42 वें भारतीय संशोधन को संविधान का पुनः लेखन क्यों कहा जाता है ? (125 Words) [UPPSC 2023]
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की सफलताओं को सीमित करने वाली समस्याएँ और 73वाँ संवैधानिक संशोधन 1. वित्तीय समस्याएँ (Financial Constraints): सीमित संसाधन: पंचायतों के पास अक्सर पर्याप्त फंड और वित्तीय स्वायत्तता की कमी होती है। राज्य सरकारों पर निर्भरता के कारण धन की आपूर्ति नियमित और पर्याप्त नहीं हRead more
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की सफलताओं को सीमित करने वाली समस्याएँ और 73वाँ संवैधानिक संशोधन
1. वित्तीय समस्याएँ (Financial Constraints):
- सीमित संसाधन: पंचायतों के पास अक्सर पर्याप्त फंड और वित्तीय स्वायत्तता की कमी होती है। राज्य सरकारों पर निर्भरता के कारण धन की आपूर्ति नियमित और पर्याप्त नहीं होती।
- उदाहरण: उत्तर प्रदेश के कई पंचायतों ने 2022 में स्थानीय विकास परियोजनाओं के लिए संसाधनों की कमी का सामना किया, जिससे उनकी प्रभावशीलता प्रभावित हुई।
2. प्रशासनिक अक्षमताएँ (Administrative Inefficiencies):
- ब्यूरोक्रेटिक बाधाएँ: प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी और अक्षमताएँ परियोजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती हैं।
- उदाहरण: केरल में पंचायतों को अक्सर प्रशासनिक अड़चनों का सामना करना पड़ता है, जिससे परियोजनाओं के समय पर कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ होती हैं।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference):
- स्थानीय राजनीति: पंचायतों को स्थानीय राजनीतिक गतिशीलताओं द्वारा प्रभावित किया जा सकता है, जिससे पक्षपात और भ्रष्टाचार हो सकता है।
- उदाहरण: मध्य प्रदेश में राजनीतिक हस्तक्षेप ने पंचायतों के विकास निधियों को राजनीतिक लाभकारी गतिविधियों की ओर मोड़ दिया है।
4. क्षमता निर्माण की कमी (Lack of Capacity Building):
- प्रशिक्षण की कमी: पंचायत सदस्यों को पर्याप्त प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की कमी होती है, जो उनकी प्रबंधन क्षमताओं को प्रभावित करता है।
- उदाहरण: झारखंड के पंचायत सदस्य सीमित प्रशिक्षण अवसरों के कारण शासन क्षमता में कमी का सामना कर रहे हैं।
73वाँ संवैधानिक संशोधन (1992) का प्रभाव:
1. स्थानीय निकायों का सशक्तिकरण (Empowerment of Local Bodies):
- विकेंद्रीकरण: 73वाँ संशोधन पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करके स्थानीय शासन को सशक्त बनाने का प्रयास करता है।
- सफलताएँ: इस संशोधन के माध्यम से基层 स्तर पर निर्णय लेने की शक्ति और प्रतिनिधित्व में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, राजस्थान में सशक्त पंचायतों के कारण स्थानीय अवसंरचना और सामुदायिक सेवाओं में सुधार हुआ है।
2. वित्तीय व्यावसायिकता (Financial Devolution):
- धन और कार्य: संशोधन ने पंचायतों के लिए धन और कार्यों के वितरण की मांग की, हालांकि कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी रहती हैं।
- आंशिक सफलता: तमिलनाडु में वित्तीय व्यावसायिकता में प्रगति हुई है, लेकिन संसाधन आवंटन में अभी भी समस्याएँ हैं।
3. आरक्षण और समावेशिता (Reservations and Inclusivity):
- प्रतिनिधित्व: संशोधन ने SCs, STs और महिलाओं के लिए पंचायतों में आरक्षण प्रदान किया, जिससे समावेशिता बढ़ी है।
- सफलताएँ: पश्चिम बंगाल में आरक्षण प्रावधानों के कारण स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
निष्कर्ष: 73वाँ संवैधानिक संशोधन पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने में सफल रहा है, लेकिन वित्तीय समस्याएँ, प्रशासनिक अक्षमताएँ, राजनीतिक हस्तक्षेप, और क्षमता निर्माण की कमी जैसे मुद्दे इसकी पूरी सफलता को सीमित करते हैं। इन समस्याओं का समाधान आवश्यक है ताकि पंचायती राज व्यवस्था का पूर्ण लाभ उठाया जा सके।
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42वें भारतीय संशोधन का संविधान का पुनः लेखन 1. वृहद परिवर्तन: 42वां संशोधन (1976) भारतीय संविधान में व्यापक और गहरे बदलाव लाया, जो इसे "संविधान का पुनः लेखन" का दर्जा देता है। इस संशोधन ने संविधान की प्रस्तावना को संशोधित किया और सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सर्वजन कल्याण जैसे मूल्यों को स्थापितRead more
42वें भारतीय संशोधन का संविधान का पुनः लेखन
1. वृहद परिवर्तन: 42वां संशोधन (1976) भारतीय संविधान में व्यापक और गहरे बदलाव लाया, जो इसे “संविधान का पुनः लेखन” का दर्जा देता है। इस संशोधन ने संविधान की प्रस्तावना को संशोधित किया और सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सर्वजन कल्याण जैसे मूल्यों को स्थापित किया।
2. संसदीय और कानूनी बदलाव: संशोधन ने संसदीय प्रणाली में भी बदलाव किए। इसमें केंद्र-राज्य संबंध, संविधान के भागों की पुनर्रचना और सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता को प्रभावित करने वाले कई प्रावधान जोड़े गए।
3. संविधान की संरचना में बदलाव: संशोधन ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में बदलाव किया, जिससे कई धारा और धारणाओं को नया स्वरूप मिला।
4. प्रस्तावना में परिवर्तन: प्रस्तावना में “समाजवाद”, “धर्मनिरपेक्षता” और “गणतंत्र” के सिद्धांतों को शामिल किया गया, जिससे संविधान की मूल भावना और उद्देश्य को स्पष्ट किया गया।
निष्कर्ष: 42वां संशोधन संविधान के संरचनात्मक और वैधानिक बदलाव के कारण संविधान का “पुनः लेखन” कहा जाता है, जो भारतीय राज्य की प्रशासनिक और सामाजिक दिशा को पुनः परिभाषित करता है।
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