Home/uppsc: bhartiya rajvyavastha
- Recent Questions
- Most Answered
- Answers
- No Answers
- Most Visited
- Most Voted
- Random
- Bump Question
- New Questions
- Sticky Questions
- Polls
- Followed Questions
- Favorite Questions
- Recent Questions With Time
- Most Answered With Time
- Answers With Time
- No Answers With Time
- Most Visited With Time
- Most Voted With Time
- Random With Time
- Bump Question With Time
- New Questions With Time
- Sticky Questions With Time
- Polls With Time
- Followed Questions With Time
- Favorite Questions With Time
कश्मीर मामले में भारत मध्स्थता का विरोध क्यों करता है?(125 Words) [UPPSC 2018]
भारत का कश्मीर मामले में मध्स्थता का विरोध **1. सार्वभौम अधिकार और द्विपक्षीयता: भारत का कहना है कि कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और इसलिए इसका समाधान केवल पाकिस्तान के साथ सीधी बातचीत के माध्यम से होना चाहिए, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्स्थता के जरिए। भारत मध्स्थता को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।Read more
भारत का कश्मीर मामले में मध्स्थता का विरोध
**1. सार्वभौम अधिकार और द्विपक्षीयता: भारत का कहना है कि कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और इसलिए इसका समाधान केवल पाकिस्तान के साथ सीधी बातचीत के माध्यम से होना चाहिए, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्स्थता के जरिए। भारत मध्स्थता को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।
**2. ऐतिहासिक दृष्टिकोण: भारत ने हमेशा बाहरी मध्स्थता को अस्वीकार किया है, और हालिया घटनाओं जैसे पुलवामा हमले के बाद के तनाव के दौरान भी इस रुख को जारी रखा। भारत का मानना है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है।
**3. अंतरराष्ट्रीय ढांचा: भारत का मानना है कि मध्स्थता वर्तमान अंतरराष्ट्रीय ढांचे को कमजोर कर सकती है, जो यूएन प्रस्तावों पर आधारित है। यह ढांचा द्विपक्षीय वार्ता को प्राथमिकता देता है और भारत इसे बनाए रखना चाहता है।
इस प्रकार, भारत का विरोध कश्मीर मुद्दे को सीधे नियंत्रण में रखने और अपने विदेश नीति के दृष्टिकोण को बनाए रखने की रणनीति को दर्शाता है।
See lessभारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका का वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
भारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका **1. शक्ति का संकेंद्रण हाल के वर्षों में, भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका में महत्वपूर्ण संकेंद्रण देखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत, 2014 से, प्रशाRead more
भारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका
**1. शक्ति का संकेंद्रण
हाल के वर्षों में, भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका में महत्वपूर्ण संकेंद्रण देखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत, 2014 से, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया गया है और नीति कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान दिया गया है।
**2. नीति पहलों में नेतृत्व
प्रधानमंत्री प्रमुख नीति पहलों को शुरू करने और लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। “मेक इन इंडिया” अभियान (2014) ने घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा। “डिजिटल इंडिया” पहल ने डिजिटल सशक्त समाज बनाने की दिशा में कदम उठाए। ये पहलों प्रधानमंत्री की भूमिका को राष्ट्रीय एजेंडाओं को आकार देने में दिखाते हैं।
**3. सामरिक कूटनीति
प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय विदेश नीति दृष्टिकोण, जिसमें Quad Leaders’ Summit और अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिशें शामिल हैं, भारत की वैश्विक स्थिति को सशक्त बनाती हैं।
**4. जनता से जुड़ाव और संचार
प्रधानमंत्री अब सोशल मीडिया और सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से जनता से सक्रिय रूप से जुड़ते हैं, जिससे सरकारी नीतियों की प्रत्यक्ष और व्यापक संचार होता है। प्रधानमंत्री मोदी का ट्विटर और इंस्टाग्राम का उपयोग सरकारी पहलों की दृश्यता और पहुंच को बढ़ाता है।
हालिया उदाहरण
COVID-19 महामारी के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय रणनीति को तैयार और संप्रेषित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई। लॉकडाउन और वैक्सीनेशन ड्राइव की घोषणा करने में उनकी नेतृत्व क्षमता ने संकट प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
भारत में प्रधानमंत्री की भूमिका ने शक्ति संकेंद्रण, नीति निर्माण, कूटनीति और जनसंचार के क्षेत्र में व्यापक विस्तार देखा है। यह उभरती भूमिका भारत की शासन व्यवस्था और वैश्विक स्थिति को आकार देने में महत्वपूर्ण है।
See lessबोडो समस्या' से आप क्या समझते हैं? क्या बोडो शांति समझौता 2020 असम में विकास और शांति सुनिश्चित करेगा? मूल्यांकन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
बोडो समस्या क्या है? **1. इतिहास और पृष्ठभूमि बोडो समस्या असम के बोडो लोगों, जो एक स्वदेशी जाति समूह हैं, की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को संदर्भित करती है। बोडो लोग मुख्य रूप से बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) में निवास करते हैं और उन्होंने स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान की मांग की है। बोडोलैंडRead more
बोडो समस्या क्या है?
