गीता का ‘अनासक्त योग’ क्या है? सिविल सेवकों के लिये यह क्या संदेश देता है? व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
लोक सेवकों के लिए आवश्यक बुनियादी मूल्य 1. ईमानदारी: ईमानदारी लोक सेवकों के कार्यों की सत्यता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करती है। यह भ्रष्टाचार और अनैतिक प्रथाओं को रोकने में महत्वपूर्ण है। हाल ही में, मुख्यमंत्रियों के लिए चलाए गए एंटी-करप्शन ड्राइव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है, जो ईमRead more
लोक सेवकों के लिए आवश्यक बुनियादी मूल्य
1. ईमानदारी: ईमानदारी लोक सेवकों के कार्यों की सत्यता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करती है। यह भ्रष्टाचार और अनैतिक प्रथाओं को रोकने में महत्वपूर्ण है। हाल ही में, मुख्यमंत्रियों के लिए चलाए गए एंटी-करप्शन ड्राइव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है, जो ईमानदारी के महत्व को दर्शाता है।
2. उत्तरदायित्व: लोक सेवकों को अपने कार्यों और निर्णयों के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। स्वच्छ भारत मिशन में, अधिकारियों ने सार्वजनिक स्वच्छता और स्वच्छता प्रथाओं के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की, जिससे मिशन की सफलता सुनिश्चित हो सकी।
3. निष्पक्षता: निष्पक्षता का मतलब है सभी को समान अवसर प्रदान करना और भेदभाव से बचना। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और मिशन इंद्रधनुष जैसे कार्यक्रमों में, अधिकारियों ने सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समान सेवाएं प्रदान कीं।
4. सेवा भाव: सेवा भाव का तात्पर्य है जनता के कल्याण और सभी वर्गों के लिए योगदान करना। आयुष्मान भारत योजना ने गरीब और पिछड़े वर्गों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ दिया, जो सेवा भाव की उत्कृष्ट मिसाल है।
5. पेशेवरता: पेशेवरता में कार्य की उच्च गुणवत्ता और मानक बनाए रखना शामिल है। कोविड-19 महामारी के दौरान, स्वास्थ्य कर्मियों ने प्रोफेशनल व्यवहार के साथ काम किया, जिससे संकट का प्रभाव कम हुआ और सेवाएं सुचारू रूप से संचालित हुईं।
निष्कर्ष: ईमानदारी, उत्तरदायित्व, निष्पक्षता, सेवा भाव, और पेशेवरता लोक सेवकों के लिए बुनियादी मूल्य हैं जो प्रभावी प्रशासन और जनता के विश्वास को बनाए रखने में मदद करते हैं। इन मूल्यों का पालन करके, लोक सेवक समाज की अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को सही तरीके से पूरा कर सकते हैं।
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अनासक्त योग' भगवद गीता के चतुर्थ अध्याय में वर्णित एक महत्वपूर्ण योग है, जो कर्मों को बिना किसी व्यक्तिगत आशक्ति के करने की कला को दर्शाता है। इसमें क्रियाशीलता को केवल अपने कर्तव्यों के निर्वहन के रूप में देखा जाता है, बिना किसी परिणाम की चिंता किए। यह सिद्धांत असफलता और सफलता दोनों पर समान दृष्टिकRead more
अनासक्त योग’ भगवद गीता के चतुर्थ अध्याय में वर्णित एक महत्वपूर्ण योग है, जो कर्मों को बिना किसी व्यक्तिगत आशक्ति के करने की कला को दर्शाता है। इसमें क्रियाशीलता को केवल अपने कर्तव्यों के निर्वहन के रूप में देखा जाता है, बिना किसी परिणाम की चिंता किए। यह सिद्धांत असफलता और सफलता दोनों पर समान दृष्टिकोण बनाए रखने की सलाह देता है।
सिविल सेवकों के लिए संदेश:
निष्कर्ष: ‘अनासक्त योग’ सिविल सेवकों को अपनी कर्तव्यों का निर्वहन निष्ठा और समर्पण से करने की सलाह देता है, बिना परिणाम की चिंता किए। यह सिद्धांत धैर्य, संतुलन, और प्रोफेशनलिज़्म बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है, जो सरकारी कार्यों में सच्ची सेवा और प्रभावी परिणाम सुनिश्चित करता है।
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