शहरीकरण की प्रक्रिया समाज के लिए विकास या विनाश है। अपना मत लिखिए । (200 Words) [UPPSC 2023]
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति भारत में नगरीकरण, यानी शहरीकरण की प्रक्रिया, पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। नगरीकरण की यह प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों से प्रेरित है: आर्थिक विकास: औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र के विकास ने शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या बढ़ाई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरीRead more
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति
भारत में नगरीकरण, यानी शहरीकरण की प्रक्रिया, पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। नगरीकरण की यह प्रवृत्ति निम्नलिखित कारकों से प्रेरित है:
- आर्थिक विकास: औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र के विकास ने शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की संख्या बढ़ाई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में मूल्यवर्धन और आकर्षण बढ़ा है।
- ग्रामीण से शहरी प्रवास: बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और जीवन की गुणवत्ता की खोज में, ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास कर रहे हैं।
- आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर: शहरीकरण की प्रक्रिया में विकसित बुनियादी ढांचे, आवासीय परियोजनाएँ, और सार्वजनिक सुविधाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
तीव्र गति से बढ़ते नगरीकरण से उत्पन्न सामाजिक परिणाम
- आवासीय संकट: तीव्र नगरीकरण के कारण हाउसिंग की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। झुग्गी-झोपड़ी और असंगठित आवास क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे स्वच्छता और सुरक्षा की समस्याएँ बढ़ रही हैं।
- सामाजिक विषमताएँ: नगरीकरण के साथ आर्थिक विषमताएँ भी बढ़ रही हैं। समृद्ध और असमृद्ध इलाकों के बीच अंतर बढ़ रहा है, जिससे सामाजिक भेदभाव और असमान विकास की समस्याएँ उभर रही हैं।
- संसाधनों पर दबाव: शहरीकरण के चलते जल, ऊर्जा, और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ रहा है। इस से संसाधनों की कमी और सर्विसेज की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।
- संस्कृतिक परिवर्तन: शहरीकरण के कारण पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्य और परंपराएँ बदल रही हैं। नवीन जीवनशैली और वैश्विक प्रभाव ने ग्रामीण सांस्कृतिक धरोहर को चुनौती दी है।
- पर्यावरणीय समस्याएँ: तीव्र नगरीकरण के साथ वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और भूमि उपयोग परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय समस्याएँ बढ़ रही हैं। हरित क्षेत्रों और प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है।
निष्कर्ष: भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति ने शहरी विकास को प्रोत्साहित किया है, लेकिन इसके साथ सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय समस्याएँ भी उभरी हैं। प्रभावी शहरी नियोजन और सतत विकास की नीतियों को लागू करके इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
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शहरीकरण: विकास या विनाश विकासात्मक दृष्टिकोण: शहरीकरण को विकास के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जा सकता है। यह आर्थिक वृद्धि, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने में सहायक होता है। शहरी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा के अवसर उपलब्ध होते हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को सुधाRead more
शहरीकरण: विकास या विनाश
विकासात्मक दृष्टिकोण: शहरीकरण को विकास के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जा सकता है। यह आर्थिक वृद्धि, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने में सहायक होता है। शहरी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा के अवसर उपलब्ध होते हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को सुधारते हैं। उदाहरण के लिए, मेट्रो शहरों में उच्च गुणवत्ता वाले संचार, सड़क और आवास सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
आर्थिक अवसर: शहरीकरण रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करता है और व्यापार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है। शहरी क्षेत्रों में नौकरी के अवसर बढ़ते हैं, जो आर्थिक विकास को गति प्रदान करते हैं।
विनाशात्मक दृष्टिकोण: हालांकि, शहरीकरण की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ भी हैं। अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि, विकास की असमानता, और पर्यावरणीय प्रदूषण जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जैसे कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में वायु प्रदूषण और सघन जनसंख्या समस्याएँ हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
संतुलित दृष्टिकोण: शहरीकरण का प्रभाव समाज पर निर्भर करता है कि इसे कैसे प्रबंधित किया जाता है। यदि शहरीकरण के साथ योजना, नियंत्रण और सतत विकास के सिद्धांतों का पालन किया जाए, तो यह विकास का एक प्रमुख स्रोत बन सकता है। अन्यथा, यह विनाशकारी भी हो सकता है।
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