**1. इतिहास और पृष्ठभूमि
बोडो समस्या असम के बोडो लोगों, जो एक स्वदेशी जाति समूह हैं, की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को संदर्भित करती है। बोडो लोग मुख्य रूप से बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) में निवास करते हैं और उन्होंने स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान की मांग की है। बोडोलैंड के अलग राज्य की मांग से दशकों से असामाजिक अशांति और हिंसा हुई है।
**2. मांग और मुद्दे
बोडो लोगों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अलग राज्य या स्वायत्त क्षेत्र की मांग की है। 1980 के दशक में बोडोलैंड की अलग राज्य की मांग ने कई हिंसक विरोध प्रदर्शन और सरकार के साथ वार्ताओं को जन्म दिया।
बोडो शांति समझौता 2020
**1. मुख्य प्रावधान
जनवरी 2020 में साइन किए गए बोडो शांति समझौते में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) को अधिक स्वायत्तता देने का प्रस्ताव है। इसके प्रमुख प्रावधान हैं:
**2. विकास और शांति पर प्रभाव
**a. विकास की संभावनाएँ
समझौते के अनुसार, BTR क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और स्थानीय संसाधनों में सुधार किया जाएगा, जिससे क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, बोडो सांस्कृतिक विश्वविद्यालय की स्थापना और स्थानीय विकास परियोजनाएं आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकती हैं।
**b. शांति और स्थिरता
समझौता बोडो लोगों की मुख्य मांगों को पूरा करके क्षेत्र में शांति लाने की संभावना है। बोडो उग्रवादियों का पुनर्वास और शांति के लिए समझौते में शामिल करना दीर्घकालिक शांति सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
चुनौतियाँ और विचार
हालांकि, समझौते की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन और सभी भागीदारों के सहयोग पर निर्भर करती है। बोडो उग्रवादियों का समाज में एकीकरण, संसाधनों का प्रबंधन और सभी समुदायों के लिए समावेशी विकास को सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
बोडो शांति समझौता 2020 असम में विकास और शांति की दिशा में सकारात्मक कदम है, बशर्ते कि इसे सही ढंग से लागू किया जाए और समाज के विभिन्न हिस्सों की जरूरतों का ध्यान रखा जाए।
See lessभारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों के प्रभाव और भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का प्रभाव और भूमिका 1. चुनावी भागीदारी: राजनीतिक दल चुनावों का आयोजन और मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। उदाहरण स्वरूप, भाजपा और कांग्रेस देश की प्रमुख चुनावी ताकतें हैं, जो राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर राजनीतिक दिशा निर्धारित करती हैं। 2. नीति निर्माRead more
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का प्रभाव और भूमिका
1. चुनावी भागीदारी: राजनीतिक दल चुनावों का आयोजन और मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। उदाहरण स्वरूप, भाजपा और कांग्रेस देश की प्रमुख चुनावी ताकतें हैं, जो राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर राजनीतिक दिशा निर्धारित करती हैं।
2. नीति निर्माण: दल नीतियों का निर्माण और प्रचार करते हैं। भाजपा का “मेक इन इंडिया” अभियान इसका उदाहरण है, जो उद्योग और रोजगार को बढ़ावा देने की दिशा में है।
3. प्रतिनिधित्व और जवाबदेही: राजनीतिक दल विभिन्न सामाजिक और आर्थिक हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, वंशवाद और आंतरिक गुटबंदी, जैसे कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकते हैं।
4. चुनौतियाँ और आलोचना: राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार, मतदाता बैंक की राजनीति, और अधूरे वादों की आलोचना होती है। आप (AAP) की सफलता ने पारंपरिक दलों के प्रति असंतोष को उजागर किया, और पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को स्पष्ट किया।
निष्कर्ष: भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन उनकी प्रभावशीलता उनके नैतिक और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है।
See lessअनुच्छेद 32 भारत के संविधान की आत्मा है।' संक्षेप में व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
