“महान्यायवादी भारत की सरकार का मुख्य विधि सलाहकार और वकील होता है।” चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है। अन्तर्विरोध और विरोधाभास: नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनRead more
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है।
अन्तर्विरोध और विरोधाभास:
नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनौती बन गई हैं। लेकिन इन नई पार्टियों द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ और नीतियाँ अक्सर पुरानी पार्टियों के समान होती हैं, जिससे पुराने और नए में निरंतरता दिखती है।
क्षेत्रीय पार्टियों की वृद्धि और राष्ट्रीय एकता: क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव स्थानीय मुद्दों और पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कभी-कभी राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे सकता है। यह विरोधाभास दिखाता है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के खिलाफ हो सकते हैं।
बढ़ती चुनावी भागीदारी और घटती विश्वास: चुनावी भागीदारी में वृद्धि के बावजूद, राजनीतिक संस्थानों और प्रतिनिधियों पर विश्वास में कमी देखी जा रही है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि अधिक भागीदारी का मतलब हमेशा बेहतर संतोषजनक राजनीति नहीं होता।
गठबंधन राजनीति और मजबूत जनादेश: गठबंधन राजनीति का चलन बढ़ा है, जिससे अस्थिर और टुकड़ों में बंटी सरकारें बनती हैं। साथ ही, लोगों की मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की चाहत बढ़ी है, जो मजबूत सरकार और गठबंधन राजनीति के बीच तनाव को दिखाता है.
विचारधारा में बदलाव और नीतिगत निरंतरता: राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर अपने विचारधाराओं को चुनावी लाभ के लिए बदलती हैं, लेकिन नीतियों में लगातारता बनी रहती है। यह विरोधाभास विचारधारा और व्यवहार में भिन्नता को दर्शाता है.
निष्कर्ष:
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली में परिवर्तन के दौर की जटिलताएँ पुरानी और नई ताकतों के बीच संघर्ष, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों की टकराहट, और विचारधारा व व्यवहार के बीच के अंतर को उजागर करती हैं। यह व्यवस्था दर्शाती है कि परिवर्तन और निरंतरता दोनों ही भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य का हिस्सा हैं।
महान्यायवादी (Attorney General) भारत की सरकार का मुख्य विधि सलाहकार और वकील होता है। इस पद की प्रमुख जिम्मेदारियाँ और भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं: 1. विधि सलाहकार की भूमिका: महान्यायवादी भारत सरकार को विधिक सलाह प्रदान करता है और कानूनी मामलों में सलाह देने की जिम्मेदारी निभाता है। यह पद विशेष रूप से संRead more
महान्यायवादी (Attorney General) भारत की सरकार का मुख्य विधि सलाहकार और वकील होता है। इस पद की प्रमुख जिम्मेदारियाँ और भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं:
1. विधि सलाहकार की भूमिका:
महान्यायवादी भारत सरकार को विधिक सलाह प्रदान करता है और कानूनी मामलों में सलाह देने की जिम्मेदारी निभाता है। यह पद विशेष रूप से संवैधानिक और प्रशासनिक मुद्दों पर सरकार की सहायता करता है, और उसकी सलाह सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
2. कानूनी प्रतिनिधित्व:
महान्यायवादी सरकार के पक्ष में न्यायालयों में प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों में सरकार की ओर से दलीलें प्रस्तुत करता है और सरकार के कानूनी मामलों में उसके हितों का संरक्षण करता है।
3. समीक्षा और सलाह:
महान्यायवादी विधायी प्रस्तावों और सरकारी निर्णयों की कानूनी समीक्षा करता है और सरकार को विधिक दृष्टिकोण से मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसके तहत, वह विभिन्न विधायी विधेयकों, आदेशों और नीतियों की कानूनी वैधता की समीक्षा करता है।
4. स्वतंत्रता और निष्पक्षता:
महान्यायवादी का कार्य स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए, हालांकि यह भी महत्वपूर्ण है कि वह सरकार के प्रति निष्ठावान रहे। यह संतुलन बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है, ताकि कानूनी सलाह और प्रतिनिधित्व में निष्पक्षता और सरकार के दृष्टिकोण का उचित प्रतिनिधित्व हो।
5. अस्थायी स्थिति:
महान्यायवादी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और उसकी नियुक्ति सरकार की इच्छा के आधार पर होती है। यह पद अस्थायी होता है और समय-समय पर बदला जा सकता है।
महान्यायवादी की ये भूमिकाएँ भारत की सरकार के कानूनी प्रबंधन में केंद्रीय महत्व रखती हैं। यह पद न केवल कानूनी सलाह प्रदान करता है, बल्कि सरकार की कानूनी स्थिति और नीति को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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