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यद्यपि 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) पहले से व्यापार प्रकाशन और सामान्य मनोरंजन चैनल जैसे समाचार-इतर मीडिया में अनुमत है, तथापि सरकार काफी कुछ समय से समाचार मीडिया में वर्धित एफ.डी.आई. के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। एफ.डी.आई. में बढ़ोतरी क्या अंतर पैदा करेगी ? समालोचनापूर्वक इसके पक्ष-विपक्ष का मूल्यांकन कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
समाचार मीडिया में वर्धित एफ.डी.आई. का प्रभाव परिचय वर्तमान में, व्यापार प्रकाशन और सामान्य मनोरंजन चैनल जैसे समाचार-इतर मीडिया में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) की अनुमति है। हालांकि, सरकार समाचार मीडिया में एफ.डी.आई. बढ़ाने पर विचार कर रही है, जिससे कई संभावित बदलाव हो सकते हैं। एफRead more
समाचार मीडिया में वर्धित एफ.डी.आई. का प्रभाव
परिचय
वर्तमान में, व्यापार प्रकाशन और सामान्य मनोरंजन चैनल जैसे समाचार-इतर मीडिया में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) की अनुमति है। हालांकि, सरकार समाचार मीडिया में एफ.डी.आई. बढ़ाने पर विचार कर रही है, जिससे कई संभावित बदलाव हो सकते हैं।
एफ.डी.आई. में बढ़ोतरी के पक्ष
एफ.डी.आई. में बढ़ोतरी के विपक्ष
निष्कर्ष
समाचार मीडिया में एफ.डी.आई. की बढ़ोतरी वित्तीय संसाधन और वैश्विक मानकों को बढ़ा सकती है, लेकिन इसके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा, संपादकीय स्वायत्तता, और सांस्कृतिक विविधता पर प्रभाव के खतरे भी हो सकते हैं। संतुलित दृष्टिकोण और उचित नियामक ढांचे के साथ इन पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है।
See lessमंत्रिमंडल का आकार उतना होना चाहिए कि जितना सरकारी कार्य सही ठहराता हो और उसको उतना बड़ा होना चाहिए कि जितने को प्रधानमंत्री एक टीम के रूप में संचालन कर सकता हो। उसके बाद सरकार की दक्षता किस सीमा तक मंत्रिमंडल के आकार से प्रतिलोमतः संबंधित है ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
मंत्रिमंडल का आकार और सरकार की दक्षता मंत्रिमंडल का आकार सरकार की दक्षता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। एक बड़े मंत्रिमंडल की संरचना और एक छोटे मंत्रिमंडल की संरचना, दोनों के बीच प्रभावशीलता का संबंध विभिन्न पहलुओं से जुड़ा होता है। 1. मंत्रिमंडल का बड़ा आकार: एक बड़े मंत्रिमंडल में अधिक प्रतिनिधित्Read more
मंत्रिमंडल का आकार और सरकार की दक्षता
मंत्रिमंडल का आकार सरकार की दक्षता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। एक बड़े मंत्रिमंडल की संरचना और एक छोटे मंत्रिमंडल की संरचना, दोनों के बीच प्रभावशीलता का संबंध विभिन्न पहलुओं से जुड़ा होता है।
1. मंत्रिमंडल का बड़ा आकार: एक बड़े मंत्रिमंडल में अधिक प्रतिनिधित्व और विशेषज्ञता हो सकती है, जो नीति निर्माण में विविधता और व्यापक दृष्टिकोण ला सकती है। हालाँकि, इससे ब्यूरोक्रेटिक जटिलताएँ और निर्णय प्रक्रिया में विलंब हो सकता है। उदाहरण के लिए, भारत की 2019 की मोदी सरकार ने बड़े मंत्रिमंडल के साथ विविधता और अनुभव की पूर्ति की, लेकिन इसके साथ प्रशासनिक जटिलताओं और फैसला लेने में देरी की समस्याएँ भी सामने आईं।
2. मंत्रिमंडल का छोटा आकार: छोटे मंत्रिमंडल के साथ, निर्णय प्रक्रिया अधिक तेज और स्पष्ट हो सकती है, जिससे स्विफ्ट पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन सुनिश्चित होता है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने एक संक्षिप्त मंत्रिमंडल का गठन किया, जिससे नीति कार्यान्वयन में सुधार हुआ, लेकिन यह प्रतिनिधित्व की कमी और सीमित विशेषज्ञता की समस्या भी उत्पन्न कर सकता है।
3. संतुलित दृष्टिकोण: सरकारी कार्यों और प्रधानमंत्री की प्रबंधन क्षमता के अनुसार मंत्रिमंडल का आकार संतुलित होना चाहिए। मंत्रिमंडल का आकार इतना होना चाहिए कि वह आवश्यक प्रतिनिधित्व और विशेषज्ञता प्रदान कर सके, जबकि प्रभावी प्रबंधन और निर्णय लेने की क्षमता को भी बनाए रखे।