"अनुच्छेद 32 भारत के संविधान की आत्मा है": संक्षेप में व्याख्या 1. अनुच्छेद 32 का महत्व: अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। इसके तहत, नागरिक सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल कर सकते हैं यदि उनके मूलभूत अधिकRead more
“अनुच्छेद 32 भारत के संविधान की आत्मा है”: संक्षेप में व्याख्या
1. अनुच्छेद 32 का महत्व:
अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। इसके तहत, नागरिक सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल कर सकते हैं यदि उनके मूलभूत अधिकार का उल्लंघन हो।
2. संविधान की आत्मा:
3. हालिया उदाहरण:
2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में मूलभूत अधिकारों की रक्षा की, जैसे वेतन और कार्यस्थल सुरक्षा को लेकर निर्णय, जो अनुच्छेद 32 के महत्व को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
See lessअनुच्छेद 32 भारतीय संविधान का मूल आधार है क्योंकि यह नागरिकों को मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है और सुप्रीम कोर्ट को अधिकारों की रक्षा में सशक्त बनाता है।
भारत का राष्ट्रपति कैसे निर्वाचित होता है ? (200 Words) [UPPSC 2022]
निर्वाचन का आधार: भारत का राष्ट्रपति एक विशेष निर्वाचन पद्धति के माध्यम से चुना जाता है, जिसे "इलेक्ट्रोरल कॉलेज" द्वारा चुना जाता है। इस कॉलेज में सांसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। निर्वाचन की प्रक्रिया: उम्मीदवारी और नामांकन: राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को कम से कम 50Read more
निर्वाचन का आधार: भारत का राष्ट्रपति एक विशेष निर्वाचन पद्धति के माध्यम से चुना जाता है, जिसे “इलेक्ट्रोरल कॉलेज” द्वारा चुना जाता है। इस कॉलेज में सांसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।
निर्वाचन की प्रक्रिया:
निष्कर्ष: राष्ट्रपति का चुनाव एक जटिल लेकिन सुव्यवस्थित प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जो भारतीय संघ की विविधता और संघीय संरचना को ध्यान में रखता है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया व्यक्ति लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया हो और विभिन्न राज्यों की प्रतिनिधित्व का सही संतुलन हो।
See lessप्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों और भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण करें। अन्य संस्थाओं पर इसका कैसे प्रभाव पडता है ? (200 Words) [UPPSC 2023]
प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ और भूमिका: आलोचनात्मक परीक्षण 1. प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ: प्रधानमंत्री के कार्यालय की शक्ति संगठनों और नीतियों में वृद्धि के कारण बढ़ी है। यह विशेषकर राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णयों में विधायिका और न्यायपालिका के मुकाबले अधिक प्रभावशाली बनाता है। प्रधानमंत्री केRead more
प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ और भूमिका: आलोचनात्मक परीक्षण
1. प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ: प्रधानमंत्री के कार्यालय की शक्ति संगठनों और नीतियों में वृद्धि के कारण बढ़ी है। यह विशेषकर राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णयों में विधायिका और न्यायपालिका के मुकाबले अधिक प्रभावशाली बनाता है। प्रधानमंत्री के पास पार्टी अनुशासन, संसदीय बहुमत और केंद्रीय नीति पर व्यापक नियंत्रण होता है।
2. संविधानिक संतुलन पर प्रभाव: बढ़ती शक्तियों से संविधानिक संतुलन में विकृति आ सकती है। प्रधानमंत्री की अधिक शक्तियाँ विधायिका और न्यायपालिका के स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे विविध दृष्टिकोण और चेक एंड बैलेंस में कमी आ सकती है।
3. अन्य संस्थाओं पर प्रभाव:
4. संतुलन और सुधार: इस स्थिति को सुधारने के लिए, संविधानिक प्रावधानों और संस्थागत संरचनाओं को सशक्त करना आवश्यक है ताकि प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों के बावजूद लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और संतुलन बनाए रखा जा सके।
निष्कर्ष: प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ शासन में संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन संविधानिक प्रावधान और संस्थागत नियंत्रण के माध्यम से इन प्रभावों को सुधारा और संतुलित किया जा सकता है।
See less