69वें संविधान संशोधन अधिनियम के उन अत्यावश्यक तत्त्वों और विषमताओं, यदि कोई हों, पर चर्चा कीजिए, जिन्होंने दिल्ली के प्रशासन में निर्वाचित प्रतिनिधियों और उप-राज्यपाल के बीच हाल में समाचारों में आए मतभेदों को पैदा कर दिया है। क्या आपके ...
संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016, वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए किया गया था, जो भारतीय कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इसके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं: एकल कर प्रणाली: GST एक अप्रत्यक्ष कर है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न करों को समाहित कRead more
संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016, वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए किया गया था, जो भारतीय कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इसके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं:
एकल कर प्रणाली: GST एक अप्रत्यक्ष कर है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न करों को समाहित करता है, जैसे कि वैट, सेवा कर, एक्साइज ड्यूटी, और अन्य उपकर। इससे विभिन्न स्तरों पर लगने वाले करों का समेकन होता है।
डुअल GST मॉडल: भारत में केंद्र और राज्यों के लिए डुअल GST मॉडल अपनाया गया है, जिसमें केंद्र द्वारा केंद्रीय GST (CGST) और राज्यों द्वारा राज्य GST (SGST) लगाया जाता है। अंतर्राज्यीय लेन-देन पर इंटीग्रेटेड GST (IGST) लागू होता है।
इनपुट टैक्स क्रेडिट: GST इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति देता है, जिससे उत्पादन और वितरण के प्रत्येक चरण पर केवल मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है, जिससे करों के सोपानिक प्रभाव (Cascading Effect) को समाप्त किया जा सकता है।
संघीय कर परिषद: GST परिषद एक संघीय निकाय है जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह परिषद GST से संबंधित नीतियों, दरों, और संरचना पर निर्णय लेती है।
करों के सोपानिक प्रभाव और साझा राष्ट्रीय बाजार:
GST करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त करने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। पूर्व में, एक ही वस्तु पर कई स्तरों पर कर लगाया जाता था, जिससे अंतिम उपभोक्ता पर कर का बोझ बढ़ जाता था। GST के तहत, केवल मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है, जिससे करों का दोहराव खत्म हो जाता है और वस्तुएँ सस्ती होती हैं।
इसके अलावा, GST ने एक साझा राष्ट्रीय बाजार को भी साकार किया है। राज्यों के बीच कर अवरोधों का समाप्त होना, कर की एकरूप दरें, और सीमाओं पर चेकपोस्टों का हटना इसके प्रमाण हैं। इससे व्यापार की सुगमता बढ़ी है और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिला है।
हालांकि, GST के लागू होने के शुरुआती चरण में कुछ चुनौतियाँ रहीं, जैसे कि दरों की जटिलता और प्रारंभिक अनुपालन समस्याएँ। फिर भी, इसे एक प्रभावकारी कर सुधार के रूप में देखा जा सकता है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत और सशक्त किया है।
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69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 ने दिल्ली को एक विशेष दर्जा प्रदान किया और इसमें एक विधायिका और उप-राज्यपाल (LG) की नियुक्ति की व्यवस्था की। इसके अंतर्गत: अत्यावश्यक तत्त्व: विधायिका की स्थापना: इस अधिनियम के तहत, दिल्ली को एक विधायिका प्राप्त हुई, जो राज्य सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों पर काRead more
69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 ने दिल्ली को एक विशेष दर्जा प्रदान किया और इसमें एक विधायिका और उप-राज्यपाल (LG) की नियुक्ति की व्यवस्था की। इसके अंतर्गत:
अत्यावश्यक तत्त्व:
विधायिका की स्थापना: इस अधिनियम के तहत, दिल्ली को एक विधायिका प्राप्त हुई, जो राज्य सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों पर कानून बना सकती है जो संसद के विशिष्ट अधिकार में नहीं हैं।
उप-राज्यपाल की भूमिका: उप-राज्यपाल को दिल्ली का प्रशासक नियुक्त किया गया, जो कानून व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर नियंत्रण रखते हैं।
शक्ति विभाजन: दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों और उप-राज्यपाल के शक्तियों में स्पष्ट विभाजन किया गया, ताकि दैनिक प्रशासन दिल्ली सरकार देख सके, जबकि उप-राज्यपाल केंद्रीय नियंत्रण बनाए रखे।
विषमताएँ और मतभेद:
शक्ति का ओवरलैप: दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल के बीच शक्तियों का ओवरलैप, विशेष रूप से कानून व्यवस्था और भूमि मामलों में, अक्सर विवाद का कारण बनता है।
प्रशासनिक संघर्ष: उप-राज्यपाल की हस्तक्षेप और दिल्ली सरकार की स्वायत्तता के बीच टकराव ने प्रशासनिक कार्यों और नीतियों पर प्रभाव डाला है।
न्यायिक हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय ने इन विवादों के समाधान के लिए हस्तक्षेप किया, लेकिन इसने स्थिति की जटिलता और विवादों को बढ़ा दिया है।
भारतीय परिसंघीय राजनीति पर प्रभाव:
See lessये मतभेद भारतीय परिसंघीय राजनीति में नई प्रवृत्तियों को दर्शाते हैं। यह संकेत करता है कि केंद्रीय और राज्य अथवा क्षेत्रीय सरकारों के बीच शक्ति संतुलन और स्वायत्तता की समस्याएँ बढ़ सकती हैं। इससे भारतीय संघीय संरचना की पुनरावलोकन और बेहतर सुसंगतता की आवश्यकता उत्पन्न हो सकती है, ताकि इस तरह के संघर्षों को प्रभावी ढंग से हल किया जा सके।