क्या आप सहमत हैं कि शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ अपृथक्करणीय है? व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति भारत में नगरीकरण, यानी शहरीकरण की प्रक्रिया, पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। नगरीकरण की यह प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों से प्रेरित है: आर्थिक विकास: औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र के विकास ने शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या बढ़ाई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरीRead more
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति
भारत में नगरीकरण, यानी शहरीकरण की प्रक्रिया, पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। नगरीकरण की यह प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों से प्रेरित है:
- आर्थिक विकास: औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र के विकास ने शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या बढ़ाई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में मूल्यवर्धन और आकर्षण बढ़ा है।
- ग्रामीण से शहरी प्रवास: बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और जीवन की गुणवत्ता की खोज में, ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास कर रहे हैं।
- आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर: शहरीकरण की प्रक्रिया में विकसित बुनियादी ढांचे, आवासीय परियोजनाएँ, और सार्वजनिक सुविधाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
तीव्र गति से बढ़ते नगरीकरण से उत्पन्न सामाजिक परिणाम
- आवासीय संकट: तीव्र नगरीकरण के कारण हाउसिंग की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। झुग्गी-झोपड़ी और असंगठित आवास क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे स्वच्छता और सुरक्षा की समस्याएँ बढ़ रही हैं।
- सामाजिक विषमताएँ: नगरीकरण के साथ आर्थिक विषमताएँ भी बढ़ रही हैं। समृद्ध और असमृद्ध इलाकों के बीच अंतर बढ़ रहा है, जिससे सामाजिक भेदभाव और असमान विकास की समस्याएँ उभर रही हैं।
- संसाधनों पर दबाव: शहरीकरण के चलते जल, ऊर्जा, और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ रहा है। इस से संसाधनों की कमी और सर्विसेज की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।
- संस्कृतिक परिवर्तन: शहरीकरण के कारण पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्य और परंपराएँ बदल रही हैं। नवीन जीवनशैली और वैश्विक प्रभाव ने ग्रामीण सांस्कृतिक धरोहर को चुनौती दी है।
- पर्यावरणीय समस्याएँ: तीव्र नगरीकरण के साथ वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और भूमि उपयोग परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय समस्याएँ बढ़ रही हैं। हरित क्षेत्रों और प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है।
निष्कर्ष: भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति ने शहरी विकास को प्रोत्साहित किया है, लेकिन इसके साथ सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय समस्याएँ भी उभरी हैं। प्रभावी शहरी नियोजन और सतत विकास की नीतियों को लागू करके इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
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शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ: एक अपरिहार्य संबंध शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ अक्सर अपृथक्करणीय होती हैं। जब शहर तेजी से विकसित होते हैं, तो आर्थिक अवसर और सुविधाओं की तलाश में ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। इस तेजी से बढ़ती जनसंख्या की वजह से अवसंरचना और आवास की कमी होती है, जिससे मलिन बसRead more
शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ: एक अपरिहार्य संबंध
शहरीकरण और मलिन बस्तियाँ अक्सर अपृथक्करणीय होती हैं। जब शहर तेजी से विकसित होते हैं, तो आर्थिक अवसर और सुविधाओं की तलाश में ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
इस तेजी से बढ़ती जनसंख्या की वजह से अवसंरचना और आवास की कमी होती है, जिससे मलिन बस्तियों का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, मुंबई की धारावी और दिल्ली की यमुना पुश्ता जैसे क्षेत्र तेजी से बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप बने हैं।
असमान विकास और विफल योजनाएं इन बस्तियों के अस्तित्व को बनाए रखती हैं। हाल के वर्षों में, स्मार्ट सिटी परियोजनाएँ और आवास योजनाएँ इस समस्या को संबोधित करने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन मलिन बस्तियों की समस्या पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है।
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