भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) में संवैधानिक रूप से सामंजस्य स्थापित करना एक कठिन कार्य रहा है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से चर्चा कीजिए। (150 शब्दों ...
आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत क्या है? **1. परिभाषा और उत्पत्ति 'आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत' भारतीय न्यायपालिका द्वारा स्थापित एक न्यायिक सिद्धांत है, जिसका तात्पर्य है कि संविधान के कुछ मूलभूत तत्वों को किसी भी संशोधन के द्वारा नष्ट या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत केसवानंद भारती मामले (1973)Read more
आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत क्या है?
**1. परिभाषा और उत्पत्ति
‘आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत’ भारतीय न्यायपालिका द्वारा स्थापित एक न्यायिक सिद्धांत है, जिसका तात्पर्य है कि संविधान के कुछ मूलभूत तत्वों को किसी भी संशोधन के द्वारा नष्ट या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत केसवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय से उत्पन्न हुआ, जहाँ कोर्ट ने निर्णय दिया कि संसद को संविधान को संशोधित करने की व्यापक शक्ति है, परंतु वह संविधान के “आधारभूत ढाँचे” को बदल नहीं सकती।
**2. सिद्धांत के मुख्य तत्व
इस सिद्धांत के तहत, संविधान के कुछ मूलभूत तत्व होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखा जाता है, जैसे:
- लोकतंत्र
- कानूनी राज्य (Rule of Law)
- शक्ति का पृथक्करण
- न्यायिक समीक्षा
- संघवाद
- मूल अधिकार
भारतीय संविधान के लिए महत्त्व
**1. मूलभूत मूल्यों की सुरक्षा
यह सिद्धांत भारतीय संविधान के मूलभूत मूल्यों और विचारधारा की सुरक्षा करता है। उदाहरण के लिए, गोलकनाथ मामले (1967) और केसवानंद भारती मामले (1973) में यह सिद्धांत लोकतांत्रिक सिद्धांतों और कानूनी राज्य को बनाए रखने में सहायक रहा है।
**2. संसदीय शक्तियों की सीमा
इस सिद्धांत के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय शक्तियों का संतुलन बनाए रखा है और सुनिश्चित किया है कि संविधान में कोई भी संशोधन मूलभूत तत्वों को कमजोर नहीं कर सकता। इससे संसदीय शक्ति की पूर्णता को सीमित किया गया है, जैसे कि एस.आर. बोम्मई मामला (1994) में संघीयता की सुरक्षा की गई।
**3. न्यायिक स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा
यह सिद्धांत न्यायिक स्वतंत्रता और मूल अधिकारों की रक्षा करता है। के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017) मामले में, कोर्ट ने यह माना कि गोपनीयता का अधिकार भी संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा है, जिससे मूल अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया।
निष्कर्ष
‘आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत’ भारतीय संविधान की मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संविधान की संरचना और लोकतांत्रिक संस्थाओं को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और संविधान के मूलभूत तत्वों को किसी भी संभावित संशोधन से सुरक्षित करता है।
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भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। सुप्रीम कोर्ट कRead more
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के Kesavananda Bharati (1973) मामले में, कोर्ट ने तय किया कि संविधान के मूल ढांचे को संरक्षित रखते हुए DPSPs को लागू किया जा सकता है। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि यदि DPSPs का कार्यान्वयन मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो मूल अधिकारों की प्राथमिकता होगी।
Minerva Mills (1980) केस में, कोर्ट ने DPSPs और मूल अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया, यह मानते हुए कि संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दोनों की समान महत्वपूर्ण भूमिका है। इन निर्णयों ने भारतीय संविधान के मूल अधिकारों और DPSPs के बीच संतुलन स्थापित किया है।
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