मंत्रिमंडल का आकार उतना होना चाहिए कि जितना सरकारी कार्य सही ठहराता हो और उसको उतना बड़ा होना चाहिए कि जितने को प्रधानमंत्री एक टीम के रूप में संचालन कर सकता हो। उसके बाद सरकार की दक्षता किस सीमा तक ...
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है। अन्तर्विरोध और विरोधाभास: नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनRead more
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है।
अन्तर्विरोध और विरोधाभास:
नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनौती बन गई हैं। लेकिन इन नई पार्टियों द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ और नीतियाँ अक्सर पुरानी पार्टियों के समान होती हैं, जिससे पुराने और नए में निरंतरता दिखती है।
क्षेत्रीय पार्टियों की वृद्धि और राष्ट्रीय एकता: क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव स्थानीय मुद्दों और पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कभी-कभी राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे सकता है। यह विरोधाभास दिखाता है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के खिलाफ हो सकते हैं।
बढ़ती चुनावी भागीदारी और घटती विश्वास: चुनावी भागीदारी में वृद्धि के बावजूद, राजनीतिक संस्थानों और प्रतिनिधियों पर विश्वास में कमी देखी जा रही है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि अधिक भागीदारी का मतलब हमेशा बेहतर संतोषजनक राजनीति नहीं होता।
गठबंधन राजनीति और मजबूत जनादेश: गठबंधन राजनीति का चलन बढ़ा है, जिससे अस्थिर और टुकड़ों में बंटी सरकारें बनती हैं। साथ ही, लोगों की मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की चाहत बढ़ी है, जो मजबूत सरकार और गठबंधन राजनीति के बीच तनाव को दिखाता है.
विचारधारा में बदलाव और नीतिगत निरंतरता: राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर अपने विचारधाराओं को चुनावी लाभ के लिए बदलती हैं, लेकिन नीतियों में लगातारता बनी रहती है। यह विरोधाभास विचारधारा और व्यवहार में भिन्नता को दर्शाता है.
निष्कर्ष:
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली में परिवर्तन के दौर की जटिलताएँ पुरानी और नई ताकतों के बीच संघर्ष, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों की टकराहट, और विचारधारा व व्यवहार के बीच के अंतर को उजागर करती हैं। यह व्यवस्था दर्शाती है कि परिवर्तन और निरंतरता दोनों ही भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य का हिस्सा हैं।
मंत्रिमंडल का आकार और सरकार की दक्षता मंत्रिमंडल का आकार सरकार की दक्षता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। एक बड़े मंत्रिमंडल की संरचना और एक छोटे मंत्रिमंडल की संरचना, दोनों के बीच प्रभावशीलता का संबंध विभिन्न पहलुओं से जुड़ा होता है। 1. मंत्रिमंडल का बड़ा आकार: एक बड़े मंत्रिमंडल में अधिक प्रतिनिधित्Read more
मंत्रिमंडल का आकार और सरकार की दक्षता
मंत्रिमंडल का आकार सरकार की दक्षता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। एक बड़े मंत्रिमंडल की संरचना और एक छोटे मंत्रिमंडल की संरचना, दोनों के बीच प्रभावशीलता का संबंध विभिन्न पहलुओं से जुड़ा होता है।
1. मंत्रिमंडल का बड़ा आकार: एक बड़े मंत्रिमंडल में अधिक प्रतिनिधित्व और विशेषज्ञता हो सकती है, जो नीति निर्माण में विविधता और व्यापक दृष्टिकोण ला सकती है। हालाँकि, इससे ब्यूरोक्रेटिक जटिलताएँ और निर्णय प्रक्रिया में विलंब हो सकता है। उदाहरण के लिए, भारत की 2019 की मोदी सरकार ने बड़े मंत्रिमंडल के साथ विविधता और अनुभव की पूर्ति की, लेकिन इसके साथ प्रशासनिक जटिलताओं और फैसला लेने में देरी की समस्याएँ भी सामने आईं।
2. मंत्रिमंडल का छोटा आकार: छोटे मंत्रिमंडल के साथ, निर्णय प्रक्रिया अधिक तेज और स्पष्ट हो सकती है, जिससे स्विफ्ट पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन सुनिश्चित होता है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने एक संक्षिप्त मंत्रिमंडल का गठन किया, जिससे नीति कार्यान्वयन में सुधार हुआ, लेकिन यह प्रतिनिधित्व की कमी और सीमित विशेषज्ञता की समस्या भी उत्पन्न कर सकता है।
3. संतुलित दृष्टिकोण: सरकारी कार्यों और प्रधानमंत्री की प्रबंधन क्षमता के अनुसार मंत्रिमंडल का आकार संतुलित होना चाहिए। मंत्रिमंडल का आकार इतना होना चाहिए कि वह आवश्यक प्रतिनिधित्व और विशेषज्ञता प्रदान कर सके, जबकि प्रभावी प्रबंधन और निर्णय लेने की क्षमता को भी बनाए रखे।
निष्कर्ष: सरकार की दक्षता मंत्रिमंडल के आकार से प्रतिलोमतः संबंधित होती है, लेकिन यह केवल एक पहलू है। मंत्रिमंडल का आकार सही ढंग से प्रबंधन, नीति कार्यान्वयन की क्षमता, और संसाधनों के कुशल उपयोग के साथ संतुलित होना चाहिए।
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