महात्मा गाँधी भारतीय राजनीति के मध्यम मार्गी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। तर्कपूर्ण व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के संघर्ष में योगदान 1. पत्रकारिता का प्रचार: पत्रिकाएँ: बाल गंगाधर तिलक ने केसरी (मराठी) और द महरट्टा (अंग्रेज़ी) जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को गति दी। इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रRead more
बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के संघर्ष में योगदान
1. पत्रकारिता का प्रचार:
- पत्रिकाएँ: बाल गंगाधर तिलक ने केसरी (मराठी) और द महरट्टा (अंग्रेज़ी) जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को गति दी। इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रोत्साहित किया।
2. प्रेस सेंसरशिप के खिलाफ संघर्ष:
- ब्रिटिश प्रतिबंधों का विरोध: तिलक ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए प्रेस सेंसरशिप के खिलाफ दृढ़ विरोध किया। उनके लेखन और विचारों ने प्रेस की स्वतंत्रता की अहमियत को उजागर किया।
3. सार्वजनिक जागरूकता:
- जन जागरण: तिलक ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से जनता को उनके अधिकारों और ब्रिटिश शासन के अन्याय के बारे में जागरूक किया, जिससे एक राजनीतिक चेतना का निर्माण हुआ।
4. कानूनी संघर्ष:
- कानूनी लढ़ाई: तिलक ने प्रेस पर प्रतिबंधों के खिलाफ कानूनी लढ़ाई लड़ी, जिससे प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूती मिली।
निष्कर्ष: बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के लिए संघर्ष ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उन्होंने स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।
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महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था। अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आकRead more
महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण
मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था।
अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आक्रामक संघर्ष और निष्क्रिय स्वीकृति के बीच का एक संतुलित रास्ता था। दांडी मार्च (1930) इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया।
आर्थिक और सामाजिक संतुलन: गाँधी ने खादी और स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया, जो आर्थिक प्रगति और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करता है।
हाल के उदाहरण: गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण आज भी स्वच्छ भारत अभियान जैसी नीतियों में देखा जा सकता है, जो पारंपरिक प्रथाओं को बिना बाधित किए स्वच्छता और विकास को बढ़ावा देता है।
गाँधी का दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में संतुलन और सामंजस्य के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।
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