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1765 से 1833 तक ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों के विकास का पता लगाइए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया। 1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्Read more
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया।
1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई।
1784 में पास हुए पिट्स अधिनियम के बाद कंपनी का शासनिक अधिकार कम हो गया और ब्रिटिश सरकार की निगरानी में आ गई।
कंपनी के साथ संबंध अधिक दक्षिण भारत में मजबूत थे। इस अवधि में कंपनी ने व्यापार, कृषि, और राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
1833 में गोलीय कानून के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे शासन को खत्म कर दिया और भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया।
See lessभारत में 19वीं शताब्दी में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों के योगदान का संक्षिप्त विवरण दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
19वीं शताब्दी भारत में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस समय के समाज सुधारकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम किया। राजा राममोहन राय: उन्होंने समाज में सुधार के लिए स्वदेशी शिक्षा, विदेशी वस्त्र त्याग, विधवा पुनर्विवाह आदि के मुद्दों परRead more
19वीं शताब्दी भारत में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस समय के समाज सुधारकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम किया।
इन समाज सुधारकों के प्रयासों से भारतीय समाज में कई सामाजिक कुरीतियाँ समाप्त हुईं और नई सोच और अद्यतन मूल्यों की दिशा में गम्भीर प्रयास किए गए।
See lessउन कारणों को सूचीबद्ध कीजिए, जिन्होंने स्थायी बंदोबस्त प्रणाली की शुरुआत को प्रेरित किया। साथ ही, इसके परिणामों की विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (Permanent Settlement) की शुरुआत को प्रेरित करने वाले कारण निम्नलिखित थे: स्थिर राजस्व प्रणाली की आवश्यकता: ईस्ट इंडिया कंपनी को एक स्थिर और पूर्वानुमानित राजस्व प्रणाली की आवश्यकता थी ताकि वह प्रशासनिक और सैन्य खर्चों को स्थिर रूप से पूरा कर सके। स्थायित्व और स्थिरता: भूमि रRead more
स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (Permanent Settlement) की शुरुआत को प्रेरित करने वाले कारण निम्नलिखित थे:
परिणाम:
इन कारणों और परिणामों ने स्थायी बंदोबस्त प्रणाली की प्रभावशीलता और दीर्घकालिक स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
See lessसुस्पष्ट कीजिए कि मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था । (150 words) [UPSC 2017]
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई। विखंडित राज्यतंत्र: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: "Read more
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र
परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई।
विखंडित राज्यतंत्र:
निष्कर्ष: मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से ग्रसित था, जिसमें क्षेत्रीय शक्तियाँ और छोटे-छोटे राज्य एक केंद्रीकृत शासन के अभाव में अपनी स्वायत्तता और शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्षरत थे। यह अस्थिरता और विभाजन बाद में एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक बनी।
See lessउन्नीसवीं शताब्दी के 'भारतीय पुनर्जागरण' और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के मध्य सहलग्नताओं का परीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोजRead more
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान
परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोज का दौर था, जिसमें भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच कई सहलग्नताएँ देखी गईं।
भारतीय पुनर्जागरण: भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज को नई दृष्टि और विचारधारा की ओर अग्रसर किया। इसके प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
राष्ट्रीय पहचान का उद्भव: भारतीय पुनर्जागरण ने राष्ट्रीय पहचान के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
हाल की घटनाएँ: आज के समय में, भारतीय पुनर्जागरण के तत्वों का पुनरावलोकन हो रहा है, जैसे कि पुनर्जागरण नेताओं के योगदान की पुनर्समीक्षा और उनके विचारों का आधुनिक समाज पर प्रभाव। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की नयी पीढ़ी को पहचान और राष्ट्रीयता की नई परिभाषा भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष: उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच सहलग्नताएँ दर्शाती हैं कि कैसे सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन ने राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह युग एक सशक्त भारतीय पहचान की नींव रखता है, जो आज भी भारतीय समाज की सामाजिक और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित करती है।
See less1857 के पूर्व की अवधि में हुए अनेक विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन और उसकी नीतियों के विरुद्ध बढ़ती नाराजगी का संकेत थे। चर्चा कीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दें)
1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण घटना थी, लेकिन इसके पूर्व भी अनेक विद्रोह हुए थे जो भारतीय जनता की बढ़ती नाराजगी और असंतोष का संकेत थे। इन विद्रोहों ने 1857 के विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की थी। 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के प्रारंभ में भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थाRead more
1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण घटना थी, लेकिन इसके पूर्व भी अनेक विद्रोह हुए थे जो भारतीय जनता की बढ़ती नाराजगी और असंतोष का संकेत थे। इन विद्रोहों ने 1857 के विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की थी।
18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी के प्रारंभ में भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय स्तर पर विद्रोह हुए। इनमें से कुछ प्रमुख विद्रोहों में संन्यासी विद्रोह (1763-1800), पायका विद्रोह (1817), वेल्लोर विद्रोह (1806), और भील विद्रोह (1818-31) शामिल थे। संन्यासी और फकीर विद्रोह बंगाल में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ धार्मिक संप्रदायों द्वारा किया गया। वेल्लोर विद्रोह में भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, जो 1857 के विद्रोह का पूर्वाभास था।
इसके अलावा, आदिवासी विद्रोह जैसे संथाल विद्रोह (1855-56) और भील विद्रोह, स्थानीय जनजातियों द्वारा अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ उठाई गई आवाज़ें थीं। इन विद्रोहों का मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियां, जैसे भूमि कर में वृद्धि और पारंपरिक समाजिक व्यवस्थाओं का विध्वंस, था।
इन सभी विद्रोहों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को प्रकट किया। यद्यपि ये विद्रोह सफल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने 1857 के विद्रोह की नींव रखी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश को प्रकट किया। इस प्रकार, 1857 से पहले के विद्रोहों ने यह स्पष्ट किया कि ब्रिटिश शासन की नीतियों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में गहरी नाराजगी और असंतोष को जन्म दिया था।
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