो न्याय और समानता को बढ़ावा देती है।
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भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है। संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर: कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकRead more
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है।
संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर:
कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, लेकिन राज्यसभा द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है या राज्यसभा इसमें 14 दिनों के भीतर कोई निर्णय नहीं लेती है, तब संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है। यह विधेयक की प्रक्रिया में गतिरोध को समाप्त करने के लिए किया जाता है।
विधेयक की पुनरावृत्ति: यदि राज्यसभा एक विधेयक को लोकसभा द्वारा भेजे जाने के बाद 14 दिनों के भीतर पास नहीं करती या वापस नहीं भेजती है, तो लोकसभा संयुक्त सत्र की मांग कर सकती है।
संयुक्त सत्र नहीं बुलाए जा सकते:
मनी बिल: मनी बिलों पर संयुक्त सत्र नहीं बुलाया जा सकता। मनी बिल पर राज्यसभा केवल सिफारिशें कर सकती है, और लोकसभा को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है। राज्यसभा को मनी बिल को 14 दिनों के भीतर वापस करना होता है, और लोकसभा की अनुमति से ही इसे पारित किया जा सकता है।
अनुदान विधेयक: अनुदान विधेयक, जो सरकारी खर्च से संबंधित होते हैं, संयुक्त सत्र का हिस्सा नहीं हो सकते। इन पर लोकसभा का विशेष अधिकार होता है।
संविधान संशोधन विधेयक: संविधान संशोधन विधेयक भी संयुक्त सत्र के दायरे में नहीं आते। इन्हें संसद में दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है और इसके साथ-साथ कुछ राज्यों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
निष्कर्ष
See lessसंविधान के अनुसार, संयुक्त सत्र विशेष परिस्थितियों में बुलाया जाता है, जैसे कि विधेयकों पर गतिरोध को समाप्त करने के लिए। मनी बिल, अनुदान विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक जैसे विशेष मामलों में संयुक्त सत्र का प्रावधान नहीं होता, ताकि प्रत्येक सदन की विशेष भूमिका और प्रक्रियाओं की रक्षा की जा सके।