उन्नीसवीं शताब्दी के ‘भारतीय पुनर्जागरण’ और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के मध्य सहलग्नताओं का परीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया। 1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्Read more
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया।
1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई।
1784 में पास हुए पिट्स अधिनियम के बाद कंपनी का शासनिक अधिकार कम हो गया और ब्रिटिश सरकार की निगरानी में आ गई।
कंपनी के साथ संबंध अधिक दक्षिण भारत में मजबूत थे। इस अवधि में कंपनी ने व्यापार, कृषि, और राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
1833 में गोलीय कानून के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे शासन को खत्म कर दिया और भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया।
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उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोजRead more
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान
परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोज का दौर था, जिसमें भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच कई सहलग्नताएँ देखी गईं।
भारतीय पुनर्जागरण: भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज को नई दृष्टि और विचारधारा की ओर अग्रसर किया। इसके प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
राष्ट्रीय पहचान का उद्भव: भारतीय पुनर्जागरण ने राष्ट्रीय पहचान के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
हाल की घटनाएँ: आज के समय में, भारतीय पुनर्जागरण के तत्वों का पुनरावलोकन हो रहा है, जैसे कि पुनर्जागरण नेताओं के योगदान की पुनर्समीक्षा और उनके विचारों का आधुनिक समाज पर प्रभाव। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की नयी पीढ़ी को पहचान और राष्ट्रीयता की नई परिभाषा भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष: उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच सहलग्नताएँ दर्शाती हैं कि कैसे सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन ने राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह युग एक सशक्त भारतीय पहचान की नींव रखता है, जो आज भी भारतीय समाज की सामाजिक और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित करती है।
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