कश्मीर मामले में भारत मध्स्थता का विरोध क्यों करता है?(125 Words) [UPPSC 2018]
भारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका **1. शक्ति का संकेंद्रण हाल के वर्षों में, भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका में महत्वपूर्ण संकेंद्रण देखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत, 2014 से, प्रशाRead more
भारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका
**1. शक्ति का संकेंद्रण
हाल के वर्षों में, भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका में महत्वपूर्ण संकेंद्रण देखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत, 2014 से, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया गया है और नीति कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान दिया गया है।
**2. नीति पहलों में नेतृत्व
प्रधानमंत्री प्रमुख नीति पहलों को शुरू करने और लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। “मेक इन इंडिया” अभियान (2014) ने घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा। “डिजिटल इंडिया” पहल ने डिजिटल सशक्त समाज बनाने की दिशा में कदम उठाए। ये पहलों प्रधानमंत्री की भूमिका को राष्ट्रीय एजेंडाओं को आकार देने में दिखाते हैं।
**3. सामरिक कूटनीति
प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय विदेश नीति दृष्टिकोण, जिसमें Quad Leaders’ Summit और अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिशें शामिल हैं, भारत की वैश्विक स्थिति को सशक्त बनाती हैं।
**4. जनता से जुड़ाव और संचार
प्रधानमंत्री अब सोशल मीडिया और सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से जनता से सक्रिय रूप से जुड़ते हैं, जिससे सरकारी नीतियों की प्रत्यक्ष और व्यापक संचार होता है। प्रधानमंत्री मोदी का ट्विटर और इंस्टाग्राम का उपयोग सरकारी पहलों की दृश्यता और पहुंच को बढ़ाता है।
हालिया उदाहरण
COVID-19 महामारी के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय रणनीति को तैयार और संप्रेषित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई। लॉकडाउन और वैक्सीनेशन ड्राइव की घोषणा करने में उनकी नेतृत्व क्षमता ने संकट प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
भारत में प्रधानमंत्री की भूमिका ने शक्ति संकेंद्रण, नीति निर्माण, कूटनीति और जनसंचार के क्षेत्र में व्यापक विस्तार देखा है। यह उभरती भूमिका भारत की शासन व्यवस्था और वैश्विक स्थिति को आकार देने में महत्वपूर्ण है।
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भारत का कश्मीर मामले में मध्स्थता का विरोध **1. सार्वभौम अधिकार और द्विपक्षीयता: भारत का कहना है कि कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और इसलिए इसका समाधान केवल पाकिस्तान के साथ सीधी बातचीत के माध्यम से होना चाहिए, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्स्थता के जरिए। भारत मध्स्थता को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।Read more
भारत का कश्मीर मामले में मध्स्थता का विरोध
**1. सार्वभौम अधिकार और द्विपक्षीयता: भारत का कहना है कि कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और इसलिए इसका समाधान केवल पाकिस्तान के साथ सीधी बातचीत के माध्यम से होना चाहिए, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्स्थता के जरिए। भारत मध्स्थता को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।
**2. ऐतिहासिक दृष्टिकोण: भारत ने हमेशा बाहरी मध्स्थता को अस्वीकार किया है, और हालिया घटनाओं जैसे पुलवामा हमले के बाद के तनाव के दौरान भी इस रुख को जारी रखा। भारत का मानना है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है।
**3. अंतरराष्ट्रीय ढांचा: भारत का मानना है कि मध्स्थता वर्तमान अंतरराष्ट्रीय ढांचे को कमजोर कर सकती है, जो यूएन प्रस्तावों पर आधारित है। यह ढांचा द्विपक्षीय वार्ता को प्राथमिकता देता है और भारत इसे बनाए रखना चाहता है।
इस प्रकार, भारत का विरोध कश्मीर मुद्दे को सीधे नियंत्रण में रखने और अपने विदेश नीति के दृष्टिकोण को बनाए रखने की रणनीति को दर्शाता है।
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