निष्कर्ष: सरकार की दक्षता मंत्रिमंडल के आकार से प्रतिलोमतः संबंधित होती है, लेकिन यह केवल एक पहलू है। मंत्रिमंडल का आकार सही ढंग से प्रबंधन, नीति कार्यान्वयन की क्षमता, और संसाधनों के कुशल उपयोग के साथ संतुलित होना चाहिए।
See lessमृत्यु दंडादेशों के लघुकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने / अस्वीकार करने के लिए एक समय सीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए ? विश्लेषण कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
राष्ट्रपति द्वारा मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण (कम्प्यूटेशन) में विलंब अक्सर न्याय प्रत्याख्यान के रूप में आलोचना का विषय बनता है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए एक विशेष समय सीमा का उल्लेख होना चाहिए। समय सीमा के पक्Read more
राष्ट्रपति द्वारा मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण (कम्प्यूटेशन) में विलंब अक्सर न्याय प्रत्याख्यान के रूप में आलोचना का विषय बनता है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए एक विशेष समय सीमा का उल्लेख होना चाहिए।
समय सीमा के पक्ष में तर्क:
समय सीमा के विपक्ष में तर्क:
निष्कर्ष:
समय सीमा की आवश्यकता और उसकी उचितता का निर्धारण करते समय मामलों की जटिलता और न्याय की गुणवत्ता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। एक संभावित समाधान यह हो सकता है कि एक उचित और लचीली समय सीमा तय की जाए, जो त्वरित निर्णय सुनिश्चित करे लेकिन साथ ही उचित विचार-विमर्श की सुविधा भी प्रदान करे।
See lessDiscuss the possible factors that inhibit India from enacting for its citizens a uniform civil code as provided for in the Directive Principles of State Policy. (200 words) [UPSC 2015]
The enactment of a Uniform Civil Code (UCC) in India, as envisioned under the Directive Principles of State Policy, faces several inhibiting factors: Diverse Religious Practices: India’s diverse population practices various personal laws based on religion, including Hindu, Muslim, and Christian persRead more
The enactment of a Uniform Civil Code (UCC) in India, as envisioned under the Directive Principles of State Policy, faces several inhibiting factors:
Diverse Religious Practices: India’s diverse population practices various personal laws based on religion, including Hindu, Muslim, and Christian personal laws. Implementing a UCC would require harmonizing these laws, which could face resistance from communities wishing to preserve their traditional practices.
Political Sensitivity: The UCC is a politically sensitive issue. Political parties may avoid pursuing a UCC due to the fear of losing support from particular voter bases who identify strongly with their personal laws.
Religious and Cultural Sentiments: Many communities view their personal laws as integral to their identity and heritage. There is apprehension that a uniform code might dilute or undermine these cultural and religious traditions.
Legal and Logistical Challenges: Drafting a uniform code that accommodates the diverse needs and practices of all communities is legally complex. It requires extensive consultation and consensus-building, which is challenging in a pluralistic society.
Lack of Consensus: There is no broad consensus among political leaders, religious groups, and the public on what a UCC should entail, making it difficult to pass and implement.
These factors contribute to the delay in enacting a UCC, despite its promise to ensure equal rights for all citizens.
