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महात्मा गाँधी भारतीय राजनीति के मध्यम मार्गी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं। तर्कपूर्ण व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था। अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आकRead more
महात्मा गाँधी और भारतीय राजनीति में मध्यम मार्गी दृष्टिकोण
मध्यम मार्ग की अवधारणा: महात्मा गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में अतिवादी विचारधाराओं और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बीच संतुलन बनाने पर आधारित था।
अहिंसा और सत्याग्रह: गाँधी ने सत्याग्रह (अहिंसात्मक प्रतिरोध) को अपनाया, जो आक्रामक संघर्ष और निष्क्रिय स्वीकृति के बीच का एक संतुलित रास्ता था। दांडी मार्च (1930) इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया।
आर्थिक और सामाजिक संतुलन: गाँधी ने खादी और स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया, जो आर्थिक प्रगति और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करता है।
हाल के उदाहरण: गाँधी का मध्यम मार्गी दृष्टिकोण आज भी स्वच्छ भारत अभियान जैसी नीतियों में देखा जा सकता है, जो पारंपरिक प्रथाओं को बिना बाधित किए स्वच्छता और विकास को बढ़ावा देता है।
गाँधी का दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में संतुलन और सामंजस्य के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।
See lessवर्ण व्यवस्था पर गाँधी के विचारों का मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
गांधी के वर्ण व्यवस्था पर विचार महात्मा गांधी ने वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जो व्यक्ति की योग्यता और कर्तव्यों पर आधारित थी, न कि जाति या जन्म पर। गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को सामाजिक समरसता और संगठन का साधन माना, जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार भRead more
गांधी के वर्ण व्यवस्था पर विचार
महात्मा गांधी ने वर्ण व्यवस्था को एक आदर्श सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जो व्यक्ति की योग्यता और कर्तव्यों पर आधारित थी, न कि जाति या जन्म पर। गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को सामाजिक समरसता और संगठन का साधन माना, जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता अनुसार भूमिका निभाने का अवसर मिलता।
हालांकि, गांधी ने जातिवाद और अछूतों के प्रति भेदभाव की निंदा की। उन्होंने अछूतों के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा की और उनकी स्थिति में सुधार के लिए सक्रिय रूप से काम किया।
गांधी का दृष्टिकोण था कि वर्ण व्यवस्था का सुधार और आधुनिकीकरण होना चाहिए, ताकि यह जातिवाद और सामाजिक असमानता को समाप्त कर सके।
निष्कर्ष: गांधी का वर्ण व्यवस्था पर दृष्टिकोण सुधारात्मक था, जिसमें सामाजिक न्याय और समरसता को प्राथमिकता दी गई।
See lessप्रेस की आजादी के लिये संघर्ष में राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक के योगदान का वर्णन कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के संघर्ष में योगदान 1. पत्रकारिता का प्रचार: पत्रिकाएँ: बाल गंगाधर तिलक ने केसरी (मराठी) और द महरट्टा (अंग्रेज़ी) जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को गति दी। इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रRead more
बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के संघर्ष में योगदान
1. पत्रकारिता का प्रचार:
2. प्रेस सेंसरशिप के खिलाफ संघर्ष:
3. सार्वजनिक जागरूकता:
4. कानूनी संघर्ष:
निष्कर्ष: बाल गंगाधर तिलक का प्रेस की आज़ादी के लिए संघर्ष ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उन्होंने स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।
See lessआधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर एक टिप्पणी लिखिए । (125 Words) [UPPSC 2023]
आधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर टिप्पणी सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मुस्लिम समाज को शिक्षा की महत्वता का एहसास कराया और पारंपरिक शिक्षा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा। **1. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी: 1875 में, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटीRead more
आधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर टिप्पणी
सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मुस्लिम समाज को शिक्षा की महत्वता का एहसास कराया और पारंपरिक शिक्षा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा।
**1. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी: 1875 में, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की, जो आधुनिक शिक्षा के प्रचार का महत्वपूर्ण केंद्र बनी।
**2. प्रेरणा और सुधार: उन्होंने मुस्लिम समाज के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पश्चिमी शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया।
**3. साहित्य और प्रकाशन: उनके द्वारा संपादित “असारुस सानादीद” जैसे लेखन, और “दस्तरख्वान” जैसी पत्रिकाओं ने शिक्षा और जागरूकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी शिक्षा नीति और सामाजिक सुधार ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया और समाज में सकारात्मक बदलाव किया।
See lessभगत सिंह द्वारा प्रतिपादित 'क्रान्तिकारी दर्शन' पर प्रकाश डालिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
भगत सिंह द्वारा प्रतिपादित 'क्रान्तिकारी दर्शन' भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है: 1. **आत्मनिर्भर क्रांति**: भगत सिंह ने आत्मनिर्भर क्रांति की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि स्वतंत्रता की प्राप्ति और समाज में पRead more
भगत सिंह द्वारा प्रतिपादित ‘क्रान्तिकारी दर्शन’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है:
1. **आत्मनिर्भर क्रांति**: भगत सिंह ने आत्मनिर्भर क्रांति की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि स्वतंत्रता की प्राप्ति और समाज में परिवर्तन के लिए एक सशक्त क्रांतिकारी आंदोलन की आवश्यकता है, जो पूरी तरह से विदेशी शासकों के खिलाफ हो।
2. **सामाजिकवाद और समानता**: वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे और समाजवादी व्यवस्था की ओर उन्मुख थे। उनका उद्देश्य एक ऐसा समाज स्थापित करना था जहाँ वर्ग भेदभाव समाप्त हो, और सभी लोगों को समान अवसर और अधिकार मिलें।
3. **हिंसात्मक क्रांति**: भगत सिंह ने अहिंसात्मक आंदोलनों के प्रभावी होने पर संदेह किया और क्रांतिकारी हिंसा को समाज में बदलाव लाने का एक वैध माध्यम माना। उनका मानना था कि जब अन्य विकल्प असफल हो जाएं, तो सशस्त्र संघर्ष आवश्यक हो जाता है।
4. **युवाओं की भूमिका**: उन्होंने युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में देखा। उनका मानना था कि युवा वर्ग ही समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम है और उसे क्रांति की दिशा में प्रेरित किया जाना चाहिए।
5. **धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीयता**: भगत सिंह ने एक धर्मनिरपेक्ष और एकजुट भारत की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें सभी धर्मों और जातियों का समान अधिकार हो।
भगत सिंह का क्रान्तिकारी दर्शन स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी और सामाजिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है, जो हिंसा, सामाजिकवाद और युवा सशक्तिकरण पर आधारित था।
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