See less"भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली परिवर्तन के ऐसे दौर से गुज़र रही है, जो अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा प्रतीत होता है।" चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है। अन्तर्विरोध और विरोधाभास: नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनRead more
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है।
अन्तर्विरोध और विरोधाभास:
नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनौती बन गई हैं। लेकिन इन नई पार्टियों द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ और नीतियाँ अक्सर पुरानी पार्टियों के समान होती हैं, जिससे पुराने और नए में निरंतरता दिखती है।
क्षेत्रीय पार्टियों की वृद्धि और राष्ट्रीय एकता: क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव स्थानीय मुद्दों और पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कभी-कभी राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे सकता है। यह विरोधाभास दिखाता है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के खिलाफ हो सकते हैं।
बढ़ती चुनावी भागीदारी और घटती विश्वास: चुनावी भागीदारी में वृद्धि के बावजूद, राजनीतिक संस्थानों और प्रतिनिधियों पर विश्वास में कमी देखी जा रही है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि अधिक भागीदारी का मतलब हमेशा बेहतर संतोषजनक राजनीति नहीं होता।
गठबंधन राजनीति और मजबूत जनादेश: गठबंधन राजनीति का चलन बढ़ा है, जिससे अस्थिर और टुकड़ों में बंटी सरकारें बनती हैं। साथ ही, लोगों की मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की चाहत बढ़ी है, जो मजबूत सरकार और गठबंधन राजनीति के बीच तनाव को दिखाता है.
विचारधारा में बदलाव और नीतिगत निरंतरता: राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर अपने विचारधाराओं को चुनावी लाभ के लिए बदलती हैं, लेकिन नीतियों में लगातारता बनी रहती है। यह विरोधाभास विचारधारा और व्यवहार में भिन्नता को दर्शाता है.
निष्कर्ष:
See lessभारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली में परिवर्तन के दौर की जटिलताएँ पुरानी और नई ताकतों के बीच संघर्ष, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों की टकराहट, और विचारधारा व व्यवहार के बीच के अंतर को उजागर करती हैं। यह व्यवस्था दर्शाती है कि परिवर्तन और निरंतरता दोनों ही भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य का हिस्सा हैं।
“महान्यायवादी भारत की सरकार का मुख्य विधि सलाहकार और वकील होता है।" चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
महान्यायवादी (Attorney General) भारत की सरकार का मुख्य विधि सलाहकार और वकील होता है। इस पद की प्रमुख जिम्मेदारियाँ और भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं: 1. विधि सलाहकार की भूमिका: महान्यायवादी भारत सरकार को विधिक सलाह प्रदान करता है और कानूनी मामलों में सलाह देने की जिम्मेदारी निभाता है। यह पद विशेष रूप से संRead more
महान्यायवादी (Attorney General) भारत की सरकार का मुख्य विधि सलाहकार और वकील होता है। इस पद की प्रमुख जिम्मेदारियाँ और भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं:
1. विधि सलाहकार की भूमिका:
महान्यायवादी भारत सरकार को विधिक सलाह प्रदान करता है और कानूनी मामलों में सलाह देने की जिम्मेदारी निभाता है। यह पद विशेष रूप से संवैधानिक और प्रशासनिक मुद्दों पर सरकार की सहायता करता है, और उसकी सलाह सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
2. कानूनी प्रतिनिधित्व:
महान्यायवादी सरकार के पक्ष में न्यायालयों में प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों में सरकार की ओर से दलीलें प्रस्तुत करता है और सरकार के कानूनी मामलों में उसके हितों का संरक्षण करता है।
3. समीक्षा और सलाह:
महान्यायवादी विधायी प्रस्तावों और सरकारी निर्णयों की कानूनी समीक्षा करता है और सरकार को विधिक दृष्टिकोण से मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसके तहत, वह विभिन्न विधायी विधेयकों, आदेशों और नीतियों की कानूनी वैधता की समीक्षा करता है।
4. स्वतंत्रता और निष्पक्षता:
महान्यायवादी का कार्य स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए, हालांकि यह भी महत्वपूर्ण है कि वह सरकार के प्रति निष्ठावान रहे। यह संतुलन बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है, ताकि कानूनी सलाह और प्रतिनिधित्व में निष्पक्षता और सरकार के दृष्टिकोण का उचित प्रतिनिधित्व हो।
5. अस्थायी स्थिति:
महान्यायवादी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और उसकी नियुक्ति सरकार की इच्छा के आधार पर होती है। यह पद अस्थायी होता है और समय-समय पर बदला जा सकता है।
महान्यायवादी की ये भूमिकाएँ भारत की सरकार के कानूनी प्रबंधन में केंद्रीय महत्व रखती हैं। यह पद न केवल कानूनी सलाह प्रदान करता है, बल्कि सरकार की कानूनी स्थिति और नीति